बांग्लादेश में खूनी बगावत के आरोपी तय
१२ जुलाई २०१०बांग्लादेश सरकार के वकील मुशर्रफ हुसैन काजल ने कहा, ''हमने 824 लोगों के खिलाफ हत्या, साजिश, हत्या के लिए भड़काने, सेना के हथियार और गोला बारूद लूटने के मुकदमे दर्ज किए हैं.'' साल भर बाद अब मामलों की सुनवाई शुरू होगी. सरकारी वकील का कहना है कि सुनवाई कम से कम एक साल चलेगी.
आरोपियों में ज्यादातर बांग्लादेश राइफल्स बीडीआर के जवान हैं. 824 आरोपियों में से 801 के बीडीआर के जवान हैं. प्रधानमंत्री शेख हसीना की सत्ताधारी पार्टी के एक नेता समेत 23 आम नागरिकों को भी आरोपी बनाया गया है. अभियोजन पक्ष का कहना है कि ज्यादातर मामलों में उच्चतम सजा यानी मौत की सजा की मांग की जाएगी.
1971 में आजादी मिलने के बाद बांग्लादेश के इतिहास का यह सबसे बड़ा अंदरूनी मुकदमा है. पुलिस ने साल भर में बीडीआर के 9,500 जवानों से पूछताछ की. 2,307 लोगों को हिरासत में लिया. आरोपियों के खिलाफ सैन्य अदालत में भी मुकदमे चल रहे हैं. सैन्य अदालत अब तक कम से कम 200 फौजियों को एक महीने से लेकर सात साल तक की सजा सुना चुकी है.
जांच अधिकारियों के मुताबिक बगावत और हत्याएं पूर्व नियोजित थीं. जांच से जुड़े एक पुलिस अधिकारी अब्दुल काहर अखाद ने कहा, ''यह सोच समझकर रची गई साजिश थी. जवानों ने बैरकों से सेमी ऑटोमैटिक और राइफलें लूटीं.'' अनुमान के मुताबिक करीब 2,500 बंदूकें लूटी गईं. लूटपाट के बाद बगावती फौजी बीडीआर के सीनियर अधिकारियों की सालाना बैठक में घुसे. जांच में पता चला है कि बीडीआर के प्रमुख जनरल शकील अहमद समेत कई अधिकारियों को बेहद करीब से गोली मारी गई.
कुछ अधिकारियों की हत्या इससे भी ज्यादा बेरहमी से की गई. सरकारी वकील काजल ने बताया, ''एक अधिकारियों पेड़ से लटकाया गया और फिर गोली मारी गई. एक अन्य सीनियर अधिकारी को चार मंज़िला इमारत की छत पर ले जाया गया और वहां से नीचे फेंका गया. कुछ अफसरों को जिंदा जलाया गया.''
बीते साल हुए इस कांड ने बांग्लादेश और भारत समेत दुनिया के कई देशों को हिला कर रख दिया था. बगावत करने वाले अधिकारियों ने 33 घंटे तक बीडीआर के मुख्यालय पर कब्जा किया था. हमलावरों ने 57 वरिष्ठ अधिकारियों समेत 74 लोगों की हत्या की.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह
संपादन: ए जमाल