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बहते खून पर अब भी असमंजस

१५ मार्च २०१३

सीरिया का संघर्ष तीसरे साल में दाखिल हो चुका है. अब तक 70,000 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. यूरोपीय संघ अब इसे बड़ी कूटनीतिक नाकामी मान रहा है. फ्रांस और ब्रिटेन अब विद्रोहियों को हथियार देने का दबाव बना रहे हैं.

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तस्वीर: dapd

15 मार्च 2011, अरब वसंत की बयार के बीच सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल असद के खिलाफ विद्रोह की आवाज उठी. डेरा में कुछ युवाओं ने दीवारों पर क्रांति के नारे लिख दिए. असद के 40 साल के शासन के खिलाफ आवाज बुलंद की. सुरक्षा बलों ने युवाओं पर फायरिंग की. फेसबुक पेज के जरिए खबर पूरे देश में फैली और विद्रोह भड़क उठा, जो अब भी जारी है. अब कम से कम 70,000 लोग मारे जा चुके हैं.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने सीरिया के खिलाफ कई प्रतिबंध लगाए. हालांकि सुरक्षा परिषद में रूस के विरोध की वजह से विद्रोहियों को सीधी मदद देने या सैन्य दखल जैसे कदम नहीं उठाए जा सके. उम्मीद थी कि प्रतिबंध असर दिखाएंगे और असद सत्ता छोड़ देंगे, लेकिन यह कूटनीति नाकाम हुई. दो साल गुजरने के बाद अब यूरोपीय संघ के नेताओं का भी धैर्य जवाब दे रहा है.

हथियार देने की मांग

फ्रांस ने अब विद्रोहियों को हथियार देने की मांग की है. फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रोंसुआ ओलांद ने कहा, "राजनीतिक समाधान नाकाम हो चुके हैं, हर तरह के दबाव के बावजूद. हमें आगे बढ़ना होगा क्योंकि अपने ही लोगों को हर तरह से मारने की बशर अल असद की साफ इच्छा दो साल से दिखाई पड़ रही है."

सीरियाई संघर्ष का भविष्य तय करने के लिए अगले कुछ महीने अहम साबित होंगे. ओलांद कहते हैं, "हमारा लक्ष्य अपने साझेदारों को मई अंत तक या उससे पहले सहमत करना है. अगर एक या दो देशों की तरफ से बाधा आई तो फ्रांस अपनी जिम्मेदारी निभाएगा." ब्रिटेन ने भी फ्रांस के साथ सुर मिलाते हुए मांग की है कि सीरिया में हथियारों की सप्लाई पर लगी पाबंदी हटाई जाए. शुक्रवार को यूरोपीय संघ की शिखर वार्ता में भी इस पर चर्चा हुई.

EU Gipfel Merkel PK 15.03.2013
दुविधा में जर्मनीतस्वीर: picture-alliance/dpa

यूरोपीय संघ असमंजस में

सीरिया विद्रोहियों के मुख्य धड़े, राष्ट्रीय गठबंधन ने फ्रांस की पहल का स्वागत किया है. इसे "सही दिशा में उठाया गया कदम" करार दिया है. लेकिन जर्मनी हथियार मुहैया कराने के फैसले पर असमंजस में दिख रहा है. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल का कहना है कि प्रतिबंध हटाये जाने का फैसला बहुत सावधानी से करना होगा.

इस बात की संभावनाएं कम हैं कि हथियार सप्लाई पर लगा प्रतिबंध यूरोपीय नेता आसानी से हटा देंगे. शुक्रवार को यूरोपीय संघ के शिखर सम्मेलन के बाद ऑस्ट्रिया के चांसलर वेर्नर फायमन ने कहा, "मैं इसके (प्रतिबंध हटाए जाने के) खिलाफ हूं. मुझे लगता है कि ऐसे विवाद में जिसमें आप हथियार दें, समाधान तक नहीं पहुंचा जा सकता."

फिनलैंड की प्रधानमंत्री जिरकी कैटेनन ने कहा, "अब तक इस विषय पर हमारी नीति बड़ी टिकाऊ रही है और मैं इसमें कोई बड़ा बदलाव नहीं देखती हूं." ये बातें ब्रिटेन और फ्रांस के सुझाव के बिल्कुल उलट हैं. हालांकि भीतर से हो रहे विरोध के बावजूद यूरोपीय संघ के नेता अगले शुक्रवार को फिर इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे.

माना जा रहा है कि अमेरिका फ्रांस और ब्रिटेन की पहल का समर्थन करेगा. अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने संकेत दिए हैं कि विद्रोहियों को ज्यादा मदद दी जा सकती है लेकिन हथियारों के तौर पर नहीं. अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता विक्टोरिया नुलैंड ने कहा, "निश्चित ही हम चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा सरकारें सीरियाई विपक्षी गठबंधन को मदद करें."

रूस का समर्थन जारी

वहीं रूस अब भी असद के समर्थन में खड़ा है. मॉस्को ने कहा है कि हथियारों की सप्लाई करने का अर्थ अंतरराष्ट्रीय कानून का खुला उल्लंघन होगा. 2011 में शुरू हुए अरब वंसत से ट्यूनीशिया, मिस्र और लीबिया का राजनीतिक चेहरा बदल दिया. लेकिन चार दशक से सीरिया की गद्दी संभाल रहे असद को लगता है कि वह अपने पिता की तरह ही विद्रोह को कुचल देंगे. 19982 में उनके पिता हाफिज ने हमा में मुस्लिम ब्रदरहुड का विद्रोह कुचला था. तब 10,000 से 40,000 लोग मारे गए.

सीरिया में लाखों लोग विस्थापित हो चुके हैं. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक अब तक 11 लाख सीरियाई जॉर्डन, ईराक, तुर्की और लेबनान जैसे पड़ोसी देशों में शरण ले चुके हैं. संयुक्त राष्ट्र में शरणार्थी मामलों के आयुक्त एंटोनियो गुटेरेस ने विश्व समुदाय से अपील की है कि वह मानवता को ध्यान में रखकर मदद करे. गुटेरेस ने कहा, "मुझे लगता है कि अगर सीरियाई संघर्ष जारी रहा तो मध्यपूर्व में विस्फोट का खतरा पैदा हो जाएगा. फिर मानवीय, राजनीतिक और सुरक्षा के लिहाज से उस चुनौती से निपटा नहीं जा सकेगा."

ओएसजे/एएम (डीपीए, एएफपी)

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