बस एक्टिंग करा लो
पिछले एक साल में अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी को बड़ी सफलता मिली है. जर्मन शहर श्टुटगार्ट में एक फिल्म फेस्टिवल में नवाजुद्दीन से मिले तो गैंग्स ऑफ वासेपुर वाला गुस्सैल फैजल नहीं एक एक विनम्र और जमीन से जुड़ा कलाकार दिखा.
कैसा लगा श्टुटगार्ट
मैं पिछले साल भी आया था. दूसरी बार आया हूं तो जाहिर है कि यहां अच्छा लग रहा है. बहुत ही प्यारा सा फेस्टिवल है. रिलैक्सेशन भी मिलता है, बहुत ही अपना अपना सा लगता है.
एक साल में इतनी सफलता
वैसे तो इत्तफाक है कि मेरी इतनी सारी फिल्में एक साथ रिलीज हुईं. तीन चार फिल्में पिछले साल रिलीज हुईं. बहुत सालों से रुकी हुई थीं फिल्में, तो अच्छा रहा...
मुजफ्फरनगर से मुंबई
मुजफ्फरनगर के आसपास जो छोटे छोटे शहर हैं, उसमें अपराधी बहुत रहते हैं. ऑनर किलिंग सबसे ज्यादा वहीं होती है. हम तो वहां से भाग गए थे. क्योंकि वहां दो ही काम है, या तो किसान बनो या किसी का मर्डर कर दो. वहां से निकल गए तो पढ़ाई करनी पड़ी. फिर थियेटर के बारे में सोचा.
जर्मनी में हिंदी फिल्में
अच्छी रहीं, हमारी फिल्म थी यहां पर, बॉम्बे टॉकीज. यहां के दर्शक हिन्दी फिल्मों को जानते हैं. बॉम्बे टॉकीज देखा लोगों ने, मजा आया उन्हें.
फिल्मों में भारत
गैंग्स ऑफ वासेपुर में नल पर कपड़े धोने वाला सीन है. गांव में महिलाएं दो ही वजहों से घर से निकलती हैं, या तो कपड़े धोने कुएं के पास या घर के आसपास किसी काम के सिलसिले में. वहीं पर सबकुछ होता है, प्यार मोहब्बत भी वहीं से शुरू होती है. यह सब सच्चाई है, जो हिन्दुस्तान के गांवों कस्बों में दिखती हैं.
फिल्मों में महिलाएं
फिल्में अब भी मेल डॉमिनेटड है- फीमेल एक्टर गाना गा देगी, उसे प्यार मोहब्बत के लिए ही दिखाया जाता है. गैंग्स ऑफ वासेपुर में मां डील करती है, सबकुछ देखती है. 'कहानी' में भी सबकुछ उस महिला पर निर्भर है. विद्या बालन ही प्रमुख है. लेकिन फॉर्मूला फिल्में बहुत कम फीमेल ओरियेंटड हैं.
फिल्मों में महिलाएं
फिल्में अब भी मेल डॉमिनेटड है- फीमेल एक्टर गाना गा देगी, उसे प्यार मोहब्बत के लिए ही दिखाया जाता है. गैंग्स ऑफ वासेपुर में मां डील करती है, सबकुछ देखती है. 'कहानी' में भी सबकुछ उस महिला पर निर्भर है. विद्या बालन ही प्रमुख है. लेकिन फॉर्मूला फिल्में बहुत कम फीमेल ओरियेंटड हैं.
किस तरह के रोल
हर तरह की भूमिका करना चाहता हूं, कॉमेडी, रोमांटिक रोल भी करना चाहता हूं. किसी एक तरह के रोल पर नहीं टिका रहना चाहता हूं. स्टीरियोटाइप नहीं होना चाहता. उससे निकलना है. अब हीरो होता है हमारा, अजय विजय नाम अलग है, बाकी कॉस्ट्यूम और चलने वलने का बोलने और सोचने का ढंग एक सा रहता है. बस नाम बदलता रहता है. मैं ऐसा नहीं कर सकता.
एक्टिंग से आगे
मैं तो फिल्म नहीं बना नहीं सकता क्योंकि मेरा दिमाग दो दो तीन चीजों पर नहीं चलता. मुझ से तो एक्टिंग करा लो...उतना ही आता है. वह कैसा भी करा लो.