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बलात्कार पर बढ़ती राजनीति

३ जुलाई २०१४

भारत में महिलाओं को बराबरी का दर्जा नहीं दिया जाता. या तो उन्हें देवी समझा जाता या पैर की जूती समझ कर रौंदा जाता है. जहां तक देवी के आसन पर बैठाकर पूजा करने का सवाल है, वह सिर्फ धर्म और दर्शन के क्षेत्र में ही होता है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

रोजमर्रा की जिंदगी में उनके स्वतंत्र अस्तित्व को ही स्वीकृति नहीं दी जाती. आज भी अधिकांश लोग उस महाभारत कालीन मानसिकता से मुक्त नहीं हो पाए हैं जिसके कारण द्रौपदी को अपनी संपत्ति समझ कर युधिष्ठिर ने जुए में दांव पर लगा दिया था. स्त्री किसी न किसी की संपत्ति है. वह परिवार की इज्जत भी है. इसलिए यदि किसी पुरुष या उसके परिवार से बदला लेना है तो इस काम को उसके खिलाफ हिंसक हमले करके या उस परिवार की स्त्री की सरेआम बेइज्जती करके अंजाम दिया जा सकता है. क्योंकि बलात्कार से बड़ी कोई बेइज्जती नहीं हो सकती, इसलिए अक्सर बलात्कार को सजा या बदले के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

भारत को 1947 में आजादी मिलने के बाद से अब तक देश में लोकतंत्र के नाम पर जिस तरह की विकृत राजनीतिक संस्कृति विकसित हुई है, उसकी अक्सर चर्चा होती रहती है. राजनीति और अपराध का चोली दामन का साथ हो गया है. आंकड़े बताते हैं कि हाल ही में निर्वाचित लोकसभा सदस्यों में से एक तिहाई का आपराधिक रिकॉर्ड है. लेकिन केवल अपराध जगत से राजनीति में आए लोग ही लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ करते हों, ऐसा नहीं है. संभ्रांत समझे जाने वाले नेता भी राजनीतिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए अपराध की भाषा का सहारा लेते हैं और साफ बच निकलते हैं. कहने को लोकतंत्र में हिंसा और जोर जबरदस्ती के लिए कोई स्थान नहीं, लेकिन भारत की राजनीतिक प्रक्रिया में इनकी भारी भूमिका देखने में आती है. दुर्भाग्य से यह भूमिका घटने के बजाय लगातार बढ़ती जा रही है. राजनीतिक पार्टियों का शीर्ष नेतृत्व या तो खुद इसके लिए जिम्मेदार है या फिर इसकी ओर से आंखें मूंदे है. पश्चिम बंगाल से दो बार लोकसभा के लिए चुने जाने वाले तापस पाल, जो बंगला सिनेमा के जाने माने अभिनेता भी हैं, के हालिया बयान और उन पर उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस की नेता और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की बेहद नर्म प्रतिक्रिया इसी कड़वी सचाई को एक बार फिर उजागर करते हैं. विडंबना यह है कि स्वयं महिला होने के बावजूद ममता बनर्जी ने उन्हें सजा देने के बजाय उनके प्रति ममता ही प्रदर्शित की है.

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बलात्कार के विरोध में प्रदर्शनतस्वीर: Reuters

तापस पाल ने अपने समर्थकों की एक सभा को संबोधित करते हुए अत्यंत आवेशपूर्ण भाषण दिया और उनका आह्वान किया किया कि वे विपक्षी मार्क्सवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं को सबक सिखाने के लिए उनके समूचे परिवार को अपने हिंसक हमलों का निशाना बनाएं. पाल ने कहा कि यदि किसी भी मार्क्सवादी कार्यकर्ता ने किसी तरह की ऐसी वैसी हरकत की, तो वे अपने युवा कार्यकर्ताओं को भेज कर उनके पूरे परिवार पर हमले कराएंगे और उन परिवारों की स्त्रियों का बलात्कार किया जाएगा. उन्होंने यह भी कहा कि वह अपनी रिवॉल्वर से खुद सीपीएम के लोगों और उनके परिवारों का सफाया कर देंगे. इस तरह का भाषण उन्होंने क्षणिक आवेश में आकर नहीं दिया, क्योंकि यही बातें उन्होंने उसी दिन एक दूसरी सार्वजनिक सभा में भी दुहराईं. किसी ने उनके इन भाषणों की वीडियो रिकॉर्डिंग कर ली जिसके कारण यह घटना प्रकाश में आ गई. इस बर्बरतापूर्ण भड़काऊ भाषण ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया. इसके बाद पहले तापस पाल ने अपनी पत्नी के जरिए माफी मांगी और फिर स्वयं खेद प्रकट किया. अखबारों और टीवी चैनलों में उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग उठी, लेकिन ममता बनर्जी ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि पाल ने माफी मांग ली है, अब मैं क्या उन्हें जान से ही मार दूं?

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव भी हाल ही में बलात्कार के संबंध में एक हल्की टिप्पणी कर चुके हैं कि लड़कों से गलती हो जाती है, तो क्या इसके लिए उन्हें फांसी दे दी जाए? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में एक मंत्री निहाल चंद खुद बलात्कार के आरोप का सामना कर रहे हैं. ममता बनर्जी भी कोलकाता की पार्क स्ट्रीट में हुए बलात्कार को ‘राजनीतिक साजिश' बता कर पीड़िता के प्रति हमदर्दी जताने के बजाय उसे ही कटघरे में खड़ा कर चुकी हैं. यानि राजनीतिक उद्देश्यों के लिए महिलाओं के खिलाफ स्पर्धापरक हिंसा के घिनौने खेल को पुरुष और महिला नेताओं की ओर से बराबर की स्वीकृति मिल रही है. तापस पाल के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के अनुसार मुकदमा दर्ज होना चाहिए और यदि ऐसा हुआ तो उनकी गिरफ्तारी तय है. लेकिन जब पश्चिम बंगाल में उन्हीं की पार्टी का शासन है तो फिर बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा? ममता बनर्जी ने उनकी माफी को स्वीकार करके यह स्पष्ट कर दिया है कि वह पाल को पार्टी से निलंबित करने जैसा सामान्य कदम उठाने को भी तैयार नहीं हैं. उनकी पार्टी के प्रवक्ता कह रहे हैं कि वह पाल के बयान पर बहुत गुस्से में हैं, लेकिन स्वयं ममता बैनर्जी की प्रतिक्रिया से ऐसा जाहिर नहीं होता. जब महिला और पुरुष राजनीतिक नेताओं के बीच महिलाओं के विरुद्ध हिंसा और बलात्कार को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने पर मतैक्य हो, ऐसे में लोकतांत्रिक राजनीति की जगह का सिकुड़ना स्वाभाविक है.

ब्लॉगः कुलदीप कुमार

संपादनः ए जमाल