कलंक की तरह बलात्कार का झूठा केस
११ सितम्बर २०१४सॉफ्टवेयर कर्मचारी आलोक वर्मा का कहना है कि वह देश के नए बलात्कार विरोधी कानून के बेगुनाह पीड़ित हैं. 29 वर्षीय आलोक को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी जब उनकी प्रेमिका के माता पिता ने उनके खिलाफ यौन उत्पीड़न के झूठे आरोप दर्ज कराए. आलोक कहते हैं कि उन्हें याद है कि जब उन्होंने अपनी प्रेमिका के साथ संबंध खत्म कर लिए तो उसने शिकायत वापस ले ली. आलोक बताते हैं कि उनके माता पिता चाहते थे कि रिश्ता खत्म कर दिया जाए, लेकिन उन्हें नई नौकरी मिलने में महीनों लग गए और उनकी प्रतिष्ठा पर जो दाग लगा है वह अब तक नहीं छूटा है. आलोक कहते हैं, "बलात्कार का आरोप लगाना बेहद आसान है, लेकिन सालों तक दामन पर दाग रहता है. आज भी मेरे पिता का सिर शर्म से झुका है. दिल्ली बलात्कार कांड के बाद हम जिस तरह के माहौल में रह रहे हैं वह डरावना है. जैसे ही बलात्कार की शिकायत दर्ज होती है हल्ला मचने लगता है."
फंसाने के लिए झूठा आरोप
2012 के दर्दनाक बलात्कार और हत्याकांड के बाद पिछले साल मार्च में सरकार ने महिला अपराध से जुड़े कानून में बड़े बदलाव किए. पेरामेडिकल की छात्रा के साथ बलात्कार की वारदात के बाद देश ही नहीं विदेशों में भी इसकी निंदा हुई. कानून में कई तरह के नए अपराधों को शामिल किया गया है जिनमें पीछा करना, ताक झांक और तेजाबी हमले शामिल हैं और कानून के तहत यौन उत्पीड़न के संदिग्ध आरोपियों को प्रारंभिक जांच के बिना हिरासत में लिए जाने का अधिकार है.
नए कानून के समर्थकों का कहना है कि कानून पीड़ितो को ज्यादा सशक्त बनाता है जिस वजह से वे शिकायत दर्ज करा सकती हैं. साल 2013 में दिल्ली में बलात्कार के 1,636 मामले दर्ज किए गए जबकि 2012 में 706 ही दर्ज करवाए गए थे. लेकिन आलोचक अपराध के आंकड़ों का इस्तेमाल बलात्कार कानून के कथित दुरुपयोग के लिए करते हैं.
एक तरफा कानून?
आधिकारिक आकंड़ों के मुताबिक दिल्ली में सजा की दर 2012 में 49 फीसदी थी जो पिछले साल घटकर 27.1 फीसदी हो गई. द हिंदू अखबार की जांच के मुताबिक दिल्ली के जिन 40 फीसदी मामलों में फैसला आया, जजों ने कहा कि सेक्स सहमति से हुआ था और ज्यादातर मामलों में महिला के माता पिता ने शिकायत दर्ज कराई. यह शिकायत उस व्यक्ति के खिलाफ होती है जिसके साथ उनकी बेटी भाग गई हो. रिपोर्ट कहती है 25 फीसदी ऐसे मामले हैं जिनमें मर्द सगाई के बाद या फिर शादी का वादा करने के बाद मुकर गए.
सहायक प्रोफेसर सलमान अल्वी ने बताया कि उन्हें थोड़े से समय के लिए जेल जाना पड़ा था जब उनकी प्रेमिका ने शादी नहीं करने पर बलात्कार के झूठे मामले में फंसाने की धमकी दी थी. वे कहते हैं, "कानूनी प्रणाली पुरुषों के खिलाफ पक्षपातपूर्ण है."
कुछ कार्यकर्ताओं का कहना है कि बलात्कार के आरोप का खतरा महिलाओं को ऐसे पुरुषों से बचाने के लिए करता है जो सेक्स के लिए झूठ बोलने को तैयार हैं. अल्वी इस बात से सहमत नहीं हैं, वे कहते हैं, "बिना शादी के महिलाएं शारीरिक संबंध से इनकार कर सकती हैं. अगर वे ऐसा नहीं करती हैं तो इसे सहमति के तौर पर लेना चाहिए."
वकील और कार्यकर्ता वृंदा ग्रोवर अल्वी की चिंताओं को समझती हैं लेकिन उनके लिए यह दोनों लिंगों के लिए समान व्यवहार का मुद्दा है. उन्होंने द हिंदू अखबार से कहा, "मेरे विचार से यह बलात्कार नहीं हो सकता. एक तरफ तो महिलाएं बराबरी चाहती हैं. तो हम दोनों तरफ से तो नहीं बोल सकते."
पुरुषों के अधिकारों के लिए काम करने वाले एक संगठन 'सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन' के स्वरूप सरकार का कहना है, "बलात्कार की शिकायत बिना मेडिकल टेस्ट की नहीं दर्ज की जानी चाहिए और अगर उसमें देरी हुई हो तो भी."
एए/एएम (डीपीए)