बर्लिन मेले में रिकॉर्ड भागीदारी
१८ जनवरी २०१३ग्रीन वीक के नाम से जाना जाने वाला बर्लिन का अंतरराष्ट्रीय कृषि मेला इस साल 78वीं बार हो रहा है. मेले के दौरान कृषि और खाद्य पदार्थों का प्रदर्शन तो है ही, देहातों में छुट्टी बिताने की संभावना भी दर्शकों को दिखाई जा रही है. 18 से 27 जनवरी तक होने वाले मेले के दौरान कृषि विशेषज्ञ और राजनीतिज्ञ 300 से ज्यादा गोष्ठियों में आधुनिक कृषि और खाद्य उद्योग के बारे में चर्चा करेगें. पिछले साल मेला देखने करीब सवा चार लाख दर्शक आए थे, जिनमें एक लाख से ज्यादा कृषि उद्योग से जुड़े लोग थे. इस बार उनकी तादाद और बढ़ने की उम्मीद की जा रही है.
देहाती जिंदगी की झलक
ग्रीनवीक के दर्शकों के लिए असली चुनौती है मेले के 26 हॉल. पैदल इन हॉलों को देखने के लिए उन्हें आरामदेह जूते की जरूरत होगी. इन हॉलों में वे पूरी दुनिया के 1,00,000 से ज्यादा पकवानों और खाद्य पदार्थों का मजा ले सकते हैं. पशुओं को दिखाने का अलग हॉल है जो दर्शकों में काफी लोकप्रिय है. वहां सबकुछ फार्महाउस जैसा है, सब कुछ देहाती जिंदगी की गंध देता. वहां जर्मनी में पैदा हुए गाय, बैल, भेड़ और घोड़े बंधे हैं.
इस बार भी बर्लिन का कृषि मेला खुद अपना रिकॉर्ड तोड़ रहा है. इस बार सबसे ज्यादा विदेशी प्रदर्शक बर्लिन आ रहे हैं, 67 देशों से 1,630 प्रदर्शक. पहली बार कोसोवो और सूडान के प्रतिनिधि भी हैं. बर्लिन मेले का नियमित विकास कृषि और खाद्य क्षेत्र में हो रहे अच्छे विकास को भी दिखाता है. जर्मनी में पिछले साल विकास दर 4.1 फीसदी रही जिसकी वजह मुख्य रूप से जर्मन कृषि पदार्थों का निर्यात रहा. जर्मन किसान संघ के अध्यक्ष योआखिम रुकवीड कहते हैं कि मेड इन जर्मनी ब्रांड के तहत सिर्फ औद्योगिक उत्पाद ही नहीं बेचे जा रहे हैं बल्कि खाद्य पदार्थ भी बेचे जा रहे हैं.
मुनाफे पर दबाव
इसका असर जर्मनी के कृषि उद्योग पर भी पड़ रहा है. पिछले साल खाद्य उद्योग में 6,500 नई नौकरियां दी गईं. इस बीच यह जर्मनी का चौथा सबसे बड़ा उद्योग बन गया है. दो साल के संकट के बाद कृषि क्षेत्र की हालत बेहतर हो रही है. औसत मुनाफा 2011-12 में बढ़कर 39,700 यूरो हो गया है. इसे औसत आय भी माना जाता है.
लेकिन उस पर दबाव भी है. खाद्य उद्योग संघ के अध्यक्ष युर्गेन अब्राहम कहते हैं कि खाद्य उद्योग में महंगे होते कच्चे माल के अलावा बिजली और परिवहन के बढ़ते खर्चों के कारण मुनाफे पर दबाव है. जर्मनी में खाद्य पदार्थ की कीमतें कम हैं. लोग अपनी औसत आय का 11 फीसदी खाद्य पदार्थों पर खर्च करते हैं और आने वाले दिनों में उसमें बदलाव की संभावना नहीं है.
सामान किफायती है, क्वालिटी अच्छी है, लेकिन खाद्य पदार्थों के मामले में पारदर्शिता की कमी है. उपभोक्ता संगठन के गैर्ड बिलेन कहते हैं कि खाद्य पदार्थों के पैकेट में सारी जानकारी स्पष्ट शब्दों में लिखी होनी चाहिए. उपभोक्ता यही चाहता है कि उसे पता चले कौन सा सामान कहां से आया है और उसमें क्या-क्या है. बिलेन शिकायत करते हैं कि दूध के पैकेट पर ब्रानडेनबुर्ग लिखा होता है लेकिन उसकी फिलिंग कोलोन में होती है और दूध संभवतः कहीं और का होता है. अब इस तरह के मामलों की शिकायत एक इंटरनेट पोर्टल पर की जा सकती है. बहुत से उत्पादकों ने खुली आलोचना के बाद अपनी आदतें बदलनी शुरू कर दी हैं.
रिपोर्ट: महेश झा (डीपीए, डीएपीडी)
संपादन: ईशा भाटिया