चर्चों के जीवन को खतरा
२२ अगस्त २०१४युर्गेन मोल्टमन, 88 साल के हैं, धर्मशास्त्र के प्रोफेसर हैं. उनके दिमाग में लगातार एक ही बात चलती रहती है कि जर्मनी के प्रोटेस्टेंट चर्चों का भविष्य कैसा होगा. वह कहते हैं, "ब्रेमन में पारंपरिक प्रोटेस्टेंट इलाके का मैं पांच साल तक मंत्री था. और चर्च को मैंने उपदेशक की नजर से देखा. लेकिन पिछले 50 साल में मैं एक सामान्य व्यक्ति रहा हूं और अब चर्च जाने वाले लोगों की नजर से इसे देखता हूं और बिशप के साथ अन्य चर्च कर्मचारियों को प्रभावित करने की कोशिश करता हूं, जो ऊपर से देख रहे हैं."
मोल्टमन मानते हैं कि प्रोटेस्टेंट चर्च को खुद को सरकार से दूर करने की जरूरत है. जर्मनी में प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक दोनों ही चर्च सरकार से जुड़े हैं. जर्मन सरकार उनके जरिए ईसाई श्रद्धालुओं से विशेष कर लेती है. इसके अलावा कई फ्री चर्च हैं, जो प्रोटेस्टेंट के अंतर्गत हैं लेकिन आजाद हैं. ये चर्च अपने श्रद्धालुओं के दान से चलते हैं. मोल्टमन ने डीडबल्यू से बातचीत में कहा कि बहुसांस्कृतिक समाज में सरकार से जुड़े चर्च अब लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं करते और उन्हें बने रहने के लिए अपने पैरों पर खड़े रहने की जरूरत है.
रीति बनाम श्रद्धा
सरकार से अलग होना तब तक संभव नहीं है जब तक कि चर्च में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या न बढ़ जाए. वैसे भी धर्म के मामले में स्वेच्छा से जुड़ाव ही बेहतर होता है. मोल्टमन भी यही मानते हैं, "मैं सोचता हूं कि हमें स्वैच्छिक चर्च मिलेगा, यह अच्छा है. इसका मतलब है पुरोहितों के कड़े आधिपत्य वाले बड़े चर्चों का अंत और पादरियों के इलाकों की उनके सदस्यों द्वारा ही देख रेख."
स्वतंत्र चर्चों का चलन अमेरिका में ज्यादा है. यहां के विलो क्रीक जैसे बड़े चर्चों में हर हफ्ते 20,000 से ज्यादा लोग जमा होते हैं. जबकि जर्मनी में इनकी संख्या बहुत कम है. हालांकि जर्मनी में भी स्वतंत्र चर्चों में स्वेच्छा से काम करने वाले लोग ही ज्यादा होते हैं. वहां बड़े होने के बाद बपतिस्मा होता है ताकि व्यक्ति सोच समझ कर चर्च की सदस्यता ले जबकि सरकारी चर्चों में पैदा होते ही बपतिस्मा हो जाता है.
दक्षिण कोरिया में चर्चों का आकार छोटे घरों जितना होता है. जर्मनी में चर्च की नीतियां तो बड़ी हैं लेकिन मिशनरी काम कम. इसलिए जरूरी है कि पादरियों का इलाका मिशनरी काम बढ़ाए और लोगों को साथ जोड़े.
इतना ही नहीं चर्च के पास अक्सर बड़ी इमारतें होती हैं और उसमें कई तरह की कक्षाएं, वर्कशॉप या कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं, जो जरूरी नहीं कि चर्च या ईसाई धर्म से जुड़े हों. उसमें बाइबिल समझने वाली बहस हो सकती है तो शतरंज सिखाने वाली ट्रेनिंग भी या फिर गाना सिखाने वाली कोई वर्कशॉप.
रिपोर्टरः क्लाउस क्रैमर/आभा मोंढे
संपादनः ए जमाल