बदला न बन जाए तिकरित की लड़ाई
५ मार्च २०१५करीब 30,000 सुरक्षा बलों ने तिकरित शहर को तीन तरफ से घेरा है. कार्रवाई सोमवार को शुरू हुई. सैन्य अभियान की अगुवाई कर रहे इराकी सेना के एक वरिष्ठ कमांडर के मुताबिक जिहादियों की सप्लाई लाइन काटने की कोशिश की जा रही है. अधिकारियों को लगता है कि इस तरह आईएस को बाहरी मदद और हथियार नहीं मिल पाएंगे. तिकरित जून 2014 से आईएस के कब्जे हैं.
सैन्य अभियान की जानकारी देते हुए इराकी सेना के लेफ्टिनेंट जनरल अब्देल आमिर अल-जैदी ने कहा, अगला चरण होगा कि "शहर को पूरी तरह घेर लिया जाए, उनके लिए घुटन जैसे हालात बना दिये जाएं और फिर हमला किया जाए."
जातीय संहार की आशंका
वहीं अमेरिका ने चेतावनी देते हुए कहा है कि कार्रवाई में जातीय हिंसा नहीं होनी चाहिए. बुधवार को व्हाइट हाउस के प्रवक्ता जोश ईयर्नेस्ट ने कहा, "यह जरूरी है कि ऑपरेशन का इस्तेमाल कुछ खास लोग जातीय नजरिये से बदला लेने के लिए न करें. इससे देश का ताना बाना टूट जाएगा और अपने देश के सामने मौजूद खतरों से लड़ने में इराकियों की क्षमता कमजोर पड़ेगी."
आईएस के आतंकवादी सुरक्षा बलों को रोकने के लिए कार बमों, रोडसाइड बमों और शूटरों का सहारा ले रहे हैं. जिहादी खुले में लड़ने से बच रहे हैं और आबादी वाले इलाकों में घुस रहे हैं.
ईरान की मदद
इस सैन्य अभियान में इराकी सेना, शिया मिलिशिया और स्वयंसेवी हिस्सा ले रहे हैं. जमीन पर लड़ने वालों को ईरान और इराकी लड़ाकू विमानों और हेलीकॉप्टरों से मदद मिल रही है.
अमेरिका के सैन्य प्रमुख जनरल मार्टिन डिम्पसी के मुताबिक, "यह ईरानी समर्थन को दिखाने वाली सबसे पुख्ता कार्रवाई है. साफ कहूं तो इससे दिक्कत तभी हो सकती है अगर इसका नतीजा जातिवादी हिंसा हो." मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने सैन्य अभियान के जातिगत हिंसा में बदलने की आशंका जताई है.
बदले का डर क्यों?
बीते साल जून में जब इस्लामिक स्टेट ने तिकरित को कब्जे में लिया था तो वहां शिया और दूसरे समुदाय के लोगों की हत्या की गई. आरोप हैं कि कुछ सुन्नी कबीलों ने भी आईएस के साथ मिलकर इन हत्याओं को अंजाम दिया. अब आशंका है कि कहीं सैन्य अभियान की आड़ में बदले की कार्रवाई न हो.
इराकी प्रधानमंत्री हैदर अल-अबादी भी मानते हैं कि तिकरित का संघर्ष जातीय बन चुका है. संसद में अल अबादी ने कहा, "इस लड़ाई में कोई तटस्थ पक्ष नहीं है, जो कोई यह कहता है कि वह तटस्थता चुनता है वो आईएस की तरफ है."
ह्यूमन राइट्स वॉच ने प्रधानमंत्री के बयान को चिंताजनक करार दिया है. राजधानी बगदाद से 160 किलोमीटर दूर उत्तर में बसा तिकरित सुन्नी बहुल इलाका है. इराक के पूर्व राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन इसी शहर के थे. सद्दाम की बाथ पार्टी आईएस में मिल चुकी है.
तुर्की की मदद
सैन्य अधिकारियों को लगता है कि तिकरित को नियंत्रण में लेना मील का पत्थर साबित होगा. अगर इसमें सफलता मिली तो अगला निशाना मोसुल शहर होगा. मोसुल इराक में आईएस का मुख्य गढ़ माना जाता है. इस बीच तुर्की ने भी इराक को हर तरह की मदद देने का वादा किया है. बीते साल तक तुर्की पर आईएस को समर्थन देने के आरोप लग रहे थे. लेकिन अब अंकारा के नजरिये में बदलाव दिख रहा है. मंगलवार को तुर्की के दो मालवाहक विमान सैन्य सामग्री लेकर बगदाद पहुंचे.
ओएसजे/आरआर (एएफपी, डीपीए)