बदतर हुई यारमुक शरणार्थी कैंप की हालत
७ अप्रैल २०१५यारमुक में लड़ाई पिछले बुधवार को शुरू हुई जब कट्टरपंथी इस्लामिक स्टेट के छापामार कैंप में घुस गए. इसके साथ सीरिया में चल रहे गृहयुद्ध में आईएस पहली बार सत्ता केंद्र के इतने करीब पहुंचा है. उसके बाद शुरू हुई भारी लड़ाई ने यारमुक कैंप के 18,000 लोगों की पहले से ही खराब हालत को बद से बदतर बना दिया है. कैंप में रहने वाले शरणार्थी पहले से ही खाना, दवा और पानी की कमी का सामना कर रहे थे.
बिगड़ती स्थिति के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक बुलाई गई जिसमें फलीस्तीनी शरणार्थियों की मदद के लिए बनी यूएन एजेंसी के प्रमुख पियेर क्राएनबूल ने रिपोर्ट दी और कैंप में मानवीय स्थिति को पूरी तरह भयानक बताया. सुरक्षा परिषद ने जीवनरक्षक सहायता और फलीस्तीनियों को कैंप से सुरक्षित बाहर निकालने, शरणार्थियों की सुरक्षा और कैंप में मानवीय सहायता पहुंचाने की संभावना पैदा करने का आह्वान किया है. परिषद ने कहा कि वह इस लक्ष्यों को हासिल करने के लिए दूसरे उपायों पर विचार करेगी.
क्रेएनबूल ने लड़ाकों पर असर रखने वाले राजनीतिक और धार्मिक नेताओं से कहा है कि उन पर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों और मानवीय कानूनों का पालन करने के लिए दबाव डाला जाए, जिसमें आम लोगों की सुरक्षा भी शामिल है. संयुक्त राष्ट्र में फलीस्तीनी राजदूत रियाद मंसूर ने सुरक्षा परिषद से अपील की है कि शरणार्थियों को कैंप से सुरक्षित बाहर निकाला जाए. उन्होंने सभी देशों से अपील की वे शरणार्थियों को सीरिया या किसी दूसरे देश के अधिक सुरक्षित इलाके में ठहराने में मदद करें.
सोमवार को इलाके में हुई लड़ाई के बाद एक्टिविस्ट हातेम अन डिमाश्की और ब्रिटेन स्थित सीरियन ऑबजर्वेटरी ने कहा है कि सीरिया सरकार के विमान कैंप पर बमबारी कर रहे हैं. कैंप के अंदर चल रही लड़ाई मुख्य रूप से इस्लामी स्टेट और सीरियाई राष्ट्रपति का विरोध करने वाले फलीस्तीनी गुट के बीच हो रही है. सीरियन ऑबजर्वेटरी के प्रमुख रामी अब्दुररहमान का कहना है कि कैंप के 90 फीसदी हिस्से पर इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों का कब्जा हो गया है. फलीस्तीनी अधिकारियों के अनुसार आईएस के लड़ाके नुसरा फ्रंट की मदद ले रहे हैं जबकि नुसरा फ्रंट ने कहा है कि वे तटस्थ हैं.
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि यारमुक में फंसे लोगों में बड़ी संख्या में बच्चे भी हैं. कैंप की पिछले दो साल से सरकारी सैनिकों ने नाकेबंदी कर रखी है जिसकी वजह से वहां भूखमरी और बीमारी का बोलबाला है. कैंप में सरकारी सैनिकों और असद विरोधी उग्रपंथियों के बीच भारी लड़ाई होती रही है.
एमजे/आरआर (एपी)