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बढ़ रहे हैं टीनएज गर्भपात के मामले

विश्वरत्न श्रीवास्तव, मुंबई२७ मई २०१५

आर्थिक उदारीकरण और वैश्वीकरण के दौर में भारतीय समाज तेजी से बदल रहा है. शादी और सेक्स से जुड़ी भ्रांतियां खंडित हो रही हैं तो कुछ सामाजिक समस्याएं भी उभरने लगी हैं. कम उम्र में सेक्स और गर्भपात की समस्या भी उनमें एक है.

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तस्वीर: Zsolnai Gergely/Fotolia

भारत में सेक्स पर खुलेआम बात करना आम बात नहीं है, इसके बावजूद सेक्स-संबंधी गतिविधियों में आए परिवर्तन की रफ्तार चौंकाने वाली है. खासतौर पर मुंबई के किशोरों में सेक्स-संबंधी गतिविधियों और गर्भपात के मामलों में चिंताजनक वृद्धि दर्ज की गयी है.

टीनएज प्रेग्नेंसी के बढ़ते मामले

आर्थिक उदारीकरण के चलते हो रहे सामाजिक बदलाव को मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु और दिल्ली जैसे शहरों में देखा जा सकता है. इन बदलावों से कुछ समस्याएं भी पैदा हो रही हैं. मुंबई में स्कूली छात्राओं द्वारा गर्भपात करवाए जाने के मामले मे हुई वृद्धि समाजशास्त्रियों और नीतिशास्त्रियों को बेचैन करने वाली है. वर्ष 2014-15 में 15 साल से कम उम्र की लड़कियों द्वारा गर्भपात करवाए जाने के मामलों में 67 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है. सूचना का अधिकार कानून के तहत मुंबई महानगरपालिका से जुटाई गयी जानकारी के मुताबिक जिन 31,000 महिलाओं ने गर्भपात करवाया था, उनमें 1,600 की उम्र 19 साल से कम थी.

मुंबई महानगरपालिका द्वारा शहर के सभी लाइसेंस प्राप्त मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी केन्द्रों से जुटाए गए आंकड़ों ने बदल रहे समाज और चुनौतियों पर से पर्दा उठाया है. इन आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2013-14 में 15 साल से कम उम्र की 111 लड़कियों ने गर्भपात कराया था. वर्ष 2014-15 में यह आंकड़ा बढ़कर 185 तक पहुंच गया. इतना ही नहीं, 15 से 19 साल की लड़कियों द्वारा गर्भपात कराए जाने के मामलों में भी पिछले साल के मुकाबले 47 फीसदी की वृद्धि हुई है. निगम अधिकारियों ने इस वृद्धि को बेहतर एवं ज्यादा सही रिपोर्टिंग का नतीजा बताया है. एक दिलचस्प तथ्य सामने आया है कि अंधेरी ईस्ट और वेस्ट, 6000 मामलों के साथ गर्भपात के केंद्र के तौर पर उभरे हैं. यह क्षेत्र मुंबई के संभ्रांत इलाकों में गिना जाता है. फिल्म और टीवी जगत से जुड़े ज्यादातर लोग यहीं रहते हैं.

बेहतर सेक्स शिक्षा की जरूरत

स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार कम उम्र में गर्भधारण करने से किशोरियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है. डॉ. रमा सक्सेना कहती हैं कि बेहतर और उचित सेक्स शिक्षा से हालात सुधर सकते हैं. उनका मानना है कि स्कूल जाने की उम्र में प्रेग्नेंट होने के पीछे बच्चों का सेक्स के प्रति जिज्ञासा और सुरक्षित सेक्स के प्रति उनकी अज्ञानता है. शिक्षिका कविता शर्मा मानती है कि बच्चों में सेक्स के प्रति सहज जिज्ञासा होती है, इसके लिए वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में उचित ध्यान नहीं दिया गया है. बदल रहे समाज में बच्चों को शिुक्षित करने में स्कूलों के साथ ही पालकों की भी जिम्मेदारी है.

वैसे कम उम्र में गर्भधारण भारत के लिए नयी बात नहीं है. बालविवाह का चलन सदियों से रहा है. ग्रामीण इलाकों में आज भी बच्चियां 14-15 साल की उम्र में मां बन जाती हैं. लेकिन विवाह पूर्व सेक्स और गर्भपात के मामले इतने नहीं होते थे. समाजशास्त्री डॉ. साहेबलाल इसके पीछे महानगरीय संस्कृति को भी जिम्मेदार मानते हैं. एकल परिवार वाले शहरी समाज में मां-बाप दोनों कामकाजी होते हैं. ऐसे में बच्चों की न तो उदार निगरानी हो पाती है और न ही उनका सही मार्गदर्शन हो पाता है. टीवी और इन्टरनेट पर सेक्स सामग्री बच्चों की पहुंच से दूर नहीं है. ऐसे में किशोरों में सेक्स के प्रति स्वाभाविक जिज्ञासा उन्हें गर्भपात केन्द्रों तक पहुंचा देता है. संभव है कि जो आंकड़े सामने आये हैं वह अधूरे हों क्योंकि कम उम्र में गर्भधारण करने वाली ज्यादातर लड़कियां गोपनीयता चाहती हैं. इसके चलते वे ऐसे प्राइवेट क्लिनिक्स में जाना पसंद करती हैं जो गर्भ ही नहीं उससे जुड़े तमाम रिकॉर्ड भी नष्ट कर दे.

सेक्स को लेकर पश्चिमी देशों की सोच और भारतीय सोच में कभी जमीन–आसमान का अंतर हुआ करता था. धीरे धीरे यह अंतर कम हो रहा है. तमाम आधुनिकताओं के बावजूद भारतीय समाज में आज भी विवाहपूर्व सेक्स को उचित नहीं माना जाता. लेकिन पिछले बीस सालों में भारत में एक ऐसा वर्ग तैयार हो गया है जो सेक्स को लेकर पश्चिमी सोच को ज्यादा व्यावहारिक मानता है. पहले शादी, फिर सेक्स और उसके बाद प्यार की परम्परागत सोच को दकियानूसी मानने वाले युवाओं की संख्या कम नहीं है. ऐसे युवाओं में खासतौर पर किशोरों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है जो पहले सेक्स फिर शादी को व्यावहारिक समझते हैं. स्नातक की पढ़ाई कर रहे 19 वर्षीय रुपेश 'नो सेक्स' की बजाय 'सेफ सेक्स' के लिए अभियान चलाने की आवश्यकता जताते हैं.