बड़े सोलर प्लेन की सफल उड़ान
३ जून २०१४स्विट्जरलैंड के पायने इलाके में जर्मन टेस्ट पायलट मार्कुस शेरडेल सोलर इम्पल्स 2 के कॉकपिट में सवार हुए. चमचमाती धूप के बीच उन्होंने विमान का इंजन स्टार्ट किया और रनवे पर फर्राटा भरते विमान को हवा में उठा दिया. इसके बाद विमान सवा दो घंटे तक तमाम कलाबाजियां दिखाता हुआ उड़ता रहा.
परफेक्ट लैंडिंग के बाद शेरडेल ने कहा, "सब कुछ वैसे ही हुआ जिसकी उम्मीद थी. हमें और परीक्षण उड़ानें भरनी होंगी, शुरुआत अच्छी रही."
बेहद हल्के लेकिन अति मजबूत कार्बन फाइबर से बना यह विमान 2.3 टन का है. विमान के डैनों में 17,248 सोलर सेल लगे हैं जो 17.5 हॉर्सपावर की इलेक्ट्रिक मोटर को घुमाते हैं. विमान के एक डैने से दूसरे डैने के छोर की लंबाई 72 मीटर है. यह दुनिया के सबसे बड़े कमर्शियल विमान ए380 के बराबर है.
कंपनी इससे पहले 2010 में सोलर इम्पल्स नाम का विमान बना चुकी है. वह सौर ऊर्जा से चलने वाले दुनिया का पहला विमान था. उसने लगातार 26 घंटे उड़ान भरी. विमान दिन में सौर ऊर्जा से उड़ता है और इसी दौरान वो बैटरी भी चार्ज करता है. रात के अंधेरे में इसी बैटरी से मोटर चलती है. यह विमान अटलांटिक महासागर पार कर यूरोप से अमेरिका जा पहुंचा.
सोलर इम्पल्स 2 अपने पहले मॉडल से कहीं ज्यादा बड़ा विमान है. इंजीनियर चाहते हैं कि यह विमान बिना रुके लगातार 120 घंटे की उड़ान भरे. यानी पांच दिन, पांच रात तक लगातार उड़ता रहे. इसके सहारे पूरी दुनिया का चक्कर लगाने की चाहत है. विमान की ग्लोबल उड़ान मार्च 2015 में मध्य पूर्व के देश से शुरू होगी. फिर विमान अरब सागर पार करता हुआ भारत के ऊपर उड़ेगा और वहां से आगे बढ़ता हुआ चीन और प्रशांत महासागर पार करेगा. इसके बाद ये अमेरिका के ऊपर उड़ा भरेगा और फिर यूरोप होता हुआ मध्य पूर्व पहुंचेगा.
रात में स्पीड बढ़ाना अब भी चुनौती है. बैटरी के सहारे उड़ते समय विमान की रफ्तार 46 किलोमीटर प्रति घंटा रखनी पड़ रही है. स्पीड बढ़ाते ही बैटरियां तेजी से डिस्चार्ज होने का खतरा है. विमान में आभासी कोपायलट लगाया गया है. 120 घंटे की उड़ान के दौरान पायलट अपनी बिजनेस क्लास जैसी आरामदायक सीट पर एकाध घंटे की झपकी भी ले सकता है. खतरे की आशंका होते ही कोपायलट मुख्य पायलट को जगा देगा.
सोलर प्लेन बनाने का यह ख्वाब स्विस एयरफोर्स के पूर्व पायलट आंद्रे बोर्शबेर्ग और वैज्ञानिक बेट्रांड पिकार्ड ने देखा. दोनों ने 1999 में गर्म हवा के गुब्बारे से पूरी दुनिया का चक्कर लगाने का रिकॉर्ड भी बनाया. इस कारनामे को अंजाम देने के बाद दोनों ने सौर ऊर्जा से उड़ने वाला विमान बनाने की पहल की. हालांकि सभी विमान निर्माता कंपनियों ने उनके आइडिया को खारिज कर दिया. हर जगह से ना सुनने के बाद बोर्शबेर्ग और पिकार्ड ने सोलर इम्पल्स की स्थापना की. एक दशक बाद वो साबित कर रहे हैं कि उनका ख्वाब कोई कोरी कल्पना नहीं थी.
ओएसजे/एजेए (एएफपी)