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बच्चों और लड़कियों की भर्ती कर रहा है आईएस

२६ जनवरी २०१७

इस्लाम एक्सपर्ट सुजाने श्रोएटर का कहना है कि आतंकी संगठन आईएस अब महिलाओं और बच्चों की भर्ती कर रहा है. यह काम सोशल मीडिया और यूट्यूब के जरिए हो रहा है.

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Schweiz Ägypten Vater rettet das Kind vor IS
पिता ने बचाया आईएस के चंगुल सेतस्वीर: DW

पिछले महीनों में जर्मनी सहित यूरोपीय देशों में हुए कई हमलों में किशोर और लड़कियां शामिल रही हैं. फ्रैंकफर्ट में ग्लोबल इस्लाम रिसर्च सेंटर की प्रमुख सुजाने श्रोएटर का कहना है कि आईएस ने पिछले महीनों में महिलाओं और बच्चों की भर्ती में महारत हासिल कर ली है. उनका कहना है कि सोशल मीडिया और यूट्यूब पर हो रहा व्यापक प्रचार असर दिखा रहा है. श्रोएटर के अनुसार यह बात आईएस के साथ सहानुभूति रखने वाली हनोवर शहर की 16 साल की सफिया एस. के मामले में भी दिखाती है जिसने एक पुलिसकर्मी पर छुरे से हमला कर दिया था.

बच्चों और किशोरों को लुभाने के लिए इस्लामी कट्टरपंथी चुनिंदा मिसालों का इस्तेमाल कर ऐसी कहानी सुनाते हैं जिसमें संकेत दिया जाता है कि पश्चिमी दुनिया में दबाए जा रहे मुसलमानों की जिंदगी हताशापूर्ण है. श्रोएटर के अनुसार, "एक ऐसी स्थिति पेश की जाती है जिसमें जिहाद को इस्लामी कर्तव्य बताया जाता है." इस्लाम एक्सपर्ट का कहना है कि सफिया जैसी लड़कियां इन कहानियों पर भरोसा कर लेती हैं.

Susanne Schröter vom Institut für Ethnologie Universität Frankfurt
सुजाने श्रोएटरतस्वीर: Privat

सुजाने श्रोएटर की राय में महिलाओं और बच्चों की भर्ती में आई तेजी का संबंध पश्चिम एशिया में आईएस की लगातार तय होती हार से है. इराक और सीरिया में खिलाफत कायम करने में नाकाम रहने के बाद कट्टरपंथी अपने इस विचार को छोड़ रहे हैं कि औरतें लड़ती नहीं, वे सिर्फ लड़ाके पैदा करती है. श्रोएटर के अनुसार, "ये प्रतिमान में बदलाव है जो हम देख रहे हैं." अब हर किसी से जिहाद में शामिल होने को कहा जा रहा है. कुछ समय से इसके लिए लुम्पेनजिहाद शब्द का इस्तेमाल हो रहा है, जिसके पीछे बेरोजगार और नकारा युवा होंगे.

सुजाने श्रोएटर का कहना है कि इस विकास की रोशनी में संभावित हमलों की रोकथाम के लिए बच्चों और युवाओं के साथ बातचीत की जानी चाहिए. लेकिन साथ ही अपराध होने के बाद वे सख्त सजा की हिमायत करती हैं ताकि यह संदेश जाए कि अपराध करने वाले सजा से मुक्त नहीं रह सकते.

एमजे/एके (केएनए)