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आईने से परेशान बंदर

११ जनवरी २०१५

दो साल की उम्र में ही बच्चे आईने में खुद को पहचानने लगते हैं. बंदरों में भी यही देखा गया है. लेकिन बंदर आईना देख के परेशानी में पड़ जाते हैं.

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जापान के एक तीर्थस्थल पर तीन बंदरों की प्रतिमातस्वीर: imago/imagebroker

आम तौर पर बंदर आईना देख कर समझ नहीं पाते कि उसमें उन्हीं का प्रतिबिंब नजर आ रहा है. अब चीन की एक शोध टीम ने यह साबित कर दिया है कि अगर कोशिश की जाए, तो बंदरों को यह सिखाया जा सकता है. शोध के दौरान बंदरों के चहरे पर सियाही से एक निशान बनाया गया. वे इस निशान को आईने में ही देख सकते थे. इस 'मिरर टेस्ट' को पास करने के लिए उन्हें चहरे पर लगे इस निशान को छूना था. ऐसा करने पर इनाम के तौर पर उन्हें फल दिए जाते.

शुरू में लेजर किरणों का सहारा लिया गया. निशान वाली जगह पर जब लेजर के कारण खुजली होने लगती, तो बंदर उसे छू लेते और आईने में देख कर समझ जाते. कुछ हफ्तों तक ऐसा करने के बाद लेजर के इस्तेमाल को बंद कर दिया गया. इसके बावजूद बंदर आईने में देख कर सियाही के निशान को पहचान लेते. फलों और शाबाशी के लालच में उनका ध्यान केंद्रित रहता.

चतुर है इंसान

शंघाई की न्यूरो वैज्ञानिक नेंग गौंग बताती हैं कि आईना देखने की क्षमता हर प्राणी में नहीं होती है, लेकिन इंसान दो साल की उम्र से ही अपने प्रतिबिंब को पहचानने लगते हैं, "आईने में खुद को पहचानना आत्मचेतना की निशानी है, यह इस बात का प्रमाण है कि इंसान कितने बुद्धिमान हैं." नेंग गौंग ने कहा कि बंदर खुद को इसीलिए नहीं पहचान पाते हैं क्योंकि उनमें आत्मचेतना की कमी होती है, "हमने अपनी ट्रेनिंग से यह दिखाने की कोशिश की है कि बंदरों में मूलभूत हार्डवेयर तो मौजूद है लेकिन उन्हें सही सॉफ्टवेयर की जरूरत है, जो ट्रेनिंग के जरिए मुमकिन है."

दिमाग की कुछ बीमारियों में इंसान की खुद को पहचानने की क्षमता खत्म हो जाती है. ऑटिज्म, अल्जाइमर और स्किजोफ्रीनिया में ऐसा होता है. चीनी टीम को उम्मीद है कि इन बीमारियों में भी इस तरह की ट्रेनिंग से फायदा मिल सकता है.

आईबी/एसएफ (रॉयटर्स)