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बंगाल में निवेश की राह में सिंगुर का रोड़ा

प्रभाकर मणि तिवारी
२० जनवरी २०१७

पश्चिम बंगाल में दो-दिवसीय बंगाल ग्लोबल बिजनेस समिट की कामयाबी शुरू होने से पहले ही सवालों के घेरे में है. वजह यह है कि अबकी केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली समेत कोई भी केंद्रीय मंत्री इसमें हिस्सा नहीं ले रहा है.

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West Bengal Chef-Ministerin Mamata Bannerjee
तस्वीर: UNI

केंद्र सरकार के प्रमुख प्रतिनिधियों की अनुपस्थिति के अलावा जमीन अधिग्रहण के मुद्दे पर हाल में हुई हिंसा भी सम्मेलन पर असर डाल रही है. इसी सप्ताह कोलकाता से सटे दक्षिण 24-परगना जिले में एक बिजली परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण के मुद्दे पर हुई हिंसा में दो लोग मारे जा चुके हैं. इस घटना और खासकर नोटबंदी के बाद केंद्र के साथ राज्य सरकार के संबंधों में बढ़ी खाई का असर निवेशकों पर होना तय है. हालांकि सम्मेलन का उद्घाटन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी कर रहे हैं.

नोटबंदी का साया

इस सम्मेलन के आयोजन का यह तीसरा साल है. इससे पहले हुए दोनों सम्मेलनों में अरुण जेटली के अलावा कई केंद्रीय मंत्री न सिर्फ हिस्सा लेते रहे हैं बल्कि इसी मंच से करोड़ों की नई परियोजनाओं का भी एलान करते रहे हैं.

बीते साल ऐसे सम्मेलन के बाद भी मुख्यमंत्री ने ढाई लाख करोड़ रुपए से अधिक के निवेश का प्रस्ताव मिलने का दावा किया था. उन्होंने निवेशकों को शांत व सकारात्मक माहौल मुहैया कराने का भी भरोसा दिया था. जेटली के नहीं आने के पीछे दलील दी गई है कि वह बजट की तैयारियों में बेहद व्यस्त हैं. लेकिन असली वजह एक खुला रहस्य है.

देखिए सिंगूर में क्या क्या हुआ

नोटबंदी के बाद जिस तरह केंद्र और राज्य सरकारों के बीच कड़वाहट बढ़ी है उसमें जेटली के आने की उम्मीद पहले से ही कम थी. वैसे, पहले जेटली ने इस सम्मेलन का न्योता कबूल कर लिया था. लेकिन प्रदेश बीजेपी नेतृत्व ने केंद्रीय नेतृत्व को समझाया कि मौजूदा हालात में जेटली के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ एक मंच पर आने से पार्टी के कार्यकर्ताओं और राज्य के लोगों में गलत संदेश जाएगा. यही वजह है कि जेटली ने आखिरी मौके पर आने से मना कर दिया. यह बात इससे भी साफ होती है कि जेटली भले बजट की तैयारियों में व्यस्त हों लेकिन बाकी मंत्री तो आ ही सकते थे.

भूअधिग्रहण पर संशय

सिंगुर मामले पर बीते दिनों आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने भी निवेशकों का असमंजस बढ़ा दिया है. उद्योग जगत का कहना है कि जब सरकार की ओर से अधिगृहीत जमीन भी सुरक्षित नहीं है तो निजी तौर पर अधिगृहीत जमीन का भविष्य कितना सुरक्षित होगा? ममता कहती रही हैं कि निवेश के लिए उद्योगों को निजी तौर पर जमीन का अधिग्रहण करना होगा. अदालती फैसले के बाद सिंगुर की जमीन टाटा के हाथों से निकल गई है. सिंगुर परियोजना में निवेश किए गए करोड़ों रुपए डूब गए हैं. यह मामला संभावित निवेशकों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है.

जब कोलकाता में उतरा सिनेमा, देखिए

सत्ता में आने के बाद से ही ममता बनर्जी विदशी निवेश आकर्षित करने के लिए विदेशों का दौरा करती रही हैं. अपने आखिरी दौरे में वह इटली और जर्मनी जाकर खासकर ऑटोमोबाइल उद्योग को बंगाल में निवेश के लिए आकर्षित करने का प्रयास किया था. लेकिन अब तक उसमें कोई कामयाबी नहीं मिली है.

इससे पहले आयोजित ऐसे दो निवेशक सम्मेलनों के बाद हजारों करोड़ के निवेश के दावे के बावजूद हकीकत यह है कि उनमें से ज्यादातर निवेश प्रस्ताव अब भी फाइलों में बंद है. बीते छह वर्षों के दौरान राज्य में कोई बड़ा निवेश नहीं हो सका है. यही वजह है कि अबकी बदले हालात में इस सम्मेलन की कामयाबी पर सवाल उठने लगे हैं.

संशय के बादल

आखिर ममता के जर्मन दौरे से राज्य को कितना फायदा हुआ? वित्त मंत्री अमित मित्र कहते हैं, "कई जर्मन कंपनियों ने राज्य में निवेश की इच्छा जताई है. कई प्रस्तावों को शीघ्र अमली जामा पहनाया जाएगा." वह कहते हैं कि जहां तक जमीन की उपलब्धता का सवाल है सरकार के पास लैंड बैंक में हजारों एकड़ जमीन है.

इससे निवेशकों को जमीन अधिग्रहण की समस्याओं से नहीं जूझना होगा. सम्मेलन में इस साल बांग्लादेश के अलावा चीन, रूस, पोलैंड, कोरिया और जर्मनी के व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल हिस्सा ले रहे हैं. यहां पहुंचे जर्मन प्रांत नार्थ राइन-वेस्टफेलिया के उप वित्तमंत्री डा. गुंथर होरसेत्सकी कहते हैं, "जर्मन कंपनियां हड़बड़ी में निवेश का फैसला नहीं लेतीं. हम बंगाल में निवेश के विभिन्न पहलुओं पर विचार कर रहे हैं."

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राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि खासकर विदेशी निवेशक कोई बड़ा फैसला करने से पहले संबंधित राज्य के औद्योगिक माहौल के साथ ही राज्य-केंद्र संबंधों के पहलू पर भी विचार करते हैं. मौजूदा दौर में इन संबंधों के बीच आई कड़वाहट किसी से छिपी नहीं है. ऐसे में ममता के लिए निवेशकों को बंगाल में निवेश पर राजी करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है.

पर्यवेक्षकों का कहना है कि तमाम प्रयासों के बावजूद ममता अब तक सिंगुर आंदोलन के साए से नहीं उबर सकी हैं. यही ऑटोमोबाइल उद्योग के क्षेत्र में निवेश की राह में सबसे बड़ी बाधा साबित हो रही है. उद्योग जगत का कहना है कि ऐसे किसी निवेश सम्मेलन में मिले निवेश प्रस्तावों और असली निवेश में भारी फर्क होता है. अब यह तो बाद में ही पता चलेगा कि प्रतिकूल हालातों में ममता इस फर्क को पाटने में कामयाब हो पाती हैं या नहीं.