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फीफा वर्ल्ड कप में बजेगा वुवुज़ेला

२४ मई २०१०

दक्षिण अफ्रीका में होने वाले वर्ल्ड कप की तैयारियों का हिस्सा हैं वहां का पारंपरिक बाजा वुवुज़ेला जिसे मैच के दौरान खिलाडि़यों को प्रोत्साहित करने और खेल के प्रति अपना जज़्बा दिखने के लिए बजाया जाता है.

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रंग बिरंगे वुवुज़ेलातस्वीर: dpa

फीफा वर्ल्ड कप की तैयारियां ज़ोरशोर से चल रही हैं. खिलाड़ी खुद को मैच के लिए फिट बना रहे हैं तो फैन्स भी पीछे नहीं. वुवुज़ेला ऐसा बाजा है जिसके बिना दक्षिणवर्ती अफ्रीका में लोग फुटबॉल के खेल के बारे में सोच भी नहीं सकते. कुछ शहनाई जैसा दिखने वाला यह बाजा अफ्रीका में फुटबॉल के खेल में चार चांद लगा देता है. जोहानास्बर्ग में रहने वाले 'वुवुज़ेला ब्रैंडिंग कंपनी' के क्लिंटन करी भी ऐसा ही मानते हैं. "मैं तो कहूंगा कि यह अफ्रीका की पहचान है, हमारी पहचान है. अफ्रीका में फुटबॉल बहुत शोर शराबे के साथ खेला जाता है और साथ ही हम अफ्रीकिओं को शोर गुल बहुत पसंद है."

Das Horn des Kudu
कुडू का सींगतस्वीर: Christian Quiring

कुडू के सींगों से बना वुवुज़ेला

वुवुज़ेला अफ्रीका की पहचान है और यहां की संस्कृति का हिस्सा. दरअसल कुछ साल पहले तक कुडू नाम के एक जंगली भेड़ के सींगों से वुवुज़ेला बनाए जाते थे. पूरे गांव में किसी प्रकार की घोषणा करने और लोगों को इकट्ठा करने के लिए इनका इस्तेमाल किया जाता था. बाद में इन्हें मेटल से बनाया जाने लगा. 90 के दशक में फुटबॉल प्रेमियों ने मैच के दौरान हूटिंग के लिए इसका इस्तेमाल करना शुरू किया. खूब शोर शराबे के साथ वो अपनी टीम को प्रोत्साहित करते थे.

Der Südafrikaner Clinton Currie hat die Vuvuzela Branding Company gegründet
'वुवुज़ेला ब्रैंडिंग कंपनी' के क्लिंटन करीतस्वीर: Katrin Gänsler

क्लिंटन करी भी एक बड़े फुटबॉल फैन हैं. जब भी उन्हें फुर्सत मिलती है, वे अपने बेटे के साथ फुटबॉल का मैच देखने ज़रूर जाते हैं और अपने साथ वुवुज़ेला ले जाना कभी नहीं भूलते. कोई बारह साल पहले उन्हें अपना पहला वुवुज़ेला मिला था: बिलकुल सादा और बेरंग. क्लिंटन को वह कुछ ख़ास दिलचस्प नहीं लगा था. तभी उनके मन में यह विचार आया कि वे इन बाजों को बेहद दिलचस्प रूप दे सकते हैं और एक साल पहले उन्होंने अपनी 'वुवुज़ेला ब्रैंडिंग कंपनी' शुरू की. "क्योंकि वुवुज़ेला बेरंग था और इस से पहले किसी ने इसकी ब्रैंडिंग नहीं की थी, मैंने सोचा कि इस पर पूरी 'कलर प्रिंटिंग' की जा सकती है."

वुवुज़ेला की बढ़ती दीवानगी

और यह आइडिया हिट भी खूब हुआ. कुछ ही दिनों में अफ्रीका में फुटबॉल वर्ल्ड कप शुरू होने वाला है. क्लिंटन इसकी पूरी तैयारी में लगे हुए हैं. वर्ल्ड कप शुरू होने तक उन्हें कुछ दस लाख रंग बिरंगे वुवुज़ेला बनाने हैं. इन में से ज़्यादातर पर दक्षिणी अफ्रीका के झंडे के रंग देखे जा सकेंगे. कइयों पर अमेरिका, हौलैंड और ऑस्ट्रेलिया के झंडे भी देखे जाएंगे. हाल ही में यहां प्लास्टिक के वुवुज़ेला भी बनने लगे हैं, जो स्टेडियम ले जाने के लिए बिलकुल सही उतरते हैं.

वुवुज़ेला कई तरह के हो सकते हैं - कइयों पर हाथ से कारीगरी की जाती है तो कइयों पर मोती भी जड़े होते हैं. सब से सस्ते एक ही रंग के प्लास्टिक के वुवुज़ेला लगभग तीन सौ रुपये के होते हैं. लेकिन मोती जड़े हुए सुन्दर वुवुज़ेला के लिए आपको पांच हज़ार रुपये तक देने पड़ सकते हैं. थेरेसा ग्रेंगर केप सिटी में सोवेनियर की दूकान पर काम करती हैं. उनकी दूकान पर हर हफ्ते करीब बीस वुवुज़ेला बिकते हैं. "यह बहुत सुन्दर होते हैं. इन पर लाल, सफ़ेद, नीला और पीला, सभी रंग हैं. और पेंट करने वाले का नाम भी है."

Confed Cup 2009 - Vuvuzela
प्लास्टिक के वुवुज़ेलातस्वीर: dpa

वर्ल्ड कप में बजने पर विवाद

भले ही वुवुज़ेला को लेकर लोगों की दीवानगी बढती जा रही हो, लेकिन क्या लोग वर्ल्ड कप के दौरान इन्हें वाकई में स्टेडियम में ले जा पाएंगे? दरअसल पिछले कुछ समय से इस पर विवाद चल रहा है. कई लोगों का मानना है कि वुवुज़ेला से इतना शोर होता है कि खिलाड़ी, ख़ास तौर से यूरोपीय टीमें, खेल पर पूरा ध्यान नहीं दे पाती, इसलिए उन पर रोक लगनी चाहिए. अफ्रीका के बाकी लोगों की तरह थेरेसा भी इस बात के खिलाफ हैं. "आप इस पर बस इसलिए तो रोक नहीं लगा सकते कि यह एक अफ्रीकी चीज़ है. वुवुज़ेला दक्षिण अफ्रीका का और वर्ल्ड कप का हिस्सा हैं"

क्लिंटन को भी लगता है कि वर्ल्ड कप के दौरान इनसे इतना ज़्यादा शोर नहीं हो पाएगा जितना सब सोच रहे हैं. वे मानते हैं कि बाहर से जो फैन्स आ रहे हैं, उन्हें तो पता भी नहीं है कि वुवुज़ेला को ठीक से कैसे बजाते हैं. इसलिए इतना शोर नहीं होगा. "स्थानीय लोग तो सालों से इसे बजा रहे हैं. उन्हें ठीक तरह से पता है कि इन्हें कैसे बजाना है. इसे बजाने के लिए एक तकनीक लगती है. शुरु में तो हो सकता है कि कोई आवाज़ ही ना आए. लेकिन थोड़ी प्रैक्टिस के बाद पता चल जाता है कि कैसे बजाना है."

खैर, फिलहाल तो जोहानसबर्ग के फीफा-ऑफिस ने इन्हें हरी झंडी दे दी है. और अगर आप को अगले महीने होने वाले वर्ल्ड कप के दौरान चारों ओर यह रंग बिरंगे वुवुज़ेला दिखाई दें तो हैरान मत होइएगा.

रिपोर्ट: ईशा भाटिया/वोल्फगांग वॉन कान

संपादन: उ भट्टाचार्य