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फार्मिंग से मरती मछलियां

२६ दिसम्बर २०१३

वैंकूवर के ब्रिटिश कोलंबिया का नजारा, पारदर्शी नीला पानी, हरियाली और बर्फ से ढके पहाड़. यहां के पश्चिमी तट पर जैव विविधता जबरदस्त है. लेकिन यहां की जंगली सालमन मछली इन दिनों मौत के खतरे से जूझ रही है.

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Symbolbild Netz Sport Fischen
तस्वीर: Fotolia/Les Cunliffe

वैंकूवर द्वीप के इस सुंदर इलाके में 100 फिश फार्म हैं. ये सभी नॉर्वे की कंपनियों के हैं. यहां के प्रशांत महासागर वाले इलाके में अटलांटिक में मिलने वाली सालमन मछलियों की ब्रीडिंग की जाती है. इसका सीधा असर यहां के पानी में रहने वाली सालमन मछली पर पड़ता है.

पतझड़ के मौसम में यहां प्रकृति का शानदार खेल देखने को मिलता है. लाखों जंगली सालमन मछलियां समंदर से निकल कर नदियों में आती हैं. लहरों से विपरीत तैरते हुए वे ऐसी जगह पहुंचती हैं, जहां उनका जन्म हुआ. यहीं वे अंडे देती हैं और फिर मर जाती हैं. उनकी लाश से नदी किनारे के पेड़ों और कीड़ों को पोषण मिलता है.

बीमार होती मछलियां

इस इलाके में 30 साल से रह रही और जंगली मछलियों पर नजर रखने वाली समुद्र जीव विज्ञानी अलेक्सैंड्रा मॉर्टन के लिए यह शोध का विषय है. वह इनके सैंपल लेती हैं और फिर इनकी जांच करती हैं कि इनमें कहीं यूरोपीय मछलियों वाली बीमारियां तो नहीं पहुंची. उन्हें आशंका है कि कई वायरस इन फार्मों से जंगली मछलियों तक पहुंच गए हैं.

Lachs
कई देशों में सालमन मछली बहुत शौक से खाई जाती है.तस्वीर: Fotolia/HLPhoto

इसीलिए वह इन फिश फार्मों के खिलाफ आवाज उठा रही हैं. अलेक्सैंड्रा कहती हैं, "जंगली सालमन के इलाके में इन फार्मों से खतरा यह है कि ब्रीड की हुई मछलियों से निकले कीटाणु और शारीरिक स्राव को ये जंगली मछलियां निगल लेती हैं. अगर इन फार्मों के वायरस खुले जंगली पर्यावरण में पहुंच जाएं तो यह खतरनाक हो सकता है."

उन्हें चिंता है कि वायरस के कारण जंगली सालमन खत्म हो सकती हैं, "इन मछलियों के बिना ऐसा होगा जैसे तट पर बिजली गुल हो जाए. इंसान, व्हेल मछलियां, जानवर, पेड़ सब कुम्हला जाएंगे. इस गड़बड़ी को फिर कभी नहीं सुधारा जा सकता और इसका भुकतान भी नहीं किया जा सकता."

मछलियों को टीके

स्टीवर्ट हॉथॉर्न एक नॉर्वेजियाई सालमन कंपनी की देख रेख करते हैं. उनकी कंपनी की सालाना कमाई 25 करोड़ यूरो है. एक्वाकल्चर का धंधा बढ़ रहा है क्योंकि मछलियों की खपत दुनिया भर में बढ़ रही है. उनकी कंपनी में तीन कर्मचारी सात लाख सालमन मछलियों पर नजर रखते हैं.

10 साल पहले की तुलना में आज बहुत कम चारा मछलियों को लगता है. मछलियों के चारे में 50 फीसदी कमी हुई है. सालमन पालने वाली कंपनी को लगता है कि उनका यह फार्म पर्यावरण के लिए पशु या मुर्गी पालन से बेहतर है.

ग्रीग सीफूड कंपनी के स्टीवर्ट हॉथॉर्न सफाई देते हैं, "कई साल में हमने अपने तरीके बिलकुल बदल दिए हैं. हम फार्म में बेहतरी लाए हैं. फार्म में एक ही उम्र की मछलियां तैयार की जाती हैं. फिर मछलियां निकाल ली जाती हैं और फार्म कुछ समय खाली छोड़ दिए जाते हैं. इसके अलावा हम अपनी मछलियों को टीके देते हैं ताकि वे बीमार न पड़ें."

लेकिन पर्यावरण के लिए लड़ने वाले इस दलील को जानते हैं. वहां सच्चाई यह है कि सालमन मछलियां अंडे देने से पहले ही मर रही है. उनमें ऐसे ऐसे वायरस मिल रहे हैं, जो यहां कभी होते ही नहीं थे. मॉर्टन बताती हैं, "वे कहते हैं कि उनका तरीका बेहतरीन है और कड़े नियम भी हैं. लेकिन मैं जंगली मछलियां देखती हूं और हर जगह बीमारियां दिखती हैं. सालमन फार्म के पास पैरासाइट देखती हूं. हेरिंग और सालमन में यूरोपीय वायरस दिखते हैं. जो भी इन फार्म्स का तरीका है, वह जंगली मछलियों के लिए मददगार नहीं है."

ऑर्गेनिक सालमन फार्म

शायद वैंकूवर द्वीप पर शुरू हुआ पायलट प्रोजेक्ट मददगार साबित हो. दान और सरकारी मदद के जरिए जमीन पर एक ब्रीडिंग सेंटर खोला जा रहा है. उत्तरी अमेरिका में अपनी तरह का सबसे बड़ा. समंदर में ब्रीडिंग की बजाए बड़े कृत्रिम तालाब में मछली पालन होगा. लाखों यूरो वाली तकनीक के जरिए यहां का पानी बाहर नहीं जाएगा. इसलिए बीमारी पैदा करने वाले तत्व या फिर कचरा पर्यावरण में नहीं जा सकेगा. सालमन मछलियों के पालन पोषण में इस्तेमाल होने वाले एंटीबायोटिक या पेस्टिसाइड के समंदर में जाने की समस्या नहीं होगी क्योंकि उनका यहां इस्तेमाल ही नहीं होगा.

इस प्रोजेक्ट के जरिए कनाडा के पर्यावरण संरक्षणकर्ता साबित करना चाहते हैं कि ऑर्गेनिक तरीके से भी सालमन फार्म बनाए जा सकते हैं. उत्पादन प्रमुख काथाल डीनेन कहती हैं, "हमारे यहां मछलियां दुगनी से भी तेज बढ़ती है, जैसे सामान्य फिश फार्म में. इसमें चारा भी एक तिहाई ही लगता है. क्योंकि हमारे यहां ब्रीडिंग का माहौल बढ़िया है, मछलियां अच्छा महसूस करती हैं."

लेकिन मॉर्टन दलील देती हैं कि ऐसे किसी उपाय से समस्या खत्म नहीं हो सकती. वह जोर देकर कहती हैं, "जो इसे रोक सकता है, वह है उपभोक्ता. उन्हीं की इच्छा के आधार पर यह कंपनियां चलती हैं. अगर वे इन गंदी लसलसी मछलियों को खरीदना बंद कर दें तो शायद कुछ बदले."

यह लड़ाई उनके खिलाफ है जो बाजार से संचालित होते हैं. लेकिन प्रकृति के नियमों से जिनका कोई लेना देना नहीं.

रिपोर्टः एम आलटेनहेने/आभा मोंढे

संपादनः ईशा भाटिया

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