"फिल्म और राजनीति में समानता"
१२ अप्रैल २०१४लेकिन मुनमुन को इसकी चिंता नहीं है. वह अपनी इस नई भूमिका में काफी उत्साहित हैं. मुनमुन कहती हैं कि इस नई भूमिका में वह आम लोगों की खुशियां और गम बांटना चाहती हैं. भारी गर्मी के बीच राज्य के लाल मिट्टी वाले इलाके में चुनाव प्रचार कर रही मुनमुन ने डॉयचे वेले के कुछ सवालों के जवाब दिए. पेश हैं उसे बातचीत के मुख्य अंश-
आप तो राजनीति में आने के खिलाफ थीं. फिर अचानक इस क्षेत्र में कैसे आ गईं?
यह सब अचानक ही हुआ. मेरी मां सुचित्रा सेन के निधन के बाद परिवार का हाल-चाल पूछने ममता दीदी (मुख्यमंत्री) अक्सर घर आती थीं. एक दिन उन्होंने कहा कि वह लोकसभा में मेरे परिवार के किसी व्यक्ति को टिकट देना चाहती हैं. उन्होंने मेरे पति का नाम लिया. लेकिन उनकी तबियत ठीक नहीं होने की वजह से मैंने मना कर दिया. उसी दौरान औपचारिक बातचीत में इस मुद्दे पर चर्चा हुई. उसके बाद हम दोनों के बीच इस मुद्दे पर खास चर्चा नहीं हुई. मुझे तो उम्मीदवारों की सूची के एलान के बाद इसका पता चला.
आपके परिवार की प्रतिक्रिया कैसी रही?
मेरे पति तो बहुत खुश हुए. नह हमेशा मुझे राजनीति में आने के लिए प्रेरित करते थे और कहते थे कि इस नई भूमिका में मुझे काफी कुछ सीखने को मिलेगा. मेरी दोनों बेटियां रिया और राइमा भी हमेशा मुझे कुछ करने के लिए उकसाती रहती थीं. मेरी नई भूमिका से वह दोनों काफी रोमांचित हैं. दोनों मेरे समर्थन में चुनाव प्रचार करने बांकुड़ा आएंगी. हमेशा की तरह इस लड़ाई में परिवार ही मेरी सबसे बड़ी ताकत है.
आपकी मां सुचित्रा सेन जीवित होतीं तो क्या कहतीं?
मेरी मां फिल्म वालों के राजनीति में जाने के खिलाफ थीं. उनका कहना था कि हमें राजनीति से दूरी बना कर रखनी चाहिए. दोनों की दुनिया अलग है. लेकिन वह बेहद दयालु थीं. बांकुड़ा के लोगों की समस्याओं का पता चलने पर वह मुझे चुनाव लड़ने की सहमति दे देतीं.
फिल्म से राजनीति करियर में यह बदलाव कैसा लग रहा है?
मेरे लिए यह क्षेत्र नया है. मुझे कई चीजें सीखनी होंगी. यह एक चुनौतीपूर्ण भूमिका है, लेकिन मैं इसके लिए पूरी तरह तैयार हूं. वैसे, फिल्मों का करियर भी आसान नहीं है. पैसा और चमक-दमक के उलट यह करियर भी काफी कठिन होता है. कहीं भारी गर्मी में शूटिंग करनी होती है तो कहीं जमा देने वाली सर्दी में.
फिल्म और राजनीति में क्या समानता है?
राजनेता की तरह ही फिल्मकार के अच्छा या बुरा होने का फैसला भी आम लोग ही करते हैं. हां उनकी उम्मीदें अलग होती हैं. एक अभिनेत्री के तौर पर मुझे फिल्म, किरदार और निर्माता के बारे में सोचना पड़ता है. अब राजनेता की भूमिका में मैं अपने मतदाताओं के बारे में सोचूंगा.
यहां आपका मुकाबला बासुदेव आचार्य जैसे दिग्गज नेता के साथ है?
हां, मैं इससे अवगत हूं. लेकिन लोगों की शिकायत है कि बरसों सांसद रहने के बावजूद उन्होंने बांकुड़ा के लिए कुछ खास काम नहीं किया है. इसके बावजूद यह सोच कर आश्चर्य होता है कि वे इतनी बार इस सीट पर चुनाव जीत चुके हैं. शायद लोगों के पास कोई बेहतर विकल्प नहीं था. मुझे भरोसा है कि लोग अबकी यहां बदलाव के लिए वोट देंगे. मैं एक स्टार नहीं, बल्कि राजनीति के नए खिलाड़ी के तौर पर मैदान में उतरी हूं.
चुनाव प्रचार के दौरान अब तक लोगों का रवैया कैसा रहा है?
हर तबके के लोग खुल कर समर्थन दे रहे हैं. इस सप्ताह हुई रैली के दौरान भारी गर्मी के बावजूद लोग मेरी एक झलक देखने और मुझसे हाथ मिलाने के लिए घंटों खड़े रहे. लोगों ने अभी से इलाके की समस्याओं की शिकायतें शुरू कर दी हैं.
लोगों की शिकायत रहती है कि सितारा उम्मीदवार अक्सर जीतने के बाद इलाके में नजर नहीं आते?
देखिए, हर आदमी अलग होता है. अगर पहले किसी ने ऐसा किया है तो इसका मतलब यह नहीं है कि मैं भी वैसा ही करूंगी. जीतने के बाद मैं यहां अपना घर बनाऊंगी और राज्य के दूसरे हिस्सों से बांकुड़ा का सड़क संपर्क बेहतर बनाने का प्रयास करूंगी. योजनाएं तो बहुत हैं, लेकिन पहले इस अग्नपरीक्षा में पास तो हो जाऊं. मैं कथनी नहीं, करनी में भरोसा रखती हूं.
ममता के अलावा आपके पसंदीदा राजनेता कौन हैं?
मैं इंदिरा गांधी को बेहद पसंद करती थी. उन्होंने कठिन हालातों में देश पर शासन किया था. इसके अलावा बिल क्लिंटन और जॉन एफ कैनेडी मेरे पसंदीदा राजनेता रहे हैं. हिलेरी क्लिंटन में अपने पति जैसा करिश्मा भले न हो, वे अमेरिका के लिए बेहतर राष्ट्रपति साबित होंगी.
रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता
संपादनः ए जमाल