फाइनल से पहले स्पेन को सता रहा है डर
११ जुलाई २०१०टोटल फुटबॉल की रणनीति अपनाकर नीदरलैंड्स 1974 और 1978 में वर्ल्ड कप के फाइनल में पहुंचा लेकिन पहले फ्रांत्स बेकनबाउर की पश्चिम जर्मनी और फिर अर्जेंटीना के सामने उसके सारे ख्वाब टूट गए. लगातार दो बार फाइनल में पहुंचने के बावजूद नीदरलैंड्स खिताबी जीत को तरसता रह गया.
नारंगी रंग की शर्ट में स्टाइलिश फुटबॉल खेलने को मशहूर डच खिलाड़ी तेजी से पास देते और गेंद को ज्यादातर अपने पास ही रखना चाहते पर 70 के दशक में फुटबॉल वर्ल्ड कप उनसे दूर ही रहा.
स्पेन इस बात को समझता है कि वर्ल्ड चैंपियन बनने के इतना नजदीक आना और फिर उससे दूर रह जाना बेहद दुखदायी साबित होगा इसलिए टीम नीदरलैंड्स की गलती को नहीं दोहराना चाहती है. स्पेन के खिलाड़ी मानते हैं कि डच टीम सिर्फ अपनी फुटबॉल के लिए याद की जाती है वर्ल्ड चैंपियन के रूप में नहीं. ऐसे में स्पेन ठान चुका है कि उसे वर्ल्ड चैंपियन ही बनना है.
जावी कहते हैं, "हम इतिहास में उस टीम के रूप में याद किया जाना पसंद करेंगे जिसने वर्ल्ड कप की ट्रॉफी उठाई हो. यह फुटबॉल के खेल के साथ न्याय होगा, इस खेल के साथ अच्छा होगा और इस पीढ़ी के खिलाड़ी इस जीत के हकदार हैं." डच टीम कई बार फाइनल में पहुंचने के बावजूद कभी कप नहीं उठा पाई.
वहीं नीदरलैंड्स भी फाइनल में जीत के लिए कमर कस चुका है. टीम के कोच मरवाइक ने घायल आर्यन रोबेन को खिलाकर एक बड़ा जोखिम मोल लिया लेकिन उनके उसी फैसले ने नीदरलैंड्स को फाइनल तक पहुंचने में मदद की. रोबेन ने स्लोवाकिया और सेमीफाइनल में उरुग्वे के खिलाफ बेहतरीन गोल किया और कोच के फैसले को सही साबित किया. अब रोबेन और स्नाइडर की जोड़ी नीदरलैंड्स को फुटबॉल की दुनिया का सिरमौर बनाने के लिए बेताब है.
लेकिन पत्रकारों की राय में फाइनल में स्पेन का पलड़ा भारी नजर आ रहा है. इंटरनेशनल स्पोर्ट्स प्रेस एसोसिएशन के सदस्यों ने एक ऑनलाइन वोटिंग में हिस्सा लिया. जिसमें 54 देशों के करीब 64 फीसदी पत्रकारों ने स्पेन के जीतने की संभावना जाहिर की. डच टीम को सिर्फ 36 फीसदी मत हासिल हुए.
रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़
संपादन: ओ सिंह