फांसी देनी है तो दे दो, पर जल्दीः अफजल गुरु
२७ मई २०१०अफजल गुरु ने मार्च में यह याचिका दायर की और वह दया की अपनी याचिका पर जल्द से जल्द फैसला चाहते हैं. उनके वकील एनडी पंचोली ने कहा कि यह याचिका पिछले चार साल से सरकार के समक्ष है. पंचोली ने बताया कि पिछले हफ्ते तिहाड़ जेल में जब अफजल से बात हुई तो उन्होंने बताया कि मौत से भी बदतर हालत है.
पंचोली के मुताबिक, "अफजल गुरु कालकोठरी में पड़े रहने और दया की याचिका पर फैसले में हो रही देरी से आजिज आ चुके हैं." अफजल ने मार्च में जेल अधिकारियों के माध्यम से अपनी याचिका आगे भेजी. इससे पहले जनवरी में उनकी याचिका यह कह कर लौटा दी गई कि उसे उचित माध्यमों से भेजा जाए.
पंचोली के मुताबिक, "अफजल का यह कहना है कि उन्हें मौत की सज़ा मिली है न कि कालकोठरी में पड़े रहने की. उनका कहना है कि जो भी फैसला होना है जल्दी हो जाए. वह कह रहे हैं कि फांसी देनी है तो दे दो, वह इसके लिए तैयार भी हैं."
अफजल ने खुद को जम्मू कश्मीर की किसी जेल में भेजने का भी आग्रह किया है ताकि उनका परिवार उनसे मिल सके. अफजल गुरु की दया की याचिका पिछले दिनों उस वक्त सुर्खियों में आई जब गृह मंत्रालय ने 16वीं बार दिल्ली सरकार से कहा कि वह इस याचिका पर अपना रूख भेजे.
दिल्ली सरकार ने पिछले हफ्ते इस याचिका पर अपनी राय दिल्ली के उपराज्यपाल तेजेंद्र खन्ना को भेज दी और कहा कि उसे अफजल गुरु को फांसी देने पर कोई आपत्ति नहीं है लेकिन कानून व्यवस्था पर पड़ने वाले इसके प्रभावों को भी ध्यान में रखा जाए.
13 दिसंबर 2001 को भारतीय संसद पर हुए हमले की साजिश रचने के मामले में दिल्ली की एक अदालत ने 18 दिसंबर 2002 को अफजल गुरु को मौत की सज़ा सुनाई. उन्हें भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने और हत्या का दोषी पाया गया. 29 अक्तूबर 2003 दिल्ली हाई कोर्ट ने भी मौत की सज़ा को बरकरार रखने का फैसला सुनाया. दो साल बाद इस फैसले के खिलाफ अफजल गुरु की याचिका को अगस्त 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने भी खारिज कर दिया.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः उज्ज्वल भट्टाचार्य