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"फर्जी रिसर्च के बाद सोचने का मौका"

इंटरव्यूः हाना फुक्स/एजेए११ दिसम्बर २०१४

भारतीय कंपनी जीवीके बायोसाइंसेस की ट्रायल रिपोर्टों पर यूरोप में बवाल मचा है. जर्मनी ने करीब 80 दवाओं का लाइसेंस रद्द कर दिया है. जर्मन संघीय मेडिकल एजेंसी के कार्ल ब्रोख ने कहा कि इस मामले के गंभीर नतीजे हो सकते हैं.

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Prof. Dr. Karl Broich
तस्वीर: BfArM

डॉयचे वेलेः भारतीय कंपनी जीवीके बायो पर जेनेरिक दवाओं के अध्ययन में फर्जीवाड़ा करने का आरोप है. अब 100 से ज्यादा दवाइयों की जांच हो रही है. जर्मनी की संघीय मेडिकल एजेंसी (बीएफएआरएम) भी इसमें लगी है. आप इस समय क्या कदम उठा रहे हैं?

कार्ल ब्रोख: जर्मनी में हमने फर्जी अध्ययनों से जुड़ी 28 कंपनियों की 176 दवाइयों की जांच की है. नवंबर के मध्य से ही हमने निर्माता कंपनियों के साथ पूछताछ शुरू की. उनसे जवाब मांगा गया और इसके लिए दिसंबर के शुरुआत का वक्त तय था. अब हमने जवाबों की जांच की और मरीजों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए 80 दवाओं के लाइसेंस को स्थगित करने के आदेश दिए हैं. इस वजह से यूरोप के दूसरे देशों से पहले ही जर्मनी में ये दवाएं नहीं बिकेंगी.

एक कदम पीछे चलते हैं. इस मामले में गड़बड़ी कहां हुई, कौन इसका जिम्मेदार है? जीवीके बायो या दवा कंपनियां, जिन्होंने रिसर्च के लिए इस कंपनी को चुना?

इन संस्थानों को ट्रायल की जिम्मेदारी देने वाली दवा कंपनियों के लिए स्वाभाविक तौर पर खर्च का मामला अहम होता है. लेकिन फिर भी उन्हें इस बात की गारंटी करनी होगी कि लागू मानकों का स्तरीय पालन हो और प्रामाणिक आंकड़े उपलब्ध कराए जाएं.

और जीवीके ने रिसर्च में गड़बड़ी क्यों की?

इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ईसीजी) क्यों नहीं किया गया या उसे रजिस्टर नहीं किया गया, इसकी कई वजहें हो सकती हैं. हम मान रहे हैं कि जब भी उनकी जांच की बारी आई, तो अनुपलब्ध आंकड़े फर्जी तौर पर लिख दिए गए. इस पूरे खेल में कितनी आपराधिक योजना थी, कहना मुश्किल है. लेकिन लाइसेंसिंग अधिकारी के रूप में ऐसा होना हमें संदेह में डालता है. अगर ईसीजी के मामले में लंबे वक्त तक फर्जीवाड़ा किया गया है, तो सवाल उठता है कि क्या बायोइक्विवैलेंस प्रमाणित करने के लिए क्या प्रयोगशाला की जांच के आंकड़ों में भी छेड़छाड़ नहीं हुई. हम यानि बीएफएआरएम को अब जीवीके की गुणवत्ता पर गहरा शक है, इसलिए अब हम स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए इसे लाइसेंस का आधार नहीं मान सकते.

कहा जा रहा है कि यह सिर्फ जेनेरिक दवाइयों के लिए है - यानि मूल दवाइयों की कॉपी के लिए?

फ्रांसीसी जांच टीम को जो सबूत मिले वे सचमुच जेनेरिक दवाइयों के लिए थे. अब तक इसमें दूसरे उत्पादों के शामिल होने के संकेत नहीं हैं.

Indien Pharma Apotheke Archiv 2012
जेनेरिक दवाइयों की बढ़ती मांगतस्वीर: Manjunath Kiran/AFP/GettyImages

और नई दवाइयों पर इस तरह की धोखाधड़ी आसानी से संभव नहीं होगी?

नहीं. इन दवाइयों की गहन जांच होती है, क्योंकि यहां तत्वों के असर और उसके सुरक्षित होने का सबूत देना होता है, जिसे बाद में जेनेरिक दवाई के लिए लाइसेंस लेने के समय आधार बनाया जा सके. जेनेरिक दवाइयों के लाइसेंस के लिए सवाल इनके बायो इक्विवैलेंस (हूबहू होने) का होता है यानि खून में जेनेरिक दवा के तत्व का वही मात्रा हो जो असली दवा के उसी अवयव की होती है. इसलिए नई दवा की अनुमति के लिए रिसर्चों के आंकड़े बहुत व्यापक होते हैं.

अब इस मामले में और क्या होगा? जीवीके के लिए भी और भविष्य में मेडिकल दवाइयों के लाइसेंस के मुद्दे के लिए भी?

मैं समझता हूं कि यह एक सबक है और दवा उद्योग की सोच बदलेगी. लेकिन मैं नहीं समझता कि इसके बाद रिसर्च का काम फौरन जर्मनी या यूरोप में होने लगेगा या फिर जर्मनी में फिर से ज्यादा दवाइयों का उत्पादन होने लगेगा. लेकिन जर्मनी में हुई रिसर्चों में बीएफएआरएम के लिए प्रभावित करने की अच्छी संभावना होती है. इसका फायदा मरीजों की सुरक्षा और जांच में स्वतंत्रता दोनों को होता है. लेकिन दूसरी तरफ मरीजों और टेस्टरों के स्वास्थ्य के मद्देनजर हमें चिंता है कि ज्यादा से ज्यादा जांच अब यूरोप से बाहर विकासशील देशों में जा रही है.

इसलिए मुझे लगता है कि मरीजों की सुरक्षा के लिए हमारे प्रयासों को बढ़ाए जाने, इस क्षेत्र में ज्यादा कर्मचारी तैनात करने और चीन तथा भारत जैसे देश में और गहराई से झांकने का कोई और विकल्प नहीं है. जहां इस तरह की ट्रायल कंपनियां फार्मेसी उद्योग के लिए बढ़ते पैमाने पर काम कर रही है, हमें यूरोपीय एजेंसियों के साथ मिल कर मौके पर उपस्थिति दिखानी होगी ताकि जोखिम बड़ा और महंगा हो जाए, और फर्जीवाड़े और क्वालिटी में कमी का कोई फायदा न रहे.

आपकी राय में अब जीवीके का क्या होगा?

इसके समांतर यूरोप में भी जांच हो रही है, जो शायद जनवरी या फरवरी तक पूरी हो जाएगी. मैं स्वागत करूंगा कि यूरोपीय स्तर पर भी गंभीर त्रुटियों की पुष्टि हो और इसके बाद दवा कंपनियां इससे सबक लें और भविष्य में भरोसेमंद ट्रायल कंपनियों के पक्ष में फैसला ले.

(प्रोफेसर कार्ल ब्रोख बॉन में जर्मन संघीय मेडिकल एजेंसी के प्रमुख हैं. उनकी संस्था दवाओ की लाइसेंसिंग और रजिस्ट्रेशन, दवाओं और मेडिकल उत्पादों के खतरों की निगरानी के लिए जिम्मेदार है.)