फर्जी एनकाउंटर के दोषियों को उम्रकैद
१३ नवम्बर २०१४मामला चार साल पहले का है जब जम्मू कश्मीर के माछिल सेक्टर में सेना ने आतंकवादियों से मुठभेड़ होने का दावा किया. सेना का कहना था कि तीनों युवक आतंकवादी थे और पाकिस्तान से नाता रखते थे, जबकि बाद में जांच के दौरान यह दावा गलत साबित हुआ.
सैन्य अदालत के सामने पेश की गयी रिपोर्ट में बताया गया है कि सैनिकों ने साजिश कर तीनों युवकों को कुपवाड़ा जिले में बुलाया. उन्हें नौकरी का लालच देकर 29 अप्रैल को वहां लाया गया और फिर उनकी हत्या कर दी गयी. अगले दिन सेना ने दावा किया कि नियंत्रण रेखा पर उसने तीन पाकिस्तानी आतंकवादियों को मार गिराया है.
दूसरी ओर युवकों के रिश्तेदारों ने गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई और बाद में सेना द्वारा मारे गए लोगों के कपड़ों की भी पहचान की. परिवारों के जरिए ही युवकों की पहचान शहजाद अहमद, रियाज अहमद और मोहम्मद शफी के रूप में हुई.
मामला सामने आने के बाद कश्मीर में दो महीने तक प्रदर्शन होते रहे जिनमें कई आम नागरिकों की जान गयी. घाटी में सेना के रवैये को लेकर पहले से ही लोगों में काफी गुस्सा भरा था. फर्जी एनकाउंटर मामले से पूरी घाटी में और रोष देखा गया.
कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया पिछले साल दिसंबर में शुरू हुई और सितंबर तक चली. कुपवाड़ा के 68 माउंटेन ब्रिगेड के ब्रिगेडियर दीपक मेहरा की बेंच ने 4 राजपूत रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल डीके पठानिया समेत कैप्टन उपेंद्र सिंह, सूबेदार सतबीर सिंह, हवलदार बीर सिंह, सिपाही चंद्रभान, सिपाही नागेंद्र सिंह और सिपाही नरेंद्र सिंह को हत्या का दोषी पाया. इन सभी दोषियों को नौकरी से मिलने वाले किसी भी तरह के लाभ से भी वंचित कर दिया गया है.
आईबी/ओएसजे