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साहस की कीमत

राइनर ट्राउबे/एमजे८ जनवरी २०१५

क्या व्यंग्य सब कुछ कर सकता है? धर्म के मामले में आजादी की सीमा क्या है? फ्रांस में व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दॉ पर हमले के बाद यह सवाल बहुत से लोग पूछ रहे हैं. डीडब्ल्यू के राइनर ट्राउबे का कहना है कि ये सवाल ही गलत है.

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Trauer nach Anschlag auf Charlie Hebdo in Paris
तस्वीर: AFP/Getty Images/D. Meyer

जर्मन लेखक कुर्ट तुखोल्स्की ने कहा था, "व्यंग्य को सब हक है." उनका लोकप्रिय उद्धरण कि, "व्यंग्य की सीमा ऊपर की ओर होती है,"कम से कम पैगंबर मोहम्मद के कार्टून पर हुए विवाद के बाद अप्रासंगिक हो गया है. हमारे पास दलीलों को जांचने परखने, तुलना करने और तौलने के लिए एक दशक का समय था.

Rainer Traube
तस्वीर: Privat

अब इस बात के कोई मायने नहीं कि शार्ली एब्दॉ पत्रिका अपने लेखों और कार्टूनों में अक्सर हदें तोड़ती रही है. पेरिस का हत्याकांड नजरिया बदल रहा है. हम लंबे समय तक "कला की क्या सीमा है" के बहस के पीछे सिर छुपाते रहे हैं. इस बीच असली सवाल से बचते रहे हैं, "क्या हम आजादी की कीमत चुकाने के लिए तैयार हैं?" पेरिस में मारे गए पत्रकारों ने धमकियों और दबाव का सामना करने और अपना काम करते रहने की अभूतपूर्व हिम्मत दिखाई. वे फ्रांस के राजनीतिज्ञों को परेशान करते रहे, दूसरे पत्रकारों की आलोचना सहते रहे और मौत की धमकियों के बीच जीते रहे.

कौन करेगा साहसियों की रक्षा

अब हमें इस हिम्मत की कीमत पता है और अब नया सवाल उठ खड़ा हुआ है: यदि कट्टरपंथियों की हिंसा संपादकीय दफ्तरों तक पहुंच जाएगी फिर साहसियों की रक्षा कौन करेगा? क्या ऐसे में हिम्मत दिखाने वाले बचेंगे? पेरिस हमले के फौरन बाद सावधानी के तौर पर कुछ पत्र पत्रिकाओं ने शार्ली एब्दॉ के विवादित मुखपृष्ठों को अस्पष्ट कर दिया. डर का माहौल संपादकीय कमरों में पहुंच चुका है.

इस दिन कुछ और भी हुआ. हमले के तुरंत बाद विश्व भर में लोगों ने शार्ली एब्दॉ के साथ एकजुटता दिखाई. हैशटैग #JeSuisCharlie के साथ उन्होंने कहा, हममें से हर एक शार्ली है. हर पत्रकार, हर संस्कृतिकर्मी, हर कोई जो खुलकर बोल रहा है. एक सामूहिक डिजिटल चीत्कार, जो हर घंटे और जोरदार हुआ जा रहा है. हम सब को निराशा के खिलाफ इस तरह के अभियानों की जरूरत है ताकि एक और अक्सर उद्धृत बयान अपना महत्व न खोए: "मुझे तुम्हारे विचार पसंद नहीं, लेकिन मैं उसे बोलने के तुम्हारे अधिकार का हर हालत में बचाव करूंगा." आज हमें भले ही पता हो कि वोल्टेयर ने ऐसा कुछ लिखा नहीं था लेकिन उन्होंने ठीक ही कहा था.