पेइचिंग में महंगे हुए मकान
१९ जुलाई २०१०90 स्क्वेयर मीटर के औसत घर के लिए पेइचिंग में 16 लाख युआन यानी करीब एक करोड़ 10 लाख रुपये खर्च करने पड़ेंगे. बीते साल पेइचिंग में लोगों की औसत कमाई थी करीब 7100 युआन यानी करीब 50,000 रुपये. पेइचिंग यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी एंड सोशल साइंस एकेडमिक प्रेस की एक रिपोर्ट में ये बात सामने आई है.
हालांकि कमाई और मकानों की कीमत के बीच फासले की निगाह से देखें तो अभी भी ये दिल्ली और मुंबई के मुकाबले काफी सस्ता है. दिल्ली में मकानों की कीमत लोगों की औसत आमदनी का करीब 500 गुना या इससे भी ज्यादा है. यही हाल मुंबई और देश के बाकी महानगरों का भी है.पेइचिंग में मकान बनाने के लिए ज़मीन की कमी इसकी एक बड़ी वजह है. 10 साल पहले की स्थिती से तुलना करें तो ये महंगाई किसी का भी सिर घुमा देगी. लोगों को सस्ते दामों पर मकान देने की चीनी सरकार की सारी कोशिशें नाकाम हो रही हैं. मकान की मांग के मुकाबले उनकी मौजूदगी इतनी कम है कि कीमतें आसमान पर पहुंच गई हैं.
चीन की सरकार ने बढ़ती कीमतों पर रोक लगाने के लिए कुछ कदम उठाए हैं. इसमें मकान बनाने लायक जमीनों को सरकारी शिकंजे से मुक्त किया जाना भी शामिल है. इसका नतीजा भी जल्दी ही सामने आ गया. जुलाई 2010 में मकानों की कीमत पिछले महीने के मुकाबले नीचे आ गई. दरअसल आर्थिक तरक्की के रास्ते पर तेजी से बढ़ रहा चीन मकान की वजह से मार खाने को तैयार नहीं है.
पेइचिंग की ये महंगाई लोगों को इसलिए चौंका रही है क्योंकि 2007 के बाद दुनिया के ज्यादातर देशों के महानगरों में मकानों की कीमतें या तो गिरी हैं या फिर उनका बढ़ना थम गया है. लंदन, टोक्यो, न्यू यॉर्क, मुंबई, दिल्ली, फ्रैंकफर्ट सबका करीब करीब यही हाल है. आर्थिक मंदी ने सबसे ज्यादा हाउसिंग सेक्टर पर असर डाला और मकानों की बुकिंग बहुत तेजी से रद्द होने लगे. ऐसे में बिल्डरों को लोगों को लुभाने के लिए नई रणनीति बनानी पड़ी. किसी ने घर के साथ गाड़ी दी तो किसी ने फर्नीचर और किसी ने मकान की भीतरी सजावट. इसके बाद भी उनके ऊपर कीमतें कम करने का दबाव रहा जो कमोबेश अब तक जारी है.
कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन ने दिल्ली के प्रॉपर्टी बाज़ार में थोड़ी हलचल जरूर मचाई है और एक बार फिर यहां लोग मकान खरीदने का मन बनाने लगे हैं. कीमतों का बढ़ना फिर भी रुका हुआ है. यानी दो साल पुरानी कीमत पर अब भी आपको मकान मिल जाएगा... मुश्किल उनके लिए जो चांदनी चौक से चाइना जा रहे हैं. एक बार ज़रा ठहर कर सोच लीजिए रहेंगे कहां?
रिपोर्टः एजेंसियां/ एन रंजन
संपादनः ए जमाल