पृथ्वी को ठंडा करने वाली तकनीक
पर्यावरण परिवर्तन से निपटने के लिए इंजीनियर कई नए तरीकों पर काम कर रहे हैं. लेकिन पर्वयावरण पर तकनीक का इस्तेमाल क्या सही होगा? वैज्ञानिक इसी कशमकश में हैं.
तापमान से छेड़छाड़
जब हम जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल करते हैं तो वायुमण्डल में ग्रीनहाउस गैसों का स्तर और बढ़ता है. इससे पृथ्वी के पर्यावरण पर खराब असर पड़ रहा है. अब इंजीनियर तकनीक की मदद से पर्यावरण को संतुलित करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन परीक्षणों पर नजर गड़ाए विशेषज्ञों का कहना है कि वे पर्यावरण के मामले में तकनीक पर उतना भरोसा नहीं करते.
सूर्य की किरणों का परावर्तन
पर्यावरण इंजीनियरों का कहना है कि वे अंतरिक्ष में दर्पण स्थापित कर उन्हें कुछ ऐसे कोण पर बिठा सकते हैं जिससे सूर्य की किरणें वायुमंडल को भेद नहीं सकेंगी. कम सूर्य की किरणों का मतलब होगा कि ग्रीनहाउस गैसें ज्यादा ऊष्मा नहीं सोख सकेंगी. इससे तापमान में कमी आएगी. लेकिन हाल में ऑस्ट्रेलियाई और न्यूजीलैंड के विशेषज्ञों ने कहा है कि यह एक खतरनाक, महंगा और अनिश्चित तरीका है.
वायुमंडल में कण
जियोइंजीनियरों ने केमिकल क्लाइमेट कंट्रोल का भी परीक्षण किया. अगर धरती के वायुमण्डल की दूसरी सतह स्ट्रैटोस्फीयर में एक गुब्बारे की मदद से कुछ कण छोड़ दिए जाएं, तो वे उस स्तर पर काफी ऊष्मा सोख सकते हैं. लेकिन विशेषज्ञ ज्यादा प्राकृतिक तरीकों का इस्तेमाल करना चाहते हैं.
उजले बादलों से
बादलों को उजला करने के तरीके को लेकर विशेषज्ञों ने ज्यादा आनाकानी नहीं दिखाई है. इस तकनीक के अंतर्गत वायुमण्डल में समुद्र का पानी छिड़का जाता है. ये पानी के कारण बादलों में मिलकर उन्हें ज्यादा उजला और मोटा बना देते हैं.
एनहैंस्ड वेदरिंग
सर्वे में हिस्सा ले रहे विशेषज्ञों को एनहैंस्ड वेदरिंग तकनीक से भी आपत्ति नहीं दिखी. इस तकनीक में खनिजों को या तो बारीक किया जाता है या उनका तापमान बढ़ाया जाता है ताकि वायुमण्डल में कार्बन डाई ऑक्साइड में घुलने की उनकी दर बढ़ाई जा सके. इस तरीके से बनाया गया लाइमस्टोन कार्बन डाई ऑक्साइड को हजारों साल तक अपने अंदर रख सकता है. समस्या एक ही, इसमें पानी बहुत खर्च होता है.
घरेलू कोयले में CO2 अवशोषण
वनस्पति से तैयार कोयला बायोचार कहलाता है. यह कार्बन डाई ऑक्साइड को सैंकड़ों साल से लिए सोख लेता है. वैज्ञानिकों को इसमें एक ही कठिनाई दिखाई देती है कि इसमें बहुत ज्यादा जमीन की जरूरत होती है जो कि खेती के लिए जरूरी है.
और काम की जरूरत
पर्यावरण को बचाने से जुड़ी तकनीक पर आधारित यह सर्वे न्यूजीलैंड की मैसी यूनिवर्सिटी और इंग्लैंड की साउथैंपटन यूनिवर्सिटी ने कराया. रिपोर्ट के सहलेखक जेमन टीगल ने डॉयचे वेले को बताया कि जियोइंजीनियरिंग एक रास्ता हो सकता है. लेकिन वह मानते हैं कि पर्यावरण की समस्या से निपटने के लिए उत्सर्जन को कम करना होगा.