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पृथ्वी के गर्भ का एक रहस्य सुलझा

ओंकार सिंह जनौटी
१३ जनवरी २०१७

धरती के गर्भ में 85 फीसदी लोहा है और 10 फीसदी निकेल. लेकिन बची हुई 5 फीसदी चीज क्या है? जापानी वैज्ञानिकों ने इस रहस्य को सुलझाने का दावा किया है.

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Symbolbild Klimawandel Gesundheit
तस्वीर: picture-alliance/WILDLIFE

जापान के वैज्ञानिक कई दशकों से इस गुमशुदा तत्व की खोज कर रहे थे. अब वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि यह तत्व सिलिकन हो सकता है. सैन फ्रांसिस्को में अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन की मीटिंग में जापानी वैज्ञानिकों ने अपनी खोज सामने रखी.

धरती का गर्भ (अर्थ कोर) बाहरी सतह से  करीब 5,100 से 6,371  किलोमीटर नीचे है. इसका आकार एक बड़ी गेंद जैसा है और व्यास 1,200 किलोमीटर माना जाता है. सीधे तौर पर इतनी गहराई में पहुंचना इंसान के लिए फिलहाल संभव नहीं है. दुनिया में अभी तक सबसे गहरी खुदाई 4 किलोमीटर तक ही हुई है.

Grafik Schematischer Aufbau der Erde
भीतर से ऐसी है पृथ्वी की बनावटतस्वीर: Wikipedia

विज्ञान जगत के सामने सवाल था कि 6,000 डिग्री सेल्सियस की गर्मी में लोहे और निकेल को जोड़े रखने वाला आखिर कौन सा तत्व हो सकता है. वैज्ञानिकों का अनुमान था कि यह कोई हल्का तत्व ही होगा, जो अपने गुणों के आधार पर इन धातुओं से जुड़ सके.

पृथ्वी को खोदने के बजाए जापान की टोहोकु यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने लैब में एक छोटी धरती बनाई. उन्होंने इसे हूबहू धरती की तरह बनाया. इसमें बाहरी सतह, भीतरी मिट्टी, क्रस्ट, मैंटल कोर और कोर भी बनाई गई. कोर या गर्भ बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने लोहे, निकेल और सिलिकन का इस्तेमाल किया. फिर इस मिश्रण को 6,000 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर भारी दबाव में रखा गया. नतीजे धरती जैसे ही निकले. वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के गर्भ में होने वाली हलचल (सिस्मिक मूवमेंट) के आंकड़ों को एक्सपेरिमेंट के डाटा से मिलाया. इसके बाद ही इसके सिलिकन होने का दावा किया गया.

इस बीच कुछ वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वहां लोहे, निकेल और सिलिकन के साथ ऑक्सीजन भी हो सकती है. धरती की असीम गहराई को समझने से पृथ्वी की सेहत और ब्रह्मांड के बारे में काफी कुछ पता चल सकेगा.