पूर्व जर्मन राष्ट्रपति वाइत्सेकर 90 के हुए
१५ अप्रैल २०१०द्वितीय विश्व युद्ध की शर्मिंदगी और त्रासदी झेलने वाले जर्मनी में युद्ध में आत्मसमर्पण के दिन 8 मई को मुक्ति दिवस बताना पूर्व राष्ट्रपति वाइत्सेकर की उपलब्धियों में से एक माना जाता है. उन्हें 20वीं सदी का एक आदर्श व्यक्तित्व कहा जा सकता है. उनका अपना जीवन जर्मनी के इतिहास के साथ जुड़ा रहा है. चाहे वह द्वितीय विश्व युद्ध के दूसरे ही दिन उनके भाई की मौत हो, हिटलर की हत्या का प्रयास करने वाले सैनिक अधिकारियों में से कुछ के साथ उनकी दोस्ती रही हो या फिर नाज़ी शासन में उनके पिता की भूमिका.
इन विवाद भरे दिनों ने रिशार्द फॉन वाइत्सेकर के जीवन को गढ़ा और उनके व्यक्तित्व को वैसा बनाया जिसकी बाद में राजनेता के रूप में उनसे अपेक्षा थी. इनमें से एक है उनकी ओजस्विता. वे बहुत अच्छे वक्ता थे, जिनके भाषण का हर शब्द चुना हुआ लगता था. वे 1984 से 1994 तक देश के राष्ट्रपति रहे. इसी अवधि में विश्वयुद्ध में जर्मनी की हार की 40 वीं वर्षगांठ आई और जर्मन एकीकरण भी. 40वीं वर्षगांठ पर जर्मन संसद बुंडेसटाग में अपने भाषण में वाइत्सेकर ने स्वीकार किया कि "8 मई हम जर्मनों के लिए खुशियां मनाने का दिन नहीं है." लेकिन साथ ही कहा, "8 मई का दिन मुक्ति का दिन था, इस दिन हम सभी को नाज़ी हिंसक शासन की अमानवीय व्यवस्था से मुक्ति मिली."
अपने शब्दों से उन्होंने जर्मनी और जर्मनी के बाहर दिखाया कि वे एक ऐसे राजनेता हैं जो जर्मनों की भावना को अभिव्यक्ति दे सकते हैं. वाइत्सेकर एक मुश्किल राष्ट्रपति थे. वे विवेचना करते थे, सवाल पूछते थे और दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सोचते थे. नाज़ीकाल की बर्बरता के लिए आज की पीढ़ी की ज़िम्मेदारी पर उन्होंने कहा था, "पूर्वजों ने उनके लिए दर्दनाक विरासत छोड़ी है. हम सभी को चाहे दोषी हों या न हों, बूढ़े हों या युवा हों, अतीत को स्वीकार करना पड़ेगा."
दस साल राष्ट्रपति रहने के बाद वाइत्सेकर भले ही सक्रिय राजनीति में न हों, लेकिन वे सक्रिय हैं अब विश्व राजनीति में यूरोपीय वजन को बढ़ाने के लिए.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: राम यादव