पारे से घुलते जहर पर रोक लगेगी
१९ जनवरी २०१३पारे के अंधाधुंध इस्तेमाल को कम करने के इरादे से संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में जिनेवा में पांचदिवसीय बैठक हुई. बैठक के आखिरी दिन 140 से ज्यादा देशों ने इस पर अंकुश के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि स्वीकार करने की इच्छा जताई. शनिवार को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप) के प्रवक्ता निक नुटाल ने कहा, "सेहत के लिहाज से दुनिया की सबसे कुख्यात धातु से छुटकारा पाने की शुरुआत करने वाली संधि पर 19 जनवरी की सुबह सहमति बन गई." संधि पर इसी साल दस्तखत होंगे.
इस बारे में बनाए जाने वाले नियमों को मिनामाता संधि कहा जाएगा. मिनामाता वह जापानी शहर है, जिसने मानव इतिहास में पारे का सबसे बुरा असर देखा है. 1932 से 1968 के बीच मिनामाता में सिस्को नाम की केमिकल फैक्ट्री में पारे से खूब प्रदूषण फैला. 2001 में जांच के बाद पता चला कि पारे की वजह से 1,784 लोग मारे गए. 10,000 से ज्यादा लोगों को गंभीर बीमारियां हुईं.
अंकुश कैसे लगेगा
संधि के तहत पारे के व्यापार और उसकी आपूर्ति पर नजर रखी जाएगी. सभी सामानों और औद्योगिक प्रक्रियाओं में पारे के इस्तेमाल पर नियंत्रण होगा. छोटी और बड़ी सोने की खदानों से पारे के निकलने को कम करने के कदम उठाए जाएंगे. यूनेप के मुताबिक दुनिया में इस वक्त सबसे ज्यादा पारा दक्षिण पूर्व एशिया से निकल रहा है. दुनिया भर में पर्यावरण में जितना पारा घुल रहा है, उसका आधा दक्षिण पूर्व एशिया की वजह हो रहा है.
पारे का इस्तेमाल
बैठक से पहले ही यूनेप ने पारे को लेकर चेतावनी भरी रिपोर्ट जारी की. इसके मुताबिक विकास कर रहे देशों के वातावरण में पारे की मात्रा बढ़ रही है, इसकी वजह से स्वास्थ्य और पर्यावरण संबंधी जोखिम बढ़ रहा है. छोटे खनन उद्योगों और कोयला जलाने वाले उद्योगों को इसके लिए ज्यादा जिम्मेदार बताया गया.
खदानों में पारे का इस्तेमाल सोने की सफाई के लिए किया जाता है. इस दौरान खूब पानी भी खर्च होता है. धुलाई के बाद खदानों से निकलने वाले पानी में पारे की अच्छी खासी मात्रा होती है. पारे का इस्तेमाल फैक्ट्रियों की चिमनियों में भी होता है. चिमनियों में धुएं को साफ करने के लिए खास तरह के फिल्टर लगते हैं, इन फिल्टरों में पारा होता है. अत्यधिक तापमान पर यह पारा वाष्पीकृत होकर हवा में घुलता है.
पारा एक भारी धातु है लेकिन सामान्य तापमान पर तरल अवस्था में रहता है. यह आसानी से वाष्पीकृत हो जाता है. प्राकृतिक रूप से पारा चट्टानों, चूना पत्थर और कोयले में रहता है. कोयला जलाने पर पारा भाप बनकर हवा में घुल जाता है. सीमेंट उत्पादन में भी काफी पारा निकलता है.
क्यों घातक है पारा
वातावरण में घुलने के बाद पारा लंबे समय तक वहां बना रहता है. यह हवा, पानी, जमीन और जीव-जंतुओं में घुल जाता है. इंसान तक पहुंचने पर यह घातक असर दिखाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, "इंसान की सेहत के लिए पारा बहुत ही जहरीला है, गर्भ में पल रहे भ्रूण और बच्चों को इसका सबसे ज्यादा खतरा रहता है."
सांस के जरिए इंसानी शरीर में घुसने पर पारा तंत्रिका तंत्र, पाचन तंत्र और रोग प्रतिरोधक क्षमता, फेफड़ों और गुर्दों को नुकसान पहुंचाता और प्राण घातक साबित हो सकता है. यूनेप के मुताबिक बीते एक दशक में 260 टन जहरीला पारा जमीन से बहता हुआ नदियों और झीलों में पहुंच चुका है. समुद्र की ऊपरी की 100 मीटर की तह पर बीते 10 साल में पारे की मात्रा दोगुनी हो चुकी है.
ओएसजे/एजेए (एपी)