पागलखाने का ये अनदेखा चेहरा
यहां देखिए 1994 में बने बांग्लादेश के मशहूर पबना मेंटल हॉस्पिटल के पागलखाने में मानसिक रोगियों की स्थिति को दर्शाती कुछ दुर्लभ तस्वीरें.
पहला मानसिक अस्पताल
पबना मानसिक अस्पताल की शुरुआत एक घर में 1957 में हुई. 1959 में इसे एक अस्पताल में स्थानांतरित किया गया था. 60 बिस्तरों वाले अस्पताल से अब यह 500 बिस्तरों वाला बन चुका है.
मानसिक रोग
बांग्लादेश में करीब डेढ़ लाख वयस्क मानसिक रोग से ग्रस्त बताए जाते हैं, मोटे तौर पर भारत में ऐसे रोगियों की संख्या कुल आबादी के 5 प्रतिशत के आसपास यानि 5 करोड़ होने का अनुमान है. इनमें से केवल आधे को ही किसी तरह का उपचार मिल पाता है.
गलत धारणाएं
हर तरह के मानसिक रोगियों को 'पागल' नहीं कहा जा सकता. लेकिन ऐसी नकारात्मक राय के कारण ही कई लोग इस बारे में बात करने या इलाज के लिए जाने से हिचकिचाते हैं. इसके अलावा कम पढ़ी लिखी जनता में मानसिक रोगियों के बारे में कई भ्रांतियां भी हैं.
एम वार्ड
पबना मानसिक अस्पताल के पुरुष वार्ड यानि एम वार्ड की तस्वीर. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे कई विकासशील देशों में मानसिक बीमारी को गंभीरता से ना लेना एक बड़ा संकट है.
परिवार का साथ नहीं
मानसिक रोगियों को उनके परिवार और समाज से अलग नहीं किया जाना बल्कि उनके उपचार में परिवार वालों के साथ संपर्क बनाए रखना चाहिए. सच्चाई ये है कि एक बार पागलखाने में डालने के बाद कई लोग मरीज का हालचाल पूछने भी नहीं पहुंचते.
हिंसक प्रवृत्ति
कुछ रोगी जो बहुत हिंसक प्रवृत्ति के होते हैं उन्हें अलग वार्ड में रखा जाता है. तस्वीर में देखें 1994 में ली गई हिंसक गतिविधियों में संलग्न लोगों की तस्वीर.
बेचैन रोगी
कई रोगी लगातार नाचते गाते रहते हैं तो कुछ खुद को फिल्मी सितारे या कोई और मशहूर हस्ती मानने लगते हैं. रोगियों में बेचैनी दिखाई देना आम बात है.