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पाकिस्तान में नास्तिक होने का मतलब

Priya Esselborn१५ दिसम्बर २०१२

आजादख्याल कवियों, कलाकारों का देश रहा पाकिस्तान अब मजहबी बंदिशों में जकड़े समाज की जमीन बन रहा है. यहां कभी ईशनिंदा के नाम पर सर कुचले जाते हैं तो कभी धर्म को न मानने पर. ईश्वर को न मानने वाले लोग यहां कैसे जीते हैं.

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तस्वीर: picture alliance/Godong/Robert Harding

पाकिस्तान दुनिया के उन सात देशों में एक है जहां नास्तिकों को भेदभाव और अत्याचार का सामना करना पड़ता है. नीदरलैंड्स की इंटरनेशनल ह्यूमैनिस्ट एंड एथिकल यूनियन (आईएचईयू) ने इस हफ्ते द फ्रीडम ऑफ थॉट 2012 रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कई इस्लामी देशों में नास्तिक लोगों को भेदभाव सहना पड़ता है और यहां तक कि कई बार सरकार या लोगों को उनकी आस्था के बारे में पता चलने पर उन्हें सजा भी भुगतनी पड़ी है. करीब 100 से ज्यादा मानववादी, धर्मनिरपेक्ष. नास्तिक और आजाद सोच रखने वाली संस्थाओं के संगठन आईएचईयू ने 60 देशों में सर्वे किया है. कई पश्चिमी देशों में भी नास्तिक लोगों को कानूनी या सांस्कृतिक रूप से भेदभाव झेलना पड़ता है. हालांकि सर्वे के नतीजे बताते हैं कि इस्लामी देशों में ऐसे लोगों को सजा देने की प्रवृत्ति बड़ी तेजी से बढ़ रही है.

Ahmed Faraz Dichter aus Pakistan
तस्वीर: AP

हालात यह है कि नास्तिक या गैर मजहबी विचारधारा रखने वाले लोग अफगानिस्तान, ईरान, मालदीव, मौरितानिया, पाकिस्तान, सउदी अरब और सूडान जैसे देशों में मौत की सजा तक भुगतने पर मजबूर हैं. पाकिस्तान में नास्तिकों के खिलाफ भेदभाव बड़ी तेजी से बढ़ा है. यह वही जगह है जो कभी अपने विद्रोही धर्मनिरपेक्ष छात्र आंदोलन, मार्क्सवादी कवियों, चित्रकारों और धर्म से दूर रहने वाले राजनेताओं का देश रहा था.

धार्मिक उदारता का इतिहास

पाकिस्तान की 18 करोड़ आबादी में से 97 फीसदी लोग मुस्लिम हैं और ईशनिंदा या पैगंबर मुहम्मद का अपमान पाकिस्तान में अत्यंत संवेदनशील मसला है. हालांकि पाकिस्तान में ईशनिंदा को आमतौर पर ईसाई, हिंदू और अहमदिया जैसे धार्मिक अल्पसंख्यकों से जोड़ कर ही देखा जाता है. इसमें बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय से जुड़े नास्तिक लोग हमेशा शामिल नहीं होते. पाकिस्तान में सार्वजनिक रूप से गैर मजहबी लोगों की आवाज नहीं सुनाई पड़ती. पाकिस्तान में नास्तिक और धर्म को शंका की नजर से देखने वाले लोग बहुत थोड़े से हैं. इनमें से ज्यादातर शहरी परिवेश से आने वाले पढ़े लिखे लोग हैं. थोड़ा और करीब से देखें तो वो धर्म से दूर कवि, विद्वान, छात्र, राजनेता या मानवाधिकार कार्यकर्ता कुछ भी हो सकते हैं.

Gouverneur Salman Taseer Attentat
तस्वीर: DW

जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान में भी कभी समय था जब गैरमजहबी लोगों को अपनी राय जाहिर करने की आजादी थी. इस्लामी चरमपंथ बढ़ने के बाद खासतौर से 1980 के दशक में अफगान जंग के बाद बौद्धिक चर्चाओं की संस्कृति और धर्म को न मानने वाले लोगों के प्रति उदारता खत्म होने लगी. कराची में रहने वाले आलोचक और विद्वान डॉ मुहम्मद अली सिद्दिकी ने डीडब्ल्यू को बताया कि 1950 से 60 के दशक में पाकिस्तान के मौलवी नास्तिकों के प्रति काफी उदार थे. उन्होंने बताया कि दोनों तरह के लोग सकारात्मक चर्चाओं में शामिल हो कर धर्म या ईश्वर के प्रति अपनी सोच को साबित करने की कोशिश करते थे. सिद्दिकी अब अफसोस जताते हैं कि पाकिस्तान में वैचारिक उदारता का वह दौर खत्म हो गया है. उन्होंने कहा, "भारत से अलग होने के पहले हसरत मोहानी जैसे धार्मिक नेता नास्तिक और नास्तिकता का भी सम्मान करते थे. यहां तक कि पाकिस्तान की आजादी के बाद भी धार्मिक नेता और आम पाकिस्तानी नास्तिक लोगों के साथ भेदभाव नहीं करते थे." सिद्दिकी ने बताया कि 1970 के दशक से इस्लाम के चरमपंथी रूप ने समाज को अपने कब्जे में ले लिया.

विश्वास को ठोकर

ऐसे देश में जो हमेशा आत्मघाती बम हमलों, धार्मिक अल्पसंख्यकों को गैरकानूनी तरीके से मौत की सजा, गैर मुस्लिमों के खिलाफ ईशनिंदा के आरोपों, महिलाओं के खिलाफ हिंसा और अमेरिका विरोधी रैलियों के लिए खबरों में बना रहता है वहां नास्तिक लोगों को कैसा महसूस होता है. कराची में दर्शन और साहित्य पढ़ रहे ए जमान ने डीडब्ल्यू से कहा, "मैं 1990 के शुरूआती दशक तक मुस्लिम हुआ करता था लेकिन समय बीतने के साथ मैंने धर्म में आस्था खो दी और ईश्वर या किसी अलौकिक ताकत में यकीन करने लगा. 2000 के शुरुआती दशक में मैं अमेरिका के कुछ लोगों से इंटरनेट पर संपर्क में आया और कई लोगों से असल जिंदगी में भी मिला जो ऐसी बातें कहते जिससे कि मैं ईश्वर के विचार पर सवाल उठाने लगा."

Blasphemie Gesetz in Pakistan FLASH Galerie
तस्वीर: AP

जमान ने बताया कि ब्रिटिश लेखक बर्ट्रैंड रसेल की किताब "व्हाई एम आई नॉट ए क्रिस्चियन" ने उन्हें पूरी तरह से नास्तिक बना दिया. इस तरह के विचारों को पाकिस्तान में जाहिर करना हो तो थोड़ी कूटनीति की जरूरत होती है. जमान बताते हैं, "जब मैंने अपने विचार रखने शुरू किए तो मेरे कुछ दोस्तों को तो इससे कोई समस्या नहीं थी लेकिन कुछ ने मेरा मजाक बनाया, कुछ ने यह समझाने की कोशिश की कि ईश्वर है और कुछ ने कहा कि मैं शैतान को मानने लगा हूं."

एक मुस्लिम से नास्तिक में बदल चुके युवा पाकिस्तानी कवि ए हसन ने डीडब्ल्यू को बताया कि वह कभी भी मुस्लिम रीति रिवाजों से जुड़ाव महसूस नहीं करते थे. उन्होंने बताया कि जब उन्होंने अपने विचार दोस्तों से बांटे तो ज्यादातर ने उन्हें मजाक में लिया. कुछ ने तो यहां तक कहा कि वो एक दौर से गुजर रहे हैं जो जल्द ही खत्म हो जाएगा. हसन अमेरिका में पढ़ाई कर चुके हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि लौटने पर उनसे कहा गया कि जो कुछ उन्होंने कहा है उस के बारे में उन्हें बहुत सजग रहना चाहिए.

धर्मनिरपेक्ष पाकिस्तान

जमान और हसन दोनों की राय है कि पाकिस्तान को एक धर्मनिरपेक्ष देश होना चाहिए और यहां धर्म की सार्वजनिक जिंदगी में कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए. इस्लामाबाद में रहने वाले एक गैरमजहबी शख्स ने पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कहा, "हम गैर मजहबी लोग हैं लेकिन हम धर्मनिरपेक्ष भी हैं और सभी धर्मों का सम्मान करते हैं. यह हमारा अधिकार है कि हम धर्म या ईश्वर में यकीन करें या ना करें." हसन का कहना है कि पाकिस्तान धर्मनिरपेक्ष आदर्शों पर बना था और आज इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है.

रिपोर्टः शामिल शम्स/एन आर

संपादनः महेश झा

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