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पाकिस्तान में अमेरिकी नागरिकों को 10 साल की सजा

२४ जून २०१०

पाकिस्तान की एक अदालत ने पांच अमेरिकी छात्रों को दस साल कैद की सजा सुना दी है. इन पर पाकिस्तान में आतंकवादियों से इंटरनेट पर संपर्क करने का आरोप है और आतंकवादी हमलों की साजिश रचने के भी इलजाम हैं.

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तस्वीर: AP

इन पांच छात्रों को पिछले दिसंबर 2009 में पाकिस्तानी शहर सरगोधा में गिरफ्तार किया गया था. सरगोधा राजधानी इस्लामाबाद से 190 किलोमीटर की दूरी पर है. पाकिस्तान के सरकारी वकील राना बख्तियार ने कहा कि हर मुजरिम पर दो आरोप लगे हैं. एक आरोप के लिए 10 साल की सजा दी गई है जबकि दूसरे आरोप के लिए मुजरिमों को पांच साल जेल में बिताने होंगे.

दोनों सज़ा साथ शुरू होगी. बख्तियार के मुताबिक सजा 20 साल तक बढ़ाने के लिए हाई कोर्ट में अर्जी दी जाएगी. इसके अलावा मुजरिमों पर 70,000 पाकिस्तानी रुपये यानी लगभग 38,000 भारतीय रुपयों का जुर्माना लगा है.

Pakistan schwere Gefechte Armee gegenTaliban
तस्वीर: AP

बचाव पक्ष के वकील हसन कचेला ने कहा है कि आरोपियों को पांच में से तीन आरोपों से मुक्त कर दिया गया लेकिन दो इलजामों के आधार पर उन्हें सजा दी गई है. आपराधिक साजिश के लिए उन्हें 50,000 पाकिस्तानी रुपये और एक प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन को पैसे देने के लिए उन पर 20,000 रुपयों का जुर्माना हुआ है. साथ ही बचाव पक्ष के वकीलों ने कहा कि वे सजा के खिलाफ अपील करेंगे. अगर अभियोजन पक्ष की अपील सफल हुई तो ऊमर फारुख़, वकार हुसैन, रामी जमजम, अहमद अब्दुल्लाह मिनी और अम्मान हसन यामर को आजीवन कारावास की सजा भी हो सकती है.

इन छात्रों ने अदालत से पहले कहा था कि वे अफगानिस्तान में 'मुसलमान भाइयों' की दवाइयों और पैसों से मदद करना चाहते थे. उन्होंने अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई और पाकिस्तानी पुलिस पर उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं और कहा है कि उन्हें फंसाने की कोशिश की गई.

इन पांच में से दो पाकिस्तानी मूल के हैं. बाकी तीन मिस्र, यमन और इरीट्रिया के हैं. पिछले साल यह पाकिस्तान गए थे और कुछ ही दिनों बाद इन्हें गिरफ्तार किया गया. पाकिस्तानी पुलिस ने कहा कि उनके पास से ऐसे ईमेल हैं जिससे पता चलता है कि इन छात्रों ने आतंकवादियों से संपर्क किया. आतंकवादी इन्हें हमलों के लिए इस्तेमाल करना चाहते थे. पाकिस्तानी अधिकारियों का कहना है कि वे अफगानिस्तान जा कर अमेरिकी और नैटो फौजों के खिलाफ लड़ रहे तालिबान उग्रवादियों का साथ देना चाहते थे.

रिपोर्टः एजेंसियां/ एम गोपालकृष्णन

संपादनः ए जमाल