किल्ला सर्वश्रेष्ठ फिल्म
१८ फ़रवरी २०१४पिता की मृत्यु के बाद चीनू मां के साथ गांव रहने चला गया. लेकिन इस परिवर्तन के साथ ढलना, नई जगह नए दोस्त बनाना उसके लिए आसान नहीं था. अरुण की मराठी फिल्म 'किल्ला' की कहानी इसी बच्चे, चीनू के इर्द गिर्द बुनी गई है. बर्लिन फिल्म महोत्सव में फिल्म को जनरेशन के प्लस वर्ग में चिल्ड्रेंस ज्यूरी द्वारा क्रिस्टल बीयर यानी सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
सपने जैसा
अरुण ने डॉयचे वेले से कहा, "मुझे तो अब तक विश्वास नहीं हो रहा है. मैं वापस आकर अपने काम में व्यस्त हो गया हूं इसलिए इस बारे में सोच नहीं रहा हूं. लेकिन मुझे लगता है विश्वास होने में अभी समय लगेगा." अरुण का कहना है कि इस पुरस्कार के मिलने से उन्हें अपने कंधों पर जिम्मेदारी का एहसास हो रहा है.
उनके साथ फिल्म की कहानी लिखने वाले ओंकार अच्युत बर्वे ने कहा कि यह उनके और पूरी टीम के लिए सपने जैसा है. उन्होंने कहा उन्हें इस बात की तो उम्मीद थी फिल्म को बर्लिन में दिखाए जाने के लिए चुन लिया जाएगा लेकिन पुरस्कार भी मिलेगा ऐसा नहीं सोचा था.
फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट से पढ़ाई के बाद अरुण ने जब अपनी फिल्म बनाने के बारे में सोचा तो सबसे पहले खुद अपनी ही कहानी बनाना तय किया. उन्होंने बताया कि उनका जन्म दक्षिणी महाराष्ट्र के छोटे से शहर में हुआ था. पिता की नौकरी के चलते उन्हें बार बार एक शहर से दूसरे शहर जाना पड़ता था. हर जगह लोग अलग होते थे और उन्हें अपने लिए नए सिरे से दोस्त तलाशने होते थे जो कि कई बार बेहद मुश्किल होता था.
मिला आत्मविश्वास
भारत में मसाला फिल्मों की भीड़ में कला फिल्मों या किसी संजीदा विषय पर फिल्म बनाने के लिए प्रोड्यूसरों और डिस्ट्रिब्यूटरों का मिलना आसान नहीं है. भविष्य में अरुण व्यवसायिक फिल्म बनाना चाहेंगे या नहीं इस बारे में उन्होंने अभी तय नहीं किया है. अरुण ने कहा, "भारतीय बाजार को देखते हुए कई बार उस तरह का काम करना बहुत मुश्किल हो जाता है जो आप खुद अपनी पसंद से करना चाहते हैं. लेकिन बर्लिनाले में मिले अनुभव से मुझे इस बात का आत्मविश्वास मिला है कि इस तरह की और फिल्में बनाई जा सकती है." उन्होंने बताया कि उनके पास और भी कई कहानियां हैं लेकिन फिलहाल कोई नया प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले वह इस फिल्म को मिल रही प्रतिक्रिया से सीखना चाहते हैं."
उन्होंने कहा, "फिल्मों के माध्यम से आपके हाथ में एक तरह की ताकत होती है, और मुझे इस ताकत का सही दिशा में, सही तरीके से, जरूरी कहानियां सुनाकर इस्तेमाल करना है."
रिपोर्ट: समरा फातिमा
संपादनः आभा मोंढे