पहचान छुपाती जर्मनी पुलिस
१५ नवम्बर २०१२डेरेगे वेफेलसीप अपनी प्रेमिका के साथ फ्रैंकफर्ट की लोकल ट्रैम में सफर कर रहे थे, तभी उन्हें टिकट इंस्पेक्टरों ने पकड़ लिया. इथोपियाई मूल के जर्मन नागरिक वेफेलसीप के पास कोई पहचान पत्र नहीं मिला. टिकट इंस्पेक्टरों ने पुलिस को बुला लिया. पुलिस अफसर वेफेलसीप के साथ उसके घर गए. उसके बाद क्या हुआ, यह पुलिस ने नहीं बताया, वेफेलसीप अंत में अस्पताल में पाए गए. मेडिकल रिपोर्ट के मुताबिक 41 साल के वेफेलसीएप के पूरे शरीर पर चोटें थीं. फ्रैंकफर्ट रुंडशाऊ अखबार से बातचीत में वेफेसीप ने आरोप लगाया कि पुलिस ने उनके साथ मारपीट की. पुलिस आरोप खारिज कर रही है.
मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट में भी आरोप लगाए गए हैं कि जर्मन पुलिस के खिलाफ लगे आरोपों की जांच में भेदभाव होता है. वेफेलसीप ऐसे अकेले शख्स नहीं हैं जो यह आरोप लगा रहे हैं. एमनेस्टी इंटरनेशनल के 2010 के शोध के मुताबिक कई मामले सामने आए हैं जिनमें जर्मन पुलिस पर ऐसे ही आरोप लगे. दस्तावेज में जर्मनी की आलोचना करते हुए कहा गया है कि देश में पुलिस दुर्व्यवहार की जांच करने के लिए कोई स्वतंत्र और ऊंची संस्था नहीं है. 2011 में यूएन कमेटी अंगेस्ट टॉर्चर (सीएटी) ने भी जर्मनी की आलोचना करते हुए कहा कि संघीय और प्रांतीय स्तर पर सरकारी अभियोजक और पुलिस ही पुलिस दुर्व्यवहार की जांच करते हैं.
पहचान से घबराहट
बर्लिन की दंगारोधी पुलिस के अफसरों के लिए वर्दी में चार अंक वाला पहचान नंबर लगाना अनिवार्य है. एक जनवरी 2013 से ब्रांडनबुर्ग में भी यह नियम लागू होगा. जर्मनी में संघीय पुलिस ही अपने अफसरों और प्रांतीय पुलिस के अफसरों की पहचान की जांच करती है. एमनेस्टी इंटरनेशलन के पुलिस और मानवाधिकारों मामलों के प्रवक्ता आलेक्सांडर बॉश कहते हैं, "पहचान साफ होना तो स्वतंत्र जांच तंत्र का शुरुआती बिंदु है." हालांकि पुलिस यूनियन और पुलिस स्टाफ काउंसिल इन कदमों का कड़ा विरोध कर रहे हैं. अब तक 14 प्रांतों में संघीय और स्थानीय पुलिस वर्दी पर नाम या पहचान नंबर लगाने से इनकार कर रही है.
जर्मन पुलिस ऑफिसर्स यूनियन के अध्यक्ष बेर्नहार्ड विटहाउट कहते हैं, "हम अनिवार्य पहचान का विरोध करते हैं." डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने आशंका जताई कि ऐसा करने से पुलिस के अधिकारियों को बेवजह फंसाया जा सकता है. उनके मुताबिक इन दिनों पुलिस ऑपरेशन के फोटो और वीडियो इंटरनेट पर आ जाते हैं, ऐसे में पहचान होने से पुलिस अधिकारियों की जान पर भी खतरा मंडराने लगेगा. वह स्वेच्छा से नेम प्लेट या पहचान नंबर लगाने की बात करते हैं, "80 से 90 फीसदी साथी हर दिन के काम काज में यह कर रहे हैं."
बाहरी जांच से इनकार
यूनियन प्रमुख पुलिस दुर्व्यवहार के आरोपों की जांच किसी बाहरी संस्था से कराने के भी खिलाफ हैं. विटहाउट कहते हैं, "मेरे विचार से हमें किसी बाहरी की जरूरत नहीं है, हमें अनिवार्य शिकायत संस्था की जरूरत नहीं है." उनका तर्क है कि अपराध के खिलाफ कदम उठाना पुलिस का काम है, ऐसे में स्वतंत्र शिकायत संस्था क्या करेगी.
एमनेस्टी के अधिकारी बॉश पुलिस यूनियन के विचार से सहमत नहीं हैं. बॉश कहते हैं, "हमनें जर्मनी में कई ऐसे मामले खोजें हैं जो पुलिस अफसरों के खिलाफ है. इनकी जांच की या तो शुरुआत ही नहीं हुई या उन्हें गिरा दिया गया." एक बड़ी मुश्किल ये रही कि ज्यादातर मामलों में आरोपी पुलिसकर्मियों की पहचान ही नहीं हो सकी. कुछ मामलों को जांच में निराधार करार दिया गया.
बर्लिन में कानून के प्रोफेसर टोबियास जिंगेलनश्टाइन दावा करते हैं कि पुलिस अफसरों पर लगे अपराध के 95 फीसदी आरोप गिरा दिए जाते हैं. यह आंकड़ें खुद संघीय विभाग के हैं. 2010 में पुलिसकर्मियों के खिलाफ 3,989 शिकायतें आई थी, इनमें से करीब 3,500 मामलों में तो सुनवाई भी शुरू नहीं हुई.
बॉश आरोप लगाते हैं अभियोजन पक्ष और पुलिस के बीच बहुत ज्यादा नजदीकी है. यही वजह है कि एमनेस्टी अनिवार्य पहचान और स्वतंत्र जांच संस्था की मांग कर रहा है. यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और पुर्तगाल में ऐसी संस्थाएं हैं.
रिपोर्टः वुल्फ विल्डे/ओएसजे
संपादनः एन रंजन