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नोटबंदी के बाद कैशलेस होने की तरफ बढ़ता एक गांव

फैसल फरीद
१६ दिसम्बर २०१६

नोटबंदी की मुश्किलों से जूझ रहे भारत में आशा की किरण भी दिखाई दे रही हैं. विकास से पिछड़े गाँव भी अब वक्त का तकाजा समझते हुए डिजिटल होने की राह पर हैं.

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तस्वीर: DW/F. Fareed

उत्तर प्रदेश के औद्योगिक जिले कानपुर में एक ऐसा ही गाँव हैं जिसने अब धीरे धीरे अपना लेन-देन इलेक्ट्रॉनिक ट्रान्सफर से करना शुरू कर दिया हैं. नोटबंदी से जो मुश्किल जनता के सामने आई वह नए नोट की किल्लत और फुटकर पैसे की भारी कमी के रूप में दिखी. नकद पैसा हाथ में ना होने की वजह से रोजमर्रा की जिन्दगी पर असर पड़ने लगा, वही बैंक और एटीएम के बाहर भीड़ और लम्बी लाइन होने की वजह से कानून व्यवस्था की समस्या भी पैदा होने लगी.

कानपुर जिला मुख्यालय से लगभग 27 किलोमीटर दूर चौबेपुर विकास खंड के अंतर्गत गाँव पचोर भावपूर भी नोटबंदी से अछूता नहीं रहा. गाँव में 537 परिवार और 2,137 वोटर हैं जिसके हिसाब से इसकी आबादी लगभग 5000 हैं. नोटबंदी के कुछ दिनों बाद से ही गाँव में पैसे की किल्लत शुरू हो गई. इस गाँव में हफ्ते में तीन दिन मंगलवार, गुरुवार और शनिवार को बाजार लगता है जिसमें गांववाले अपनी जरूरत का सामान लेते हैं. इसके अलावा गाँव में लगभग सभी चीज की बड़ी दुकानें भी है. अधिकतर गांववाले खेती, मजदूरी करते हैं या फिर कानपुर की फैक्ट्री में श्रमिक हैं. ऐसे में उनसे किसी प्रकार के कैशलेस लेन-देन की आशा करना ठीक भी नहीं हैं.

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गाँववालो की दिक्कत और ज्यादा थी क्योंकि सबसे करीब बैंक और एटीएम लगभग साढे चार किलोमीटर दूर हैं. गाँव के प्रधान पीयूष मिश्र के अनुसार नोटबंदी के बाद दिक्कतें काफी बढ़ गई थी. मिश्र ने बताया, "एक तो पैसे बहुत मुश्किलों से बैंक से मिलते और फिर दो हजार के नए नोट से सौदा लेना मुश्किल हो गया. अब हमारे यहाँ किसी दुकानदार के पास दो लोग अगर 2000 का नोट लेकर आ गए तो उसके पास टूटे की दिक्कत हो जाती है."

ऐसे हालात में पीयूष ने कानपुर में पेटीएम के कार्यालय में सम्पर्क किया. वह बताते हैं, "मेरी बात वहां राजीव शुक्ल से हुई. पहले मैंने शहर जाकर खुद अपने फोन पर पेटीएम एप डाउनलोड किया और इस्तेमाल किया. संतुष्ट होने के बाद वापस गाँव में पेटीएम के लोगो को बुलाया. गाँव के दुकानदारों की मीटिंग करवाई."

प्राथमिकता के आधार पर पहले एक मेडिकल स्टोर, परचून की दुकान, पान वाले, कॉस्मेटिक की दुकान, खाद और बीज की दुकान और एक बाइक रिपेयरिंग करने वाले की दुकान पर पेटीएम से लेन-देन शुरू करवाया. पीयूष के अनुसार अब धीरे धीरे और लोग जुड़ते चले गए और लेन-देन मोबाइल के माध्यम से शुरू हो गया. काम चलने लगा तो गाँववालों ने भी इसे अपनाना शुरू कर दिया. पेटीएम को भी सीधे गाँव के अन्दर तक पहुँच मिली तो उन्होंने भी अपने कर्मचारियों को भेजकर गांववालों को प्रशिक्षण दे दिया.

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इसका असर यह हुआ कि आसपास के 10-12 गाँव जो पचोर गाँव के बाज़ार पर निर्भर हैं, वो भी आकर्षित होने लगे. रोज़ 8-10 लोग अब प्रधान पीयूष मिश्र के पास पहुचते हैं और अपने मोबाइल पर पेटीएम एप्प डाउनलोड करवा कर इस्तेमाल का तरीका समझते हैं. हर परिवार अब ई-वॉलेट बनाकर लेन-देन करता हैं.

पीयूष के अनुसार इस सुविधा में आसानी तो हैं लेकिन कई दुश्वारियां आ रही हैं. पहली, पेटीएम को इस्तेमाल करने के लिए एंड्राइड फ़ोन होना चाहिए जो कि लगभग 5,000 रुपये का आता है, जो सब के पास नहीं हैं. लेकिन फिर भी गाँव के 18-25 साल के लड़के अपने फोन से दूसरे का पेमेंट कर देते हैं. दुकानदार भी ज्यादा एडवांस नहीं हैं और साप्ताहिक बाज़ार वाले भी अभी एंड्राइड फ़ोन नहीं खरीद पाए हैं.

दूसरी बड़ी दिक्कत है गाँव में किसी दुकान पर कोई स्वाइप मशीन नहीं हैं. पीयूष के अनुसार बैंक वाले एक स्वाइप मशीन के 1500 रुपये मांग रहे हैं और फिर स्वाइप मशीन के लिए दो दिन लाइन लगना पड़ेगा और मशीन 20 दिन बाद आएगी. ऐसा कर पाना मुश्किल हैं. इसके अलावा बैंक भी गाँव की जनता के लिए कोई विशेष सुविधा देने के इच्छुक नहीं हैं.

कुछ भी हो, लेकिन पचोर गाँव ने एक राह दिखा दी हैं. शहरों में भले कार्ड का चलन हो लेकिन एक छोटे से गाँव ने भी कैशलेस के तरफ कदम बढ़ा दिए हैं. खंड विकास अधिकारी चौबेपुर ब्लाक अमित परिहार के मुताबिक यह पहल अच्छी है और इस गाँव की वजह से दूसरे आसपास के गाँव भी धीरे धीरे कैशलेस के तरफ बढ़ रहे हैं.

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