1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

नॉर्डिक देशों से बहुत कुछ सीख सकता है भारत

निखिल रंजन
१७ अप्रैल २०१८

यह पहला मौका है जब भारत और नॉर्डिक देशों का शिखर सम्मेलन हो रहा है. मानव विकास के ज्यादातर मानकों पर बढ़िया रिकॉर्ड रखने वाले नॉर्डिक देशों के साथ भारत का सहयोग दोनों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है.

https://p.dw.com/p/2wAfI

Schweden Indien Narendra Modi Ankunft Stockholm
तस्वीर: Reuters/TT News Agency/C. Bresciani

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेशी नीति में खास दिलचस्पी लेते हैं और दुनिया के अलग अलग हिस्सों में बसे देशों का दौरा कर उन्होंने भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंधों में ऊर्जा भरने की कोशिश की है. यूरोप के कई देशों के साथ भारत के पहले ही प्रगाढ़ संबंध रहे हैं लेकिन पारंपरिक रूप से इसमें यूरोपीय संघ ही प्रमुख भूमिका निभाता रहा है. अब नॉर्डिक देशों के साथ इस सम्मेलन के जरिए यूरोप के एक और प्रमुख ब्लॉक के साथ भारत अपना सहयोग बढ़ाने की कोशिश में है. नॉर्डिक देशों ने इससे पहले सिर्फ अमेरिका के साथ ही द्विपक्षीय सम्मेलन का आयोजन किया था और वह भी पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में. भारत के अनुरोध पर स्वीडन में हो रहा यह सम्मेलन कई मायनों में नया है.

नॉर्डिक देशों के इस सम्मेलन में स्वीडन के अलावा, नॉर्वे, डेनमार्क, फिनलैंड और आइसलैंड शामिल हैं. ये चारों देश मानवाधिकार, जीवनशैली, बराबरी, महिला अधिकार, मानव विकास, अपराध नियंत्रण, न्याय प्रणाली, प्रशासनिक तंत्र जैसे दर्जनों सूचकांकों में सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाले देश हैं. पूरी दुनिया में इन्हें इस मामले में अगुआ माना जाता है, जबकि भारत का रिकॉर्ड इन मामलों में अकसर सवालों में घिरा रहता है. भारत इन देशों से बहुत कुछ सीख सकता है और इसमें इन देशों की भी खास दिलचस्पी है. गैरसरकारी संगठनों के जरिए ये देश पहले ही भारत में मानवाधिकारों से लेकर पर्यावरण, न्यायिक, महिला सुरक्षा और दूसरे सामाजिक अभियानों में काफी पैसा खर्च कर रहे हैं. 

हालांकि विदेशी धन से चलने वाले संगठनों पर मोदी सरकार की लगाम कसने जैसी कोशिशों से इसमें बाधा भी आई है लेकिन बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है. यह सम्मेलन एक बार फिर से इस दिशा में दोनों पक्षों को करीब ला सकता है. जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर यूरोपियन स्टडीज के प्रोफेसर गुलशन सचदेवा ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "एक विकासशील देश के रूप में भारत को बहुत कुछ सीखना है, तकनीक लेनी है, निवेश हासिल करना है, यह सभी देश यूरोपीय संघ के भी सदस्य हैं, ये सिर्फ पूंजीपति देश या मुक्त बाजार की अर्थव्यवस्थाएं नहीं हैं, इन देशों में नागरिक सुविधाएं भी काफी बेहतर हैं तो इस लिहाज से भारत के लिए यह काफी फायदेमंद हो सकता है."

जहां तक आर्थिक संबंधों की बात है तो नॉर्वे पहले से ही भारत में नॉर्वेजियन सोवरेन फंड के जरिए भारी निवेश कर रहा है. 2017 में इसका आंकड़ा बढ़ कर 11.7 अरब तक जा पहुंचा है. नॉर्वे में तेल के बड़े भंडार है और इससे मिले पैसे को वह दुनिया के देशों में निवेश करता है. प्रो. सचदेवा बताते हैं, "नॉर्व के पास नॉर्वेजियन सोवरेन फंड के रूप में 300-400 अरब डॉलर है जो अगले कुछ सालों में 600-700 अरब डॉलर होगा. नॉर्वे भारत और चीन में निवेश करने में दिलचस्पी ले रहा है क्योंकि यहां विकास की तेज दर है, भारत इसमें से अपने लिए और बड़ी हिस्सेदारी हासिल कर सकता है."

एक बड़े लोकतंत्र के साथ भारत का बड़ा बाजार भी इन देशों की दिलचस्पी की एक बड़ी वजह है. इन देशों के पास पैसा है और उन्हें निवेश करने के लिए एक अच्छा मौका यहां मिल सकता है. भारत की कोशिश अपने नागरिकों के लिए दुनिया के ज्यादातर देशों के दरवाजे खोलना भी है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस दिशा में भी काफी कोशिश कर रहे हैं. हालांकि यूरोपीय देश इस मामले में काफी सशंकित रहते हैं पर इस तरह के सहयोग से देर सबेर फायदा हो सकता है.  

भारत आबादी और बाजार के लिहाज से तो बड़ा बन रहा है लेकिन सामाजिक विकास के मामले में उसकी स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती. पारंपरिक मूल्यों और तेज विकास के साथ बदलती जीवनशैली ने भारत में कई गतिरोध पैदा किए हैं. इनमें संतुलन बनाने और विकास को सही राह दिखाने में नॉर्डिक देश के अनुभव बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. इन देशों के साथ एक अच्छी बात है कि ये आर्थिक निवेश में भी मूल्यों का विशेष ध्यान रखते हैं. इन देशों के साथ भारत की खास साझेदारी उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी भूमिका और छवि को बेहतर करने में मददगार होगी.