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नैनो कण देंगे नई रोशनी

Priya Esselborn५ जुलाई २०१०

एलईडी--लाईट एमिटिंग डायोड--बिजली के हर दूसरे बल्ब से कई गुना अधिक बिजली की बचत करते हैं. लेकिन उनका सफ़ेद प्रकाश अब तक कुछ दूधिया हुआ करता था. उनकी नयी पीढ़ी के साथ यह समस्या नहीं होगी.

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तस्वीर: PTB

प्रकाश उत्सर्जी डायोड --LED-- इतने बचतकारी हैं कि आजकल मोबाइल फ़ोन या एमपी3 प्लेयर के डिस्प्ले स्क्रीन भी उन्हीं के प्लास्टिक संस्करण OLED (ऑर्गैनिक लाइट एमिटिंग डायोड) के बने होते है. ओलेड बिजली बचाने के साथ ही सस्ते ज़रूर हैं, पर उनकी चमक थोड़ी कम होती है. साथ ही हवा की नमी और ऑक्सीजन उन्हें पसंद नहीं. इस कारण उनका जीवनकाल बहुत संतोषजनक नहीं है. जर्मनी में शोधकों की एक टीम ऐसे नये प्रकार के प्रकाश उत्सर्जी डायोड विकसित कर रही है, जो टिकाऊ होंगे.

Flash-Galerie BMW Museum innen Testbespielung der LED Wände im Central Space (05/2008)
रोशनी का टिकाऊ जरियातस्वीर: BMW AG

ओलेड या ऑर्गैनिक लाइट एमिटिंग डायोड इसलिए प्रकाश पैदा करते हैं, क्योंकि कुछेक कार्बनिक या प्लास्टिक अणु बिजली मिलने पर इस तरह आवेशित हो जाते हैं कि जगमगाने लगते हैं. जर्मनी में ड्रेस्डन तकनीकी विश्वविद्यालय के शोधकर्ता इन नाज़ुक अणुओं की जगह नैनो मीटर आकार वाले प्रकाश उत्सर्जी कणों का उपयोग करना चाहते हैं.

ज़्यादा टिकाऊ, ज़्यादा चमकीले

इन अतिसूक्ष्म अर्धचालक (सेमीकंडक्टर) कणों का लाभ यह है कि वे कहीं ज़्यादा टिकाऊ हैं और उनके रंगों को भी कहीं आसानी से बदला जा सकता है. रंग एक ही सामग्री वाले कणों के अलग-अलग आकारों पर निर्भर करता है. इस दिशा में शोध कर रहे टोबियास ओटो का कहना है कि कणों के आकार को प्रयोगशाला में आसानी से तय किया जा सकता है. वो बताते हैं "इसके लिए फ्लास्क चाहियें, दो रासायनिक पदार्थ चाहियें, कुछेक लवण-घोल (सॉल्ट सोल्यूशन) और इस सब को उसी तरह मिलाने की ज़रूरत है, जैसा हमने अपने स्कूली दिनों में देखा है. उनके बीच रासयनिक क्रिया में ख़ास समय भी नहीं लगता. शुरू में छोटे-छोटे गुच्छे जैसे बनते हैं. गरम करने पर वे ही नैनो आकार वाले कणों का रूप ले लेते हैं. गरम करना बंद कर देने पर हमें मिलते हैं मनपसंद आकार के नैनो कण."

Led Lampen
नई तकनीक से खर्च कम रोशनी ज्यादातस्वीर: picture-alliance/ZB

मनपसंद रंग

कणों के मनपसंद आकार में मनपसंद रंग भी मिल जाते हैं. इसी तरह, उदाहरण के लिए, बिजली के अर्धचालक कैडमियमटेलरीड के नैनो मीटर आकार वाले क्रिस्टल मिलते हैं. बिजली की धारा प्रवाहित करने पर अपने आकार में अंतर के अनुसार वे लाल, पीले, हरे नीले या नारंगी रंग का प्रकाश पैदा करते हैं. इस निर्माण प्रक्रिया की हर खेप में लगभग एक ही आकार के नैनो क्रिस्टल बनते हैं, इसलिए वे एक ही रंग का बहुत शुद्ध प्रकाश देते हैं. डिस्प्ले-स्क्रीनों के लिए यह बहुत ज़रूरी है, क्योंकि वहां रंगों की सभी रंगतें केवल तीन मूल रंगों के मेल से बनती हैं. टोबियास ओटो का कहना है कि इससे ऐसी बत्तियां बनाना भी आसान हो जायेगा, जो अब तक के बल्बों जैसी गरमाहट भरी सफ़ेद रोशनी देंगी. ओटियोस के मुताबिक सफ़ेद रोशनी पाने के लिए शुद्ध मूल रंगों का सुंदर मेल बैठाया जा सकता है. जो कोई कोई नया रंग पैदा करना चाहता है, वह भी शुद्ध मूल रंगों के मेल से अपनी पसंद का हर रंग पैदा कर सकता है.

नयी निर्माण विधि

प्रकाश उत्सर्जी डायोडों में नैनो क्रिस्टल इस्तेमाल करने का विचार पूरी तरह नया नहीं है. इसके लिए अब तक नैनो कणों को प्लास्टिक जैसे कार्बनिक पदार्थों के बीच बैठाया जाता था. कार्बनिक पदार्थ ऊँचे तापमान के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं. इसलिए ड्रेस्डन के शोधकर्ता कांच जैसी एक सामग्री की झीनी परत के बीच इन कणों को बैठायेंगे. नैनो कणों की ही तरह इस आवरण-परत को भी ऋणात्मक आवेश (नेगेटिव चार्ज) वाली धारक सामग्री पर स्प्रे कर चढ़ाया जायेगा. ओटियोस के मुताबिक स्प्रे करने का लाभ यह है कि विद्युत आवेशधारी नैनो कण तो धारक सामग्री पर चिपके रहते हैं, जबकि धूलकणों-जैसी अशुद्धियां नीचे की और बह जाती हैं.

नैनो एलईडी की रोशनी भी मोबाइल फ़ोन के डिस्प्ले और टेलीविज़न स्क्रीन बनाने से लेकर घरों को जगमग करने के काम आ सकेगी. उससे बिजली की भारी बचत होगी, लेकिन बाज़ार में उसके पहुंचने में अभी कुछ और समय लगेगा.

रिपोर्ट- राम यादव

संपादन- एन रंजन