नेपाल में माओवादियों को झटका
२१ नवम्बर २०१३प्रचंड के नाम से विख्यात माओवादी नेता पुष्प कमल दहल ने चुनावों के बाद चल रही वोटों की गिनती रोकने की मांग की है. गृह युद्ध खत्म होने के बाद प्रचंड देश के पहले प्रधानमंत्री बने थे. वोटों की गिनती में पिछड़ने के बाद वो काठमांडू की अपनी सीट पर फिलहाल तीसरे नंबर पर चल रहे हैं. नेपाल के सरकारी टीवी चैनल ने इस सीट से नेपाली कांग्रेस के उम्मीदवार के सबसे आगे रहने की खबर दी है. इस बार के चुनाव में माओवादी पार्टी को करारा झटका लगा है.
माओवादी नेता प्रचंड ने प्रेस कांफ्रेंस बुला कर कहा, "हम चुनाव आयोग से मतगणना रोकने की मांग करते हैं. हम लोगों को फैसला स्वीकार करते हैं लेकिन साजिश और चुनाव में धांधली को स्वीकार नहीं कर सकते." प्रचंड का कहना है कि चुनाव केंद्र से मतगणना केंद्र तक लाने के बीच मतपेटियों के साथ छेड़छाड़ की गई है.
माओवादियों को झटका
शुरुआती रुझानों में जिन 159 सीटों पर मतगणना चल रही है उनमें में महज छह फीसदी सीटों पर माओदियों को बढ़त दिख रही है. अगर पार्टी बाकी बची उन 81 सीटों पर जीत हासिल कर भी लेती है जिन पर उसने सीधे चुनाव लड़ा है तो भी उसके वोटों में 40 फीसदी की कमी है. गुरुवार सुबह मुख्य चुनाव आयुक्त नीलकंठ उप्रेती ने पत्रकारों से कहा कि मतगणना "पारदर्शी तरीके से" चल रही है और जारी रहेगी. चुनाव आयुक्त ने कहा, "चुनाव लोगों के फैसले जानने का एक तरीका है, मैं सभी राजनीतिक दलों से आग्रह करता हूं कि वो लोगों की राय का सम्मान करें."
चुनाव अधिकारियों के मुताबिक शुक्रवार से नतीजे आने शुरू हो जाएंगे जबकि सभी सीटों के आखिरी नतीजे इस महीने के आखिर तक ही आ पाएंगे. माओवादी पार्टी के सैकड़ो समर्थक पार्टी के दफ्तर के आगे जमा हो गए ओर पार्टी के फैसले के पक्ष में नारे लगा लगे. वो चीख रहे थे, "हम दोबारा लड़ने के लिए तैयार हैं." अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जिमी कार्टर काठमांडू में हैं और चुनाव प्रक्रिया पर नजर रख रहे हैं. समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में जिमी कार्टर ने कहा, "चुनाव भविष्य की तरफ एक कदम है. अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक, घरेलू पर्यवेक्षक और सभी राजनीतिक दल यही कहेंगे कि आश्चर्यजनक रूप से अच्छे, निष्पक्ष और पहले ही साबित हो चुका है कि सुरक्षित चुनाव हुए हैं."
राजनीतिक गतिरोध
2006 में गृह युद्ध खत्म होने के बाद देश में दूसरी बार चुनाव हो रहे हैं. इन चुनावों से शांति प्रक्रिया के पूरी होने की उम्मीद की जा रही है जो राजनीतिक गतिरोध के कारण पिछले दो सालों से ठहरी हुई है. प्रचंड ने गृह युद्ध खत्म होने के बाद 2008 में बनी पहली सरकार का नेतृत्व किया लेकिन सेना के साथ टकराव के चलते नौ महीने में ही उन्हें सत्ता से बाहर होने पड़ा. हाल के दिनों में वो कथित भ्रष्टाचार और विलासिता की वजह से विवादों में घिरे हैं. मंगलवार को हुए चुनाव में बड़ी संख्या में नेपाली जनता ने हिस्सा लिया. करीब 70 फीसदी मतदान की खबर आई है और यह 2008 में संविधान सभा के लिए हुए पहले चुनाव की तुलना में काफी ज्यादा है.
पांच साल पहले हुए चुनाव में सामाजिक बदलाव, आर्थिक विकास और स्थाई शांति के वादे के साथ माओवादियो ने चुनाव में भारी जीत हासिल की थी, लेकिन बाद में उन्हें अपने ही पक्के समर्थकों की आलोचना झेलनी पड़ी. माओवादियों पर क्रांतिकारी आदर्शों को छोड़ने और सत्ता में आने के बाद विलासिता वाली जीवनशैली अपनाने के आरोप लगे. राजनीतिक खींचतान की वजह से 2008 के चुनावों के बाद गठबंधन की कई सरकारें बनी लेकिन देश के संविधान का प्रारूप नहीं बन सका. आखिरकार मई 2012 में असेंबली भंग कर दी गई. इन सब के बीच विकास की दौड़ में लगातार पिछड़ता देश लोगों की निराशा बढ़ाता चला गया.
मंगलवार को हुए चुनाव के फैसलों को अगर माओवादी स्वीकार नहीं करते तो शांति प्रक्रिया पर सवाल उठेंगे. हाल कि दिनों में कुछ हिंसा की भी खबर आई है, पार्टी के एक गुट ने पहले ही चुनावों का बहिष्कार किया है. चुनाव विरोधी प्रदर्शनकारियों ने गाड़ियां जला दी हैं, देसी बम और विस्फोटकों से धमाके किये हैं. इन सब की वजह से देश भर में 370 लोगों को गिरफ्तार किया गया है जबकि एक शख्स की मौत हुई है.
एनआर/ओएसजे (एएफपी)