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नेतृत्व बिन दिशाहीन दुनिया

मियोद्राग सोरिच२५ नवम्बर २०१५

तुर्की द्वारा रूस के लड़ाकू विमान को गिराए जाने ने आईएस विरोधी गठबंधन बनाने के फ्रांसीसी राष्ट्रपति ओलांद के प्रयासों पर पानी फेर दिया है. मियोद्राग सोरिच का कहना है कि फ्रांस के पास इसके लिए राजनीतिक वजन की भी कमी है.

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तस्वीर: picture alliance/AA/S. Corum

और अब ये भी, तुर्की की वायु सेना ने रूसी लड़ाकू विमान को मार गिराया. जैसे कि सीरिया के साथ लगी सीमा पर स्थिति पहले से ही जटिल नहीं रही हो. औपचारिक रूप से नाटो ने अपने सदस्य तुर्की का समर्थन किया है. सिर्फ नाटो के मुख्यालय ब्रसेल्स में ही नहीं, फ्रांस और अमेरिका के राष्ट्रपतियों ने भी वॉशिंग्टन में अपनी भेंट में कहा कि अंकारा को अपनी हवाई सीमा की रक्षा का अधिकार है.

स्थिति विना वजह बिगड़ी

लेकिन अनौपचारिक तौर से तुर्की को आलोचना भी सुननी होगी. स्थिति ऐसे समय में गरमा रही है जब राष्ट्रपति फ्रांसोआ ओलांद मॉस्को जा रहे हैं, क्रेमलिन प्रमुख को इस बात के लिए राजी करवाने कि वे सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद का समर्थन छोड़ें. बिना किसी वजह के.

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रूस अपने हिस्से का दोषी है. वह सीरिया में जो चाहता है कर रहा है, अपनी सैनिक कार्रवाइयों के बारे में पश्चिम के साथ बात नहीं कर रहा है. यह जोखिम भरा है. इसकी कीमत इस बार एक रूसी पाइलट की जान थी. इस घटना का अंत में कोई दूरगामी नतीजा नहीं होगा. कम से कम यदि तुर्की आग में घी न डाले और रूसी राष्ट्रपति अपने गुस्से को काबू में रखें. मामला बिगड़ने से सिर्फ तथाकथित इस्लामिक स्टेट को फायदा होगा.

काफी नहीं फ्रांसीसी नेतृत्व

लेकिन इस घटना की वजह से ओलांद का मॉस्को मिशन आसान नहीं रहेगा. रूस और ईरान के साथ मिलकर आतंकवाद के खिलाफ महागठबंधन बनाने की उनकी कोशिश काबिले तारीफ है. लेकिन अंत मे फ्रांस का नेतृत्व काफी नहीं होगा. फ्रांस के पास महाशक्ति का वजन नहीं है. और यूरोपीय देश हमेशा की तरह एकमत नहीं हैं, रक्षा के लिए खर्च नहीं करना चाहते. अमेरिका अकेला देश है जो पाषाणयुगीन कट्टरपंथियों के खिलाफ गठबंधन बना सकता है.

वॉशिंग्टन अंकारा को अनुशासित कर सकता है, मॉस्को को खुली मान्यता दे सकता है, सऊदी अरब और अमीरात पर दबाव डाल सकता है, कम से कम अंतरिम काल के लिए असद सरकार के प्रतिनिधि के साथ एक मेज पर बैठ सकता है. सीरिया समस्या के राजनीतिक समाधान में सभी को शामिल करना होगा. अमेरिका को मिसाल देनी होगी. उसे नेतृत्व देना होगा. अतीत में इस पर संदेह रहे हैं. लेकिन सीरिया जैसे विवाद अपने आप खत्म नहीं होते.

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