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नागा अखबारों में कोरा रहा संपादकीय पन्ना

१७ नवम्बर २०१५

नागालैंड में लोगों ने नेशनल प्रेस डे को जब पढ़ने के लिए अखबार उठाया तो अखबारों के संपादकीय पेज को कोरा पाया. समाचार पत्रों ने ऐसा करके अर्द्धसैनिक बलों की ओर से प्रेस पर थोपी गई सेंसरशिप का विरोध जताया.

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Symbolbild Indien Kaschmir Soldaten getötet
तस्वीर: Tauseef Mustafa/AFP/Getty Images

एक संयुक्त बयान जारी कर समाचार पत्रों ने कहा कि अर्द्धसैनिक बल राज्य में मीडिया को सेंसर कर कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं. प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के दिशानिर्देश को ध्यान में रखते हुए भाषा और अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार पर जोर देते हुए संपादकों ने कहा कि वे स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से समाचार पेश करते रहेंगे.

दरअसल समाचार पत्रों को असम राइफल्स के कर्नल राजेश गुप्ता ने नोटिस भेजा था जिसमें में कहा गया था कि नागा विद्रोही समूह एनएससीएन-के की किसी मांगों को लेकर कोई खबर नहीं लिखी जानी चाहिए. अगर कोई समाचार पत्र ऐसा करता पाया गया तो वो गैरकानूनी गतिविधियों (1967 एक्ट) का दोषी पाया जाएगा. नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड-खापलांग (एनएससीएन-के) और इसके सभी गुटों को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया है.

अखबारों में हाल में प्रकाशित हुई एक रिपोर्ट के मुताबिक एनएससीएन-के ने केंद्र सरकार के दबाव में उनके आंदोलन को दबाए जाने के खिलाफ धमकी दी थी. विद्रोही समूह का कहना था कि कुछ नागा नरेंद्र मोदी सरकार का साथ दे रहे हैं ताकि एनएससीएन-के पर दोबारा प्रतिबंध लगाया जा सके और उन्हें आर्थिक रूप से तोड़ा जा सके. इन रिपोर्टों के बाद असम रायफल्स ने अखबारों को नोटिस जारी किया जिसमें एनएससीएन-के का प्रचार करने वाली खबरों को ना छापने की बात कही गई. सरकार की ओर से थोपी गई सेंसरशिप के कदम को समाचार पत्रों ने प्रेस की स्वतंत्रता का हनन बताकर अपना विरोध दर्ज किया.

एनएससीएन-के पूर्वोत्तर के कुछ अन्य आतंकवादी समूहों के साथ मिल कर ‘यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ साउथ ईस्ट एशिया' के बैनर तले हमलों की एक श्रृंखला में संलिप्त रहा है. एनएससीएन-के ने भारत सरकार के साथ मार्च 2001 में शांति समझौते पर दस्तखत किए थे, लेकिन वह मार्च 2015 में संघर्ष विराम समझौते से एकतरफा तौर पर हट गया.

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एसएफ/एमजे