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नहीं सुधरे तो प्यासे मरेंगे

२२ मार्च २०१५

दुनिया में हर किसी के लिए पर्याप्त पानी है, लेकिन ज्यादातर लोग इसे गंदा करने या बर्बाद में जरा भी नहीं हिचकिचाते. यही लापरवाही 15 साल बाद हाहाकार मचाएगी.

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तस्वीर: CC/waterdotorg

संयुक्त राष्ट्र ने अपनी वार्षिक वर्ल्ड वॉटर डेवलपमेंट रिपोर्ट में कहा है, "तथ्य यह है कि दुनिया की जरूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त पानी है, लेकिन पानी इस्तेमाल करने के तरीकों में अभूतपूर्व बदलाव किए बिना, उनका प्रबंधन और उन्हें साझा किए बिना" 2030 तक दुनिया के सामने वैश्विक जल संकट होगा. 40 फीसदी पानी की कमी होगी.

रिपोर्ट के मुताबिक बदइंतजामी के चलते आने वाले जल संकट की सबसे ज्यादा मार गर्म और सूखे देशों पर पड़ेगी. विश्व की आबादी इस वक्त करीब 7.3 अरब है, इसमें हर साल आठ करोड़ नई जिंदगियां जुड़ रही हैं. यूएन वॉटर और विश्व मौसम संगठन के प्रमुख मिशेल जारो के मुताबिक 2050 तक इंसानी आबादी 9.1 अरब होगी.

दुनिया की इतनी बड़ी आबादी को खाना मुहैया कराने के लिए खाद्यान्न की पैदावार बढ़ानी होगी. फिलहाल 70 फीसदी पानी खेती में इस्तेमाल होता है. ज्यादा पैदावार के लिए 60 फीसदी पानी और चाहिए होगा. जलवायु परिवर्तन और बारिश के मिजाज में आते बदलाव के चलते इस मांग को पूरा करना चुनौती भरा होगा.

Karte Wasserknappheit in Indien englisch
जल संकट से जूझते भारत के इलाके

बेहतर प्रबंधन की जरूरत

रिपोर्ट के मुताबिक कई देशों में पानी कीटनाशकों, औद्योगिक कचरे और सीवेज से दूषित है. नदियां और झीलें गंदी हैं, इसीलिए दुनिया की आधी आबादी पीने के लिए भूजल का इस्तेमाल करती है. कृषि के लिए भी 43 फीसदी पानी जमीन से निकाला जाता है.

दुनिया भर में भूजल के 20 फीसदी भंडार पूरी तरह सूखने के करीब पहुंच चुके हैं. उत्तरी चीन में कुछ जगहों पर भूजल 40 मीटर नीचे जा चुका है. भारत के महाराष्ट्र और राजस्थान राज्य में भी हालात खराब हैं.

पानी विशेषज्ञ रिचर्ड कॉनोर कहते हैं, "चीन, भारत, अमेरिका और मध्यपूर्व के कुछ इलाके पानी की मांग पूरी करने के लिए भूजल के अंधाधुंध दोहन पर निर्भर हैं. मेरी नजर में एक अल्पदृष्टि वाला प्लान बी है. जब भूजल संसाधन पूरी तरह खत्म हो जाएंगे तो कोई प्लान सी नहीं होगा."

शहरीकरण के चलते भी 2050 तक पेयजल की मांग 55 फीसदी बढ़ेगी. रिपोर्ट कहती है, "शहरों तक पानी पहुंचाने के लिए और ज्यादा गहरी खुदाई करनी होगी, या फिर पानी की मांग को पूरा करने के लिए नए और अत्याधुनिक तकनीक के रास्ते तलाशने होंगे."

ओएसजे/एमजे (एएफपी)