1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

नहीं रहे गाब्रिएल गार्सिया मार्केस

१८ अप्रैल २०१४

साहित्य में मैजिकल रियलिज्म यानि जादुई यथार्थवाद लाने वाले गाब्रिएल गार्सिया मार्केस का 87 साल की उम्र में निधन हो गया है. कोलंबिया में तीन दिन का शोक घोषित किया गया है.

https://p.dw.com/p/1Bkf8
Gabriel Garcia Marquez
तस्वीर: picture-alliance/dpa

मार्केस का निधन कैसे हुआ इस बारे में अब तक अस्पताल या परिवार ने कोई जानकारी नहीं दी है. लेकिन मार्केस कई सालों से लिम्फैटिक ग्लैंड के कैंसर से लड़ रहे थे. 31 मार्च को उन्हें निमोनिया के कारण अस्पताल में भर्ती किया गया. एक हफ्ता अस्पताल में बिताने के बाद डॉक्टरों ने उन्हें घर भेज दिया. हालांकि उस दौरान कहा गया कि मार्केस की तबियत संभल गयी है पर परिवार ने ज्यादा जानकारी ना देने की शर्त पर इतना कहा कि उनकी हालत नाजुक है. ऐसी भी रिपोर्टें आती रही कि मार्केस का कैंसर बिगड़ गया है. उनके आखिरी पलों में पत्नी मर्सिडीस और बेटे रोड्रिगो और गोनजालो उनके साथ ही थे.

गरीबी के दिन

सोमवार को मेक्सिको सिटी में उन्हें दफनाया जाएगा. इस दौरान एक कार्यक्रम रखा जाएगा ताकि आम जनता भी उन्हें श्रद्धांजलि दे सके. मार्केस के देहांत की खबर से पूरे साहित्य जगत में शोक है. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी उन्हें याद किया, "दुनिया ने एक ऐसे महान लेखक को खो दिया है जो दूरदृष्टि रखता था."

गाब्रिएल गार्सिया मार्केस का जन्म 6 मार्च 1927 को कोलंबिया के एक गांव में हुआ. उनके पिता एक टेलीग्राफ ऑपरेटर थे. 1961 में वे मेक्सिको पहुंचे. जवानी के दिन उन्होंने संघर्ष के साथ बिताए. शुरुआत पत्रकारिता से की. उनके शब्दों में, "इससे खूबसूरत पेशा कोई हो ही नहीं सकता". उन दिनों को याद करते हुए मार्केस ने एक बार मजाकिया अंदाज में कहा था, "जब मैं वहां पहुंचा, ना तो मेरे पास नाम था और ना ही जेब में एक भी फूटी कौड़ी.. हां, जब तक विस्की मिल जाती थी, कोई गम नहीं था."

सच्चाई के पर

1967 में प्रकाशित उनके उपन्यास 'वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ सॉलीट्यूड' ने लोगों का दिल जीत लिया. इस उपन्यास का 35 भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है और आज तक इसकी तीन करोड़ से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं. इस किताब में उन्होंने 'मैजिकल रियलिज्म' का प्रयोग किया. इसे समझाते हुए उन्होंने कहा था कि हर सच्चाई के पीछे और बहुत कुछ होता है, जिसे हम ना देख पाते हैं और ना ही समझ पाते हैं.

1982 में उन्हें साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उस समय अपनी स्पीच में मार्केस ने कहा कि स्वीडन की अकादमी का ध्यान उनकी किताबों में छपी लातिन अमेरिका के गृह युद्ध और तानाशाही की सच्चाई ने खींचा है, केवल उनके लिखने के अंदाज ने नहीं.

मार्केस ने अपनी आखिरी किताब 'मेमरीज ऑफ माई मेलेनकली होर्स' दस साल पहले लिखी.

आईबी/एएम (एएफपी)