नहीं मिली दारा सिंह को मौत की सजा
२१ जनवरी २०११1999 की जनवरी में दारा सिंह और उसके कुछ साथियों ने ग्राहम स्टेंस और उनके दो बेटों को उनकी कार में जिंदा जला दिया था. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने शुक्रवार को फैसला सुनाया. जस्टिस पी सतसिवम और जस्टिस बीएस चौहान ने सरकार की मौत की सजा देने की अपील को ठुकरा दिया. उन्होंने कहा कि मौत की सजा "रेयरेस्ट ऑफ रेयर" यानी विरले मामलों में ही दी जा सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में दोषियों ने जो अपराध किया है वह बहुत ज्यादा निंदनीय है लेकिन रेयरेस्ट ऑफ रेयर की श्रेणी में नहीं आता. दारा सिंह और उसके साथी महेंद्र हेमब्रोम को उड़ीसा के क्योंझर जिले में एक चर्च के बाहर अपनी वैन में सोए पादरी और उनके बेटों को जलाकर मारने का दोषी पाया गया था. यह घटना 22 जनवरी 1999 की है.
इस बारे में कोर्ट ने सीबीआई के वकील और एडिशनल सॉलिसिटर जनरल विवेक तंखा और बचाव पक्ष के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद 15 दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा था. इस मामले में कुल 12 लोग आरोपी थे. उनके लिए वरिष्ठ वकील केटीएस तुलसी, रत्नाकर दाश और सिबो शंकर मिश्रा ने वकालत की.
तंखा ने कहा कि दारा सिंह मौत की सजा का हकदार है क्योंकि उसने पैशाचिक और कायरतापूर्ण कार्रवाई में तीन मासूमों की जान ले ली. लेकिन अदालत उनकी दलील से संतुष्ट नहीं हुई.
इस मामले में निचली अदालत ने दारा सिंह और उसके साथी महेंद्र को दोषी बताते हुए मौत की सजा सुनाई थी लेकिन उड़ीसा हाई कोर्ट ने 19 मई 2005 को उसे उम्र कैद में बदल दिया था. इस फैसले के खिलाफ दारा सिंह और सीबीआई दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की अपील खारिज कर दी.
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः एन रंजन