'नई बात बिना फिल्म का क्या फायदा'
१८ फ़रवरी २०१३डॉयचे वेलेः अभिषेक आप हमें अपनी फिल्म के बारे में बताएं.
अभिषेक कपूरः ये फिल्म चेतन भगत की किताब थ्री मिस्टेक्स ऑफ माय लाइफ पर आधारित है. भारत में 2001 और 2002 के बीच बहुत बड़ी घटनाएं हुई थीं. गुजरात का भूकंप और दंगे. जिसका बहुत बुरा असर हुआ था, देश और सबसे ज्यादा प्रभावित गुजरात के लोग हुए थे. और ये फिल्म उसको बैकड्रॉप बनाते हुए तीन दोस्तों की कहानी है जिसमें लव स्टोरी भी है, पॉलिटिक्स भी है, धर्म भी और क्रिकेट भी.
आपके आने वाले दिनों और क्या खास प्रोजेक्ट हैं?
अभी तो मैं इस फिल्म की रिलीज में लगा हूं. दो तीन और कहानियां हैं जिस पर मैं काम कर रहा हूं. मगर अगली फिल्म क्या बनाऊंगा इस पर मैंने कुछ तय नहीं किया है. ये रिलीज हो जाए फिर फैसला करेंगे हम.
अपने आज तक के सफर में से हमसे क्या साझा करना चाहेंगे आप?
मैं आज जहां हूं बहुत खुश हूं, क्योंकि मुझे अपनी पसंद का काम करने का मौका मिल रहा है. लेकिन यहां पहुंचने के लिए संघर्ष लंबा था. मैंने शुरुआत एक एक्टर के बतौर की थी, लेकिन मैंने कोई सफलता नहीं देखी वहां. वो समय अलग था. तब एकदम बॉलीवुड फिल्में बना करती थीं. किरदारों पर ध्यान नहीं दिया जाता था. हर व्यक्ति को हीरो बनाने की कोशिश की जाती थी. और एक अभिनेता को हमेशा एक ही तरीके से दिखाया जाता था. मैं काफी निराश हुआ, सोचा इसमें आगे जाने की बजाए थोड़ा पीछे हटना ठीक है. खाली समय के दौरान कहानी लिखी, लगा कि इस पर फिल्म बननी चाहिए. बनाई आर्यन नाम की फिल्म. यह बॉक्स ऑफिस पर नहीं चली, मगर आलोचना अच्छी मिली. मुझे बहुत संतुष्टि मिली कि मैंने अच्छी फिल्म बनाई. तब तय किया मैं फिल्में ही बनाऊंगा. डेढ़ साल पहले रॉक ऑन बनाई और अब काय पो छे.
ये जो भारत में इन दिनों सौ करोड़ की फिल्मों का फैशन है इस बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
देखिए फिल्मों जो पैसा लगाया जाता है वो वापिस जरूर आना चाहिए. लेकिन आपको इतना नीचे नहीं आना चाहिए कि आप कोई नई, रचनात्मक बात नहीं कह पाएं, तो आपको फिल्म नहीं बनानी चाहिए. आपको सिर्फ पैसे कमाना हैं तो आप स्टॉक मार्केट जा सकते हैं. कोई और धंधा भी कर सकते हैं, फिल्मों में आने की क्या जरूरत है. फिल्मों में पैसा बायप्रोडक्ट होना चाहिए. और ऐसा भी हो सकता है कि आप फिल्म भी अच्छी बनाओ और पैसा भी कमाओ.
इंटरव्यूः आभा मोंढे
संपादनः महेश झा