ध्यानचंद के रिकॉर्ड पर जर्मनी की नजर
१७ जून २०१६पहले विश्वयुद्ध के बाद ओलंपिक खेल साम्राज्यवादी ताकतों के बीच मूंछों की लड़ाई जैसे बन गए. पदक तालिका में ऊपर आने का मतलब दूसरे को नीचा दिखाना होता था. अंहकार की इस लड़ाई में अगर खूबसूरती के लिए कहीं जगह थी तो वो था हॉकी का मैदान और वहां खेलता भारत.
हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद ने वहां ऐसा जादू दिखाया कि उस समय की नस्लवादी ताकतें भी सलोनी प्रतिभा की कायल हो गई. 1928 से 1956 के बीच भारत ने छह बार ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीता. इस दौरान भारत ने दो बार हैट्रिक लगाई. पहली बार ब्रिटिश इंडिया ने 1928 से 1936 तक तीन गोल्ड मेडल जीते. दो ओलंपिक खेलने वाले उनके छोटे भाई रूप सिंह ने जबरदस्त खेल दिखाया.
1940 और 1944 में द्वितीय विश्वयुद्ध के चलते ओलंपिक खेल नहीं हुए. अगली हैट्रिक 1948 से 1956 के बीच लगी. शुरू के तीन ओलंपिक खेलों में तो अकेले ध्यानचंद ने ही 39 गोल दागे. 1948 में हॉकी से संन्यास लेने तक ध्यानचंद 400 से ज्यादा गोल ठोक चुके थे. ध्यानचंद के सम्मान में 1939 में वियना में उनकी मूर्ति लगाई गई.
1947 में देश के विभाजन और अगले ही साल मेजर ध्यानचंद के संन्यास के बाद भारतीय हॉकी टीम ताकतवर बनी रही, लेकिन बाद में नियमों के बदलाव और टर्फ के आ जाने से भारतीय हॉकी धीरे धीरे पिछड़ती गई. 1960 में सिल्वर मेडल मिला. 1964 में गोल्ड हासिल हुआ. भारत ने आखिरी बार 1980 में ओलंपिक में हॉकी का गोल्ड मेडल जीता.
अब जर्मनी लगातार तीन ओलंपिक मेडल जीतकर हॉकी में अपना दबदबा साबित करना चाहता है. जर्मनी 2012 के लंदन ओलंपिक और 2008 के बीजिंग ओलंपिक में फील्ड हॉकी का गोल्ड मेडल जीत चुका है. लेकिन टीम चाहती है कि वह कम से कम लगातार तीन स्वर्ण पदक जीते और भारत जैसी गोल्डन हैट्रिक लगाए.