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"आईएस एक नास्तिक आंदोलन है"

क्रिस्टियान क्निप/एमजे३ अगस्त २०१५

एक साल पहले आईएस ने इराक में यजीदियों पर हमला किया. इससे पहले आतंकवादियों ने ऐसी बर्बरता शायद ही कभी दिखाई थी. खासकर महिलाओं को निशाना बनाया गया. डॉयचे वेले के क्रिस्टियान क्निप कहते हैं कि आईएस दंभी मर्दों का आंदोलन है.

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Symbolbild Deutsche Frauen beim IS
तस्वीर: picture-alliance/dpa

अपराध के तर्क का पता कभी कभी संयोग से की गई टिप्पणियों से चलता है. एक साल पहले आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट ने उत्तरी इराक में यजीदियों के इलाकों पर हमला किया. इस्लाम के आने से पहले के इस धार्मिक समुदाय के हजारों मर्दों को मारा डाला गया और लड़कियों तथा औरतों का अपहरण कर लिया गया जिन्हें बाद में बेचा गया, बलात्कार किया गया और फिर बेचा गया. कुछ यजीदी मर्दों को विकल्प दिया गया, या तो इसलाम कबूल करो या मारे जाओ. बहुत से लोगों ने यह पेशकश मान ली. इंटरनेट में बड़े पैमाने पर हुए धर्मांतरण की तस्वीरें घूम रही हैं. उसमें डरे हुए यजीदी इस्लाम के लिए आस्था व्यक्त कर रहे हैं. एक कहता है, "हम अंधेरे में रह रहे थे, अब हम रोशनी में रह रहे हैं."

हम रोशनी में रह रहे हैं, यह जिहादियों की आस्था का सच है. और यजीदियों की तकलीफ की कहानी दिखाती है कि जो लोग रोशनी में रहते हैं उन्हें जैसे कि सब कुछ करने की छूट हो. पवित्र ग्रंथ कुरान को तब तक बदला जाता है, जबतक कि उससे वह निकले जो जिहादियों के मन का हो, लूट, चोरी और बलात्कार तथा हत्या जैसे प्रतिबंधित अपराध भी.

हम तुम्हारे भगवान

अत्याचारियों के चंगुल से भागी एक यजीदी लड़की बताती है, "उन्होंने हमारे साथ हर संभव चीज की." इससे ज्यादा उसके मुंह से नहीं निकला लेकिन दूसरे वीडियो से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यजीदियों को क्या भुगतना पड़ा है. यहां तक कि सात आठ साल की बच्चियों को भी बेचा गया, 30-40 साल के मर्दों को. जिन महिलाओं ने बलात्कार का विरोध किया उनके हाथ तोड़ डाले गए. जब अत्याचारियों का मन भर जाता, उन्हें आगे बेच दिया जाता. कुछ ने तो बताया है कि उन्हें 20-20 बार बेचा गया. कुछ ने बेबसी में अपने धर्म में सहारा ढूंढा तो सताने वालों ने कहा कि "अपने धर्म को भूलो, हम तुम्हारे भगवान हैं."

इस शब्द को सुनकर तुंरत अहसास नहीं होता. हम तुम्हारे भगवान हैं, जिहादियों का इससे स्पष्ट, बर्बर और दंभ भरा दावा और कुछ नहीं हो सकता. यह वाक्य अपराध की सीमा को खत्म करने का सबूत है. जैसा कि वे कहते हैं, जिहादी ईश की सेवा नहीं कर रहे, वे उसका नाटक कर रहे हैं. आईएस एक नास्तिक आंदोलन है. जर्मनी के लोग इस तरह के अत्याचारियों को जानते हैं. 75 साल पहले ऐसे लोगों ने नाजी यंत्रणा शिविरों में काम किया है. वे भी अपने शिकारों की तकलीफ से खुश होते थे. उन्होंने भी सताने वालों की वैसी ही व्याख्या की थी जो अब यजीदियों ने की है.

अपराध का अवसर

आईएस एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है. उसके सदस्य विभिन्न देशों से आते हैं. अत्यंत विकसित औद्योगिक देशों से भी और कम विकसित समाजों से भी. राजनीतिक तौर पर भी वे इलाकों से आते हैं, लोकतांत्रिक देशों से भी और निरंकुश शासन वाले देशों से भी. यानि की अपराधियों की जिंदगी एक जैसी नहीं है. यह व्याख्या भी अब गले से नहीं उतरती कि जिहादी करियर की शुरुआत के पीछे समाज में सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यता का अभाव था. इसके विपरीत अधिक संभावना इस बात की है कि बहुत से युवा लोग इसलिए अपराधी बन रहे हैं कि उनके पास इसका मौका है.

जर्मन में कहावत है कि मौका चोर बनाता है. एक बार फिर दिख रहा है कि वह चोर ही नहीं बनाता बल्कि हत्यारा, बलात्कारी और यातना देने वाला भी बनाता है. वे अपराधी बन गए हैं क्योंकि आपराधिक मकसद के लायक बनाया गया धर्म उनके अपराधों को ढक रहा है. इसलिए आईएस न सिर्फ एक सैनिक चुनौती है, बल्कि वैचारिक चुनौती भी. इसलिए खासकर सुन्नी धर्मशास्त्रियों का दायित्व है कि वे आईएस के नास्तिक नेतृत्व का पर्दाफाश करें.