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दोस्त बनते ईरान अफगानिस्तान

१२ अगस्त २०१३

एशिया में धीरे धीरे गहरे दोस्त बनते जा रहे ईरान और अफगानिस्तान ने हाल ही में खुफिया साझीदारी पर अहम समझौता किया है. उनकी यह दोस्ती कम से कम अमेरिका तो पसंद नहीं आ रही होगी.

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तस्वीर: Mehr/Mohammad Hossein Velayati

हालांकि काबुल भी इस बात को समझ रहा है कि आने वाले दिनों में जब अमेरिकी फौज देश छोड़ कर चली जाएगी, तो उसे पड़ोसी मुल्कों के भरोसे ही रहना होगा. अमेरिका और पाकिस्तान के साथ रिश्ते बहुत अच्छे नहीं रह गए हैं और ऐसे में अफगानिस्तान नए तरह के दोस्तो को तलाश रहा है, जिसमें चौंकाने वाला नाम ईरान का भी है.

अफगानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रंगीन दादफर स्पांटा और ईरान के सलाहकार सईद जलीली के बीच सैनिक सहयोग पर समझौता हुआ है. इस दस्तावेज के मुताबिक दोनों देश इस बात पर राजी हो गए हैं कि वे खुफिया जानकारी बांटेंगे और आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अपनी विशेषज्ञता भी साझा करेंगे.

खुश नहीं हुआ अमेरिका

अफगानिस्तान में सरकार की नीतियों को उठाने वाले अखबार हश्ते सुभ के राजनीतिक विश्लेषक शाह हुसैन मुर्तजावी का कहना है कि अमेरिका इस कदम से खुश नहीं हो सकता है कि ईरान और अफगानिस्तान एक दूसरे के करीब आ रहे हैं, "यह एक राजनीतिक संदेश है. करजई इस बात को दिखाना चाहते हैं कि वे दूसरी पार्टियों के साथ भी दोस्ताना रिश्ता बना सकते हैं. अगर अमेरिका उनके साथ सहयोग करने के लिए तैयार न हो, तो वह उसके पहले नंबर के दुश्मन के साथ भी दोस्ती कर सकते हैं."

अफगान एनेलिस्ट नेटवर्क के थोमास रुटिष का भी कहना है कि अफगानिस्तान ने अमेरिका को संदेश दे दिया है कि उसके पास कई विकल्प हैं, "ज्यादातर विदेशी सेना अगले साल अफगानिस्तान छोड़ रही है और अफगानिस्तान अपने रिश्तों को फैलाना चाहता है."

लटका हुआ समझौता

सुरक्षा के मुद्दे पर वॉशिंगटन के साथ अफगानिस्तान की लंबी बातचीत हुई है. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जल्द से जल्द समझौता करने पर जोर दिया है. वह चाहते हैं कि इस मुद्दे पर अक्तूबर तक कोई समझौता कर लिया जाए लेकिन रूटिष का कहना है कि अफगानिस्तान पहले दूसरे विकल्पों को तलाश रहा है.

अफगानिस्तान के रक्षा विशेषज्ञ जनरल अतीकुल्लाह अमरखेल का कहना है कि इस तरह अफगानिस्तान साबित करेगा कि उसके पास दूरदर्शिता नहीं है, "अफगानिस्तान के मसले पर अमेरिका बेफिक्र नहीं है. अफगानिस्तान को वह मनमानी नहीं करने देगा. उसे पता है कि उसे किस तरह रोका जा सकता है."

Afghanistan Neujahr Nowruz in Mazar e Sharif Blaue Moschee
ईरान और अफगानिस्तान के बीच सैनिक सहयोग पर समझौतातस्वीर: picture-alliance/dpa

अलग है पाकिस्तान

वॉशिंगटन ने राजनीति के मामले में अफगानिस्तान को खुला हाथ दे रखा है. अफगानिस्तान दूसरे राष्ट्रों के साथ भी रिश्ता सुधारना चाहता है. उसने संयुक्त अरब अमीरात के साथ भी सुरक्षा सहयोग पर समझौता किया है. उसके भारत और रूस से भी रिश्ते अच्छे हो रहे हैं पर पाकिस्तान को अलग रखा गया है.

रुटिष का कहना है, "पाकिस्तान ने भी इसी तरह का समझौता करने की कोशिश की लेकिन काबुल ने इसे अस्वीकार कर दिया है. इसलिए अगर ईरान के साथ समझौता हो रहा है तो इसका मतलब यह भी है कि पाकिस्तान को बार बार नकारा किया जा रहा है." उनका कहना है कि इससे पाकिस्तान के साथ उसके रिश्ते तल्ख हो सकते हैं.

काबुल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हमीदुल्लाह फारुकी का कहना है कि अगर अमेरिका को दरकिनार कर स्थानीय शक्तियों को बहुत ज्यादा तरजीह दी जाती है, तो यह अफगानिस्तान के लिए घातक साबित हो सकता है, "इलाके के राष्ट्रों के पास न तो इतनी क्षमता है और न ही इतनी दिलचस्पी कि वे हमारे सुरक्षाकर्मियों को मजबूत कर सकें." उनका कहना है कि वित्तीय और सुरक्षा के नजरिए से इसके खराब नतीजे हो सकते हैं.

मुर्तजावी का मानना है कि ईरान और अफगानिस्तान के हित अलग अलग हैं, लिहाजा उनकी दोस्ती बहुत दूर तक नहीं जा सकती है. यानी यह फैसला अफगानिस्तान के लिए मुश्किल ही साबित होगा. प्रोफेसर फारुकी के मुताबिक, "कभी न कभी अफगानिस्तान को अमेरिका के साथ समझौता करना होगा." अमेरिका के साथ बातचीत में अफगान राष्ट्रपति अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए आने वाले दिनों में भी इस तरह के दबाव का इस्तेमाल करते रहेंगे, इससे इनकार नहीं किया जा सकता.

रिपोर्टः वसालत हसरत-नाजिमी/एजेए

संपादनः आभा मोंढे

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