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दोनों संस्कृतियों का मिला जुला आनंद

८ मार्च २०१३

मंथन में हम आपको रूबरू कराते हैं जर्मनी में बसे भारतीय वैज्ञानिकों से. इस बार होगी मुलाकात संजीव कुमार से जो आखन शहर में एरोनॉटिकल इंजीनियर हैं.

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तस्वीर: AP

भारतीय मूल के डॉक्टर कुमार मोतीहारी बिहार से हैं. 1998 में आईआईटी मद्रास के एरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग में एमटेक के दौरान उन्हें जर्मन अकैडमिक एक्सचेंज डीएएडी से स्कॉलरशिप मिली और वह जर्मनी की मशहूर आखन यूनिवर्सिटी पहुंच गए. मास्टर्स की पढ़ाई के बाद उन्होंने यहीं न्यूमेरिकल स्टिम्यूलेशन के क्षेत्र में पीएचडी की डिग्री हासिल की. बाद में वह शादी करके यहीं बस गए. 40 साल के डॉक्टर कुमार की दो बेटियां हैं.

पिछले पांच साल से आखन में मैग्मा कंपनी में काम कर रहे डॉक्टर कुमार मानते हैं कि जर्मनी में काम करने का तरीका उन्नतिशील है. यहां पढ़ाई और फिर काम करके उन्होंने बहुत कुछ सीखा है. उनके अनुसार जर्मनी के लोग उत्साह से भरे हैं और हर रोज कुछ नया करना चाहते हैं. यहां की कार्यशैली से भी वह काफी प्रभावित है. डॉक्टर कुमार का काम न्यूमेरिकल स्टिम्यूलेशन विभाग में है और यह तकनीक इंजीनियरिंग के लगभग सभी विभागों में इस्तेमाल हो रही है. उनका कहना है कि उन्हें खुशी है कि वह इंजीनियरिंग के इस क्षेत्र से जुड़े हैं.

Sanjeev Kumar
डॉक्टर संजीव कुमारतस्वीर: Sanjeev Kumar

आखन विश्विद्यालय में अपनी पढ़ाई के दौरान कुमार कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी भाग लेते रहे. यहीं उन्होंने कुछ साथियों के साथ मिलकर एसोसिएशन ऑफ इंडियन स्टूडेंट्स (आइसा) की शुरुआत की. जर्मनी और बाकी देशों के लोगों को भी भारत की संस्कृति से परिचित कराने के लिए आइसा जर्मनी में कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करता रहता है. दीपावाली के मौके पर आइसा एक भव्य समारोह का आयोजन करता है जिसमें जर्मनी में रह रहे भारतीय छात्रों के साथ ही दूसरे छात्र भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं.

डॉक्टर संजीव कुमार मानते हैं कि जर्मनी में इस तरह के कार्यक्रमों का आयोजन करते रहने से दोनो देशों के लोगों को एक दूसरे से मिलने का मौका मिलता है. साथ ही भारत की खूबसूरत छवि दुनिया के सामने आती है. वह कहते हैं कि फिलहाल तो जर्मनी ही उनका और उनके परिवार का घर है, लेकिन आइसा के जरिए वह दोनों देशों की संस्कृति का मिला जुला आनंद ले रहे हैं.

रिपोर्ट: समरा फातिमा

संपादन: ईशा भाटिया

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