देह व्यापार को कानूनी मान्यता
८ नवम्बर २०१४आंकड़े कहते हैं कि भारत में करीब तीस लाख लोग देह व्यापार से जुड़े हैं. हालांकि इनमें से कितने अपनी मर्जी से इस पेशे में आए और कितनों को जबरन यहां लाया गया, इस बारे में कोई आंकड़े मौजूद नहीं हैं. इस साल अप्रैल में संयुक्त राष्ट्र ने महिलाओं पर हो रही हिंसा पर रिपोर्ट पेश की जिसमें कहा गया कि अगर देह व्यापार को अपराध की श्रेणी से निकाल दिया जाए, तो भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में कमी आ सकती है. पांच साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी देह व्यापार को कानूनी दर्जा देने की बात कही थी. अब महिला आयोग ने अदालत के सामने अपनी सिफारिश पेश की है.
नेशनल कमीशन फॉर ने वुमन की अध्यक्ष ललिता कुमारमंगलम ने दलील दी है कि कानूनी दर्जा प्राप्त हो जाने से ना केवल हिंसा के मामलों में कमी आएगी, बल्कि महिला स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा और एड्स जैसी बीमारियों पर काबू पाया जा सकेगा. साथ ही उनका कहना है कि इससे मानव तस्करी के मामलों में भी कमी आएगी. कुमारमंगलम का कहना है कि देह व्यापार से जुड़ी महिलाएं डॉक्टरों के पास जाने से हिचकिचाती हैं और वह पुलिस से भी परेशान होती हैं.
श्रम कानूनों का उल्लंघन
इसके विपरीत कई महिला संगठनों का मानना है कि देह व्यापर को कानूनी दर्जा दिए जाने से अन्य परेशानियां खड़ी हो सकती हैं. ऑल इंडिया प्रॉग्रेसिव वुमंस एसोसिएशन की कविता कृष्णन का कहना है, "महिला आयोग को अपनी सिफारिश पेश करने से पहले देह व्यापर पर काम कर रही संस्थाओं से विचार विमर्श करना चाहिए था. देह व्यापर को कानूनी दर्जा देने का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि सरकार उसे महिलाओं के लिए नौकरी का एक विकल्प बना कर पेश करे."
इसी तरह सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की निदेशक रंजना कुमारी का मानना है कि कानूनी दर्जा देना अंतरराष्ट्रीय श्रम कानूनों का उल्लंघन होगा. उन्होंने कहा, "अंतरराष्ट्रीय श्रम संस्था (आईएलओ) के अनुसार जो भी काम शालीन हो और जो मजबूर हो कर ना किया जाए, वह वैध है. देह व्यापार इन दोनों में से किसी भी श्रेणी में नहीं आता है. हम पहले ही सैकड़ों क्षेत्रों में श्रम कानूनों को ठीक तरह लागू नहीं कर पाए हैं और अब हम देह व्यापार की बात कर रहे हैं." रंजना कुमारी ने सवाल उठाया है कि क्या अब देह व्यापार से होने वाली कमाई को देश की आर्थिक क्षमता में जोड़ा जाएगा.
वहीं ऑल इंडिया नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स की अध्यक्ष भारती डे का कहना है कि देह व्यापार से जुड़ी महिलाओं के पास भी अन्य लोगों के समान हक होने चाहिए. शक्ति वाहिनी नाम की गैर सरकारी संस्था के संस्थापक रविकांत ने भी इसका समर्थन किया है. बहस कानूनी दर्जा दिए जाने और अपराध की श्रेणी से निकाले जाने पर हो रही है. अब देखना होगा कि अदालत इन दोनों में से कौन से विकल्प को तवज्जो देती है.
आईबी/एएम (पीटीआई)