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दुनिया भर में 6 करोड़ लोग बेघर विस्थापित

२० जून २०१५

दुनिया भर में चल रहे विवाद और हिंसा की वजह से 6 करोड़ लोगों को पिछले साल घरबार छोड़कर भागना पड़ा. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2014 में शरणार्थियों और विस्थापितों की संख्या में 83 लाख का रिकॉर्ड इजाफा हुआ.

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तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Kilic

संयुक्त राष्ट्र की वर्ल्ड ऐट वार रिपोर्ट में कहा गया है कि एक साल में शरणार्थियों और विस्थापितों की संख्या में 2014 की वृद्धि सबसे ज्यादा रही है. रिपोर्ट के अनुसार उत्पीड़न, विवाद, आम हिंसा या मानवाधिकारों के हनन के कारण 2014 में करीब 6 करोड़ लोग विस्थापित जीवन जी रहे थे. एक साल पहले उनकी संख्या 5.1 करोड़ थी और एक दशक पहले 3.75 करोड़. यदि इन लोगों को मिलाकर एक देश बना दिया जाता है तो वह विश्व का 24वां सबसे बड़ा देश होगा. इनमें 1.95 करोड़ रिफ्यूजी हैं, 18 लाख शरण मांग रहे हैं और 3.8 करोड़ को घरबार छोड़ना पड़ा है लेकिन वे अपने ही देश में रह रहे हैं. दुनिया भर के रिफ्यूजियों में आधे नाबालिग हैं.

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त अंटोनियो गुटेरेस का कहना है, "चीजें हाथ से बाहर जा रही हैं क्योंकि दुनिया युद्ध में लगती है." उन्होंने इस पर जोर दिया कि सीरिया और इराक के विवादों के कारण 1.5 करोड़ लोगों को अपना घर छोड़कर भागना पड़ा है. लेकिन वे अकेले विवाद नहीं हैं जिनकी वजह से लोग विस्थापित हो रहे हैं. पिछले पांच सालों में विश्व भर में 14 विवाद या तो भड़के हैं या फिर से शुरू हुए हैं, उनमें से आधे अफ्रीका में हैं. गुटेरेस को इस बात का मलाल है, "हमारे पास विवाद के सभी पीड़ितों की मदद के लिए क्षमता और संसाधन नहीं हैं."

Ruanda Völkermord 1994 Flüchtlinge
रवांडा के शरणार्थी (1994)तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Guyot

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2014 में भूमध्य सागर के रास्ते यूरोप आने वाले लोगों में करीब 3,500 या तो मारे गए या लापता हैं. इस रास्ते पिछले साल कुल 219,000 शरणार्थी यूरोप आए. यह 2011 के रिकॉर्ड 70,000 का भी तिगुना है. शरणार्थियों की बढ़ती संख्या पर यूरोपीय और धनी देशों में व्यक्त की जा रही आशंकाओं के बावजूद रिपोर्ट का कहना है कि युद्ध और उत्पीड़न की वजह से भागने वालों में से 86 प्रतिशत को विकासशील देशों ने शरण दी है. 2014 में सबसे ज्यादा शणार्थियों को रखने वाले देशों में करीब 16 लाख के साथ तुर्की सबसे ऊपर था जबकि 15 लाख के साथ पाकिस्तान दूसरे नंबर पर और 11.5 लाख के साथ लेबनान तीसरे नंबर पर था.

समुद्र के रास्ते जान को जोखिम में डाल कर यूरोप आने वाले शरणार्थियों की बढ़ती संख्या के बावजूद यूरोप साझा शरणार्थी नीति पर सहमत होने में नाकाम रहा है. शरणार्थियों की बढ़ती संख्या का मतलब है कि यूरोपीय देशों को यह बोझ बांटना होगा. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने कहा है, "ऐसा नहीं हो सकता कि 28 में से सिर्फ 5 देश कुल शरणार्थियों का तीन चौथाई लें." अब तक जर्मनी और स्वीडन ने सबसे ज्यादा लोगों को पनाह दी है. चांसलर का कहना है कि सबसे फौरी काम समुद्र में राहत कार्य को बेहतर बनाना है. अगले हफ्ते होने वाले यूरोपीय शिखर भेंट में शरणार्थियों के मुद्दे पर साझा रुख तय करना यूरोपीय नेताओं की चुनौती होगी.

एमजे/आरआर (एएफपी, डीपीए)