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दंतेवाड़ा ऑपरेशन बिना सोचे समझे हुआ: चिदम्बरम

६ मई २०१०

गृह मंत्री पी चिदम्बरम ने कहा है कि दंतेवाड़ा में सीआरपीआफ़ ऑपरेशन की योजना वरिष्ठ अधिकारियों ने बिना सोचे विचारे बनाई थी. माओवादियों के सीआरपीएफ़ जवानों पर हमले में अभियान में हिस्सा ले रहे 76 जवानों की मौत हो गई थी.

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तस्वीर: UNI

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में एक सेमिनार में गृह मंत्री चिदम्बरम ने कहा, "दंतेवाड़ा में 6 अप्रैल को हुई इस घटना के बाद मुझे बहुत दुख हुआ. लेकिन मैंने अपना आपा नहीं खोया. मुझे नक्सलियों से डर नहीं है. एक आईजी, दो डीआईजी और एक एसपी ने बिना तैयारी किए जवानों को अभियान के लिए भेज दिया." चिदम्बरम के मुताबिक़ यह घटना दिखाती है कि देश एक ऐसे दुश्मन से जूझ रहा है जो संगठित है और मज़बूत है.

विकास से जुड़े मुद्दों पर चिदम्बरम ने कहा, "दंतेवाड़ा में एक पुलिस स्टेशन है जहां सिर्फ़ दो पुलिसकर्मी हैं. जब एक पुलिसकर्मी वहां नहीं जाना चाहता तो आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि कोई शिक्षक या विकास अधिकारी वहां जाना चाहेगा." चिदम्बरम के मुताबिक़ चरमपंथी विचारधारा को भारत में फैलाया जा सकता है. "लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आज़ादी है लेकिन जब वे हथियार उठा लेते हैं तो संघर्ष पैदा होता है."

चिदम्बरम ने कहा कि नक्सलियों के लक्ष्य के बारे में वह किसी भ्रम में नहीं है. नक्सली चाहते हैं कि हथियारबंद संघर्ष के ज़रिए वे राजनीतिक शक्ति को हासिल करें. कुछ मामलों में इसे स्वीकार किया जा सकता है. भारत में भी ब्रितानी शासन से आज़ादी पाने के लिए कुछ लोगों ने हथियार उठाए.

"कुछ परिस्थितियां होती हैं जब आप ग़ुस्सा या हताश होते हैं. मैं एक पिछड़े क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता हूं. वहां विकास अब पहुंचना शुरू हुआ है. अगर हर कोई हथियार उठाने को जायज़ ठहराना शुरू कर दे तो देश का क्या होगा." चिदम्बरम ने कहा कि वह मानते हैं कि कुछ इलाक़ों में विकास पहुंचाने के लिए ज़रूरी है कि वहां पहले पुलिस कार्रवाई कर उसे सुरक्षित बनाया जाए.

"माओवादी जानते हैं कि विकास होने से उन्हें ख़तरा पहुंचेगा. 2009 में 71 स्कूलों को उड़ा दिया गया, वे सड़कों पर बारूदी सुरंग बिछाते हैं और पुल उड़ाते हैं. मुखबिर बताकर पर गांव वालों की हत्या की जाती है. इसलिए यह कहना कि माओवादी विकास के समर्थक हैं बिलकुल बचकाना तर्क है."

जब एक छात्र ने पूछा कि नक्सलियों को हथियार कहां से मिल रहे हैं तो उन्होंने कहा कि म्यांमार में अवैध हथियारों का बड़ा बाज़ार है. इसके अलावा नक्सली देसी हथियारों का इस्तेमाल करते हैं और वे पुलिसकर्मियों से हथियार लूट कर भी ले जाते हैं जिन्हें वे बाद में इस्तेमाल में लाते हैं. जेएनयू में चिदम्बरम के आने पर कुछ छात्र संगठनों ने उनके विरोध में नारे लगाए और प्रदर्शनों में हिस्सा लिया.

रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़

संपादन: महेश झा