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थाई प्रधानमंत्री का भविष्य अधर में

१३ अप्रैल २०१०

थाईलैंड में नए साल के त्योहार सोंगक्रान के अवसर पर तीन दिनों की छुट्टी शुरू हो रही है. विपक्षी रेड शर्ट प्रदर्शनकारी बैंकाक की सड़कों पर हैं, लेकिन छुट्टियों के दौरान उनके जुझारुपन में थोड़ी कमी आ सकती है.

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अभिसित वेज्जाजीवा - अनिश्चित भविष्यतस्वीर: AP

इसके बावजूद प्रधान मंत्री अभिसित वेज्जाजीवा की परेशानियां घटी नहीं, बल्कि बढ़ी ही हैं. उन्हें सिर्फ़ विपक्ष से ही नहीं निपटना पड़ रहा है, उनके सत्तारूढ़ मोर्चे में भी दरार है. सेना प्रमुख उनके विपरीत बातें कर रहे हैं. निर्वाचन आयोग भी उनकी पार्टी को परेशान कर रहा है.

ख़ासकर निर्वाचन आयोग का रुख प्रधान मंत्री की डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए जानलेवा हो सकता है. आयोग ने सलाह दी है कि पार्टी चंदे के मामले में हेराफ़ेरी के कारण डेमोक्रेटिक पार्टी को विसर्जित कर दिया जाए. अभिसित वेज्जाजीवा को प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफ़ा देना पड़ सकता है. इस सिलसिले में सरकार के प्रवक्ता पानितान वात्तानायागोर्न का कहना था -

अभी कुछ कहना जल्दबाज़ी होगी, क्योंकि अभी-अभी यह खबर आई है. पार्टी के प्रवक्ता का आधिकारिक वक्तव्य आने तक हमें इंतज़ार करना होगा. डेमोक्रेटिक पार्टी विसर्जन के ख़िलाफ़ संवैधानिक अदालत में याचिका दायर कर सकती है. यह एक कानूनी विवाद की शुरुआत है, और अभी इसके नतीजे के बारे में अटकलें नहीं लगानी चाहिए. - पानितान वात्तानायागोर्न

इस बीच सेना के प्रमुख अनुपोंग पाओचिंदा ने कहा है कि जल्द चुनाव के ज़रिये इस संकट को दूर किया जा सकता है. इस सवाल पर सत्तारूढ़ मोर्चे में गहरे मतभेद हैं. प्रधान मंत्री 9 महीने बाद चुनाव कराना चाहते हैं, उनके मोर्चे के अन्य घटक चाहते हैं कि चुनाव 6 महीनों के अंदर हो. विपक्ष के रेड शर्ट प्रदर्शनकारियों की मांग है कि तुरंत चुनाव करवाए जाएं. सेनाध्यक्ष के बयान से अब ऐसी अफ़वाहें फैल रही हैं कि सेना भी सरकार के साथ नहीं रह गई है.

थाईलैंड में सम्राट को राष्ट्रीय एकता का प्रतीक समझा जाता है. उनकी आलोचना एक गंभीर अपराध है. इस पृष्ठभूमि में विदेशमंत्री कासित पिरोम्या के इस वक्तव्य को काफ़ी सनसनीखेज़ माना जा रहा है कि अब राजतंत्र में सुधार के लिए बातचीत शुरू होनी चाहिए. सरकार के प्रवक्ता पानितान विदेश मंत्री के वक्तव्य पर कोई टिप्पणी करने को तैयार नहीं थे. उन्होंने कहा है कि पहले इस वक्तव्य की जांच करनी पड़ेगी. इतना तय है कि राज दरबार भी अगर प्रधान मंत्री के ख़िलाफ़ हो जाता है, फिर उनके लिए गद्दी बचाना लगभग असंभव हो जाएगा.

रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ

संपादन: राम यादव